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कलम से लिखी जिंदगी की इबारत, परंपरा तोड़ मिल रही शिक्षा की विरासत Agra News

शिक्षा का आधार बनी घुमंतू पाठशाला। पाठशाला में लोहापीटा समाज के बच्चे निश्शुल्क पढ़ते हैं। ये व्यवस्था की है आराधना संस्था ने।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 28 Jul 2019 05:21 PM (IST)Updated: Sun, 28 Jul 2019 10:53 PM (IST)
कलम से लिखी जिंदगी की इबारत, परंपरा तोड़ मिल रही शिक्षा की विरासत Agra News
कलम से लिखी जिंदगी की इबारत, परंपरा तोड़ मिल रही शिक्षा की विरासत Agra News

आगरा, कुलदीप सिंह। हिना यानी मेहंदी। जब हाथों में रचती है, तो खूबसूरती में चार चांद लगाती है, लेकिन यहां हिना अपने परिवार की जिंदगी की नई इबारत लिख रही है। हिना वह बेटी है, जिसके परिवार में पीढिय़ों से कोई स्कूल नहीं गया। बेटा हो या बेटी, स्कूल का रास्ता तक नहीं देखा। लेकिन परंपरा की इन बेडिय़ों को हिना ने तोड़ दिया। बेटी न केवल स्कूल जा रही है, बल्कि उसकी कलम से निकली परिवार की जिंदगी का राग भी लिख रही है।

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हिना मूलत: राजस्थान के रूपबास की रहने वाली है। मां मीरा और पिता भीकम ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। कलम और किताब से दूर-दूर तक नाता नहीं था। पढ़ाई से बैर रहा, तो जिंदगी दोजख बन गई। ये लोहापीटा समाज से हैं। इसलिए पीढिय़ों से यही परंपरा चल रही है। मीरा के चार बेटियां और एक बेटा है। हिना स्कूल गई, तो दूसरे बच्चों में भी पढऩे की ललक जागी। फिर क्या था, करीमा, मुस्कान, काजल और बेटा विष्णु स्कूल जाने लगे और अक्षरों से दोस्ती कर ली। इस परिवार में पढ़ाई का आधार बनी घुमंतू पाठशाला। ये वह पाठशाला है, जिसमें लोहापीटा समाज के बच्चे निश्शुल्क पढ़ते हैं। ये व्यवस्था की है आराधना संस्था ने।

2013 में हुई थी शुरुआत

घुमंतू पाठशाला की स्थापना डॉ हृदेश चौधरी ने 2013 में की थी। सिकंदरा स्थित सुलभ पुरम में स्थित इस पाठशाला में वर्तमान में 65 बच्चे पढ़ रहे हैं। संस्था की ओर से बच्चों को स्कूल बैग से लेकर किताब और ड्रेस निश्शुल्क दी जाती है। इस पाठशाला में घुमंतु समाज के बच्चे ही पढ़ते हैं। इनके लिए संस्था द्वारा स्कूल वैन की व्यवस्था भी की गई है। बच्चों को कई किलोमीटर दूर से स्कूल लाया जाता है।

इन इलाकों से आते हैं बच्चे

बालूगंज, पंचकुइयां, बोदला, पश्चिम पुरी, सिकंदरा, खंदारी, सुल्तानगंज पुलिया।

ताकि बच्चों को सड़क पर न बितानी पड़े जिंदगी

पश्चिमपुरी में सड़क किनारे जीवन व्यतीत करने वाले घुमंतू समाज की मीरा ने बताया कि वह रूपबास से आगरा कुछ साल पहले ही आई थी। उनकी सबसे बड़ी बेटी हिना का संस्था ने सबसे पहले स्कूल में दाखिला कराया। कुछ ही महीनों में वह लिखना और पढऩा सीख गई। इसके बाद उन्होंने करीमा, मुस्कान, काजल और विष्णु का भी पाठशाला में दाखिला करा दिया। बच्चे अब स्कूल में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। मीरा के पति भीकम ने बताया कि वह अपने पुश्तैनी काम को करते आ रहे हैं लेकिन वह बच्चों को काबिल बनाना चाहते हैं। बच्चे पढ़ लिख कर बेहतर जिंदगी व्यतीत कर सकें, इसलिए सामाजिक बेडिय़ों को तोड़ बच्चों को स्कूल भेजा।

डॉक्टर बनकर चेहरे पर खिलेगी 'मुस्कान'

भीकम की बेटी मुस्कान बड़े होकर डॉक्टर बनना चाहती है। भीकम ने कहा कि बेटी के सपने को हर हाल में पूरा करेंगे। वह बेटी को पढ़ाई से नहीं रोकेंगे, जितने भी संसाधन हैं उनसे जितना हो सकेगा बच्चों को पढ़ाएंगे। बेटी के डॉक्टर बनने से चेहरे पर मुस्कान आएगी।

पहली पीढ़ी हो रही साक्षर

घुमंतू समाज के लोग अतीत में महाराणा प्रताप की सेना के लिए हथियार बनाने का काम करते थे। महाराणा प्रताप ने जीते जी अकबर की दासता स्वीकार नहीं की थी। खुद को महाराणा प्रताप का वंशज बताने वाले गाडिय़ा लुहार विभिन्न कस्बों व गांवों में बैलगाड़ी और बरसाती के सहारे आज भी निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ये लोग प्रण के कारण एक जगह रहकर स्थाई रूप से जीवन नहीं बिताते हैं। उनकी यह कसम है कि चित्तौडग़ढ़ राज्य वापस न होने तक उनकी कौम यूं ही निर्वासित जीवन गुजारती रहेगी। डॉ. हृदेश चौधरी ने बताया कि इस समाज के लोग स्कूल नहीं जाते हैं। यह पहली पीढ़ी है, जिन्हें घुमंतू पाठशाला के माध्यम से साक्षर किया जा रहा है। 

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