शाहजहां के वजीर शिराजी का मकबरा 'चीनी का रोजा', ईरानी काशीकारी का बेजोड़ नमूना फिर से चमकेगा
आगरा में फिर चमक बिखेरेगा चीनी का राजा एएसआइ लगाएगा ग्लेज्ड टाइल। स्मारक के संरक्षण को विस्तृत योजना बना रहा है विभाग। टाइल नष्ट होने की वजह से रौनक खो चुका है स्मारक। ब्रज में काशीकारी की कला का एकमात्र स्मारक है।
आगरा, निर्लोष कुमार। मुगल शहंशाह शाहजहां के वजीर शुक्रुल्ला शिराजी का मकबरा चीनी का रोजा एक बार फिर चमक बिखेरेगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) स्मारक की बाहरी दीवारों के नष्ट हो चुके टाइलों की जगह नए ग्लेज्ड टाइल लगाएगा। टाइल नष्ट होने की वजह से स्मारक अपनी रौनक खो बैठा है। कभी यह दूर से ही चमकता था। इसके संरक्षण को विस्तृत कार्य योजना तैयार की जा रही है।
चीनी का रोजा दोहरे गुंबद वाला मकबरा है। लाखौरी ईंटों के बने मकबरे की दीवारों पर चूने का प्लास्टर हो रहा है। इसकी दीवारों को बाहर की तरफ टाइलाें से अलंकृत किया था। नीला, पीला, हरा, नारंगी व सफेद रंग के टाइलों का इस्तेमाल इसमें हुआ था। प्रत्येक फूल व पत्ती के लिए छोटे-छोटे टाइल लगे थे। टाइल नष्ट होने से यह स्मारक अपनी रंगत खो चुका है। समय-समय पर स्थानीय निवासी और पर्यटन कारोबार से जुड़े लोग स्मारक की दशा सुधारने को एएसआइ से गुहार लगाते रहे हैं।
इसे देखते हुए एएसआइ ने स्मारक के संरक्षण को विस्तृत कार्य योजना तैयार करना शुरू की है। स्मारक पर हो रहे आर्ट वर्क का रिकार्ड तैयार करने के साथ स्ट्रक्चरल रिपेयरिंग का काम यहां किया जाएगा। स्मारक पर लगे टाइलों के फीचर से मिलते-जुलते टाइल बाजार में तलाशे जाएंगे। स्मारक के फीचर से मिलते-जुलते टाइल बाजार में उपलब्ध होने पर स्मारक की दीवारों पर उन्हें लगाया जाएगा।
अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. राजकुमार पटेल ने बताया कि चीनी का रोजा के संरक्षण को विस्तृत कार्य योजना तैयार की जा रही है। नष्ट हो चुके टाइलों की जगह नए टाइल लगाकर मूल स्वरूप में संरक्षण का काम किया जाएगा।
शाहजहां का वजीर था शुक्रुल्ला शिराजी
शुक्रुल्ला शिराजी अफजल खां अल्लामी, शाहजहां का वजीर था। वह विद्वान व कवि था और अल्लामी नाम से कविताएं लिखा करता था। जहांगीर ने उसे अफजल खां की उपाधि प्रदान की थी। शाहजहां के राजकुमार काल में वो उसका दीवान बना। सिंहासन पर बैठने के बाद शाहजहां ने उसे अपना वजीर बनाकर सात हजार का मनसब प्रदान किया था। शुक्रुल्लाह ने अपने जीवन काल में ही वर्ष 1628 से 1639 के बीच अपना मकबरा बनवाया था। वर्ष 1639 में लाहौर में उसकी मृत्यु होने के बाद उसकी देह को यहां लाकर दफन किया गया था।
काशीकारी
चीनी का रोजा, ब्रज में काशीकारी की कला का एकमात्र स्मारक है। काशीकारी में ईंटों की सतह पर दो इंच मोटा चूने का प्लास्टर किया जाता था। इस पर एक इंच मोटी महीन परत चढ़ाई जाती थी। जब वह नम होती थी, तभी उस पर रूपांकन करते हुए आलेख बनाते थे। रूपांकन के अनुसार ही टाइल लगाई जाती थीं।
ईरान के काशीन में होती थी काशीकारी
काशीकारी की कला का घर ईरान के काशीन में था। इसके चलते इन टाइल (खाचित खर्परों) को काशी कहा जाने लगा। इसके कुम्हारों को काशीगर और इस कला को काशीकारी कहते थे। इसे बनाने की विधि बड़ी जटिल थी। इसमें विविध प्रकार के रसायन, बालू, पत्थर व अन्य वस्तुएं प्रयोग में लाई जाती थीं। इन्हें विशेष रूप से बनी भट्टी में गर्म कर पिघलाते थे, जिससे टाइल की चमक वर्षों तक बनी रहती थी। यह कला विलुप्त हो चुकी है।