Migratory Birds in Agra: अफ्रीका के घने जंगलों से आगरा आया भारतीय साहित्य का पसंदीदा पक्षी, जानिए क्या है विशेषता
Migratory Birds in Agra अफ्रीका से आगरा पहुंचे भारतीय साहित्य में वर्णित चातक पक्षी। आगरा- मथुरा की सीमा पर स्थित जोधपुर झाल पर चातक पक्षियों का आगमन हुआ है। इसे मानसून के आगमन का संकेतक माना जाता है।
आगरा, जागरण संवाददाता। पक्षियों की उपमाएं देकर विभिन्न कवियों ने साहित्यिक रचनाओं को अमर कर दिया है। इसी क्रम में चातक पक्षी का भारतीय साहित्य में अनुपम उदाहरण हैं। कबीरदास जी ने बीजक ग्रन्थ की रचना में चातक का वर्णन करते हुए कहा है कि "चातक सुतहि पढ़ावहिं, आन नीर मत लेई। मम कुल यही सुभाष है, स्वाति बूंद चित देई॥" इसी प्रकार कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने नागमती वियोग में चातक का वर्णन और गोस्वामी तुलसीदास एवं राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचनाओं में चातक का वर्णन किया है। आगरा- मथुरा की सीमा पर स्थित जोधपुर झाल पर चातक पक्षियों का आगमन हुआ है। इसे मानसून के आगमन का संकेतक माना जाता है। किवदंती यह भी है कि चातक केवल स्वाति नक्षत्र में मानसून की बारिश की बूंदों से ही अपनी प्यास बुझाता है। हालांकि इसके वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
दक्षिण भारत में भी पाया जाता है लेकिन अफ्रीका से उत्तर भारत पहुंचता है चातक
जैकोबिन कोयल को ही चातक बोला जाता है। इसके अन्य नाम पाइड कूको व पाइड क्रेस्टेड कूको भी हैं।
इसका वैज्ञानिक नाम क्लैमेटर जैकोबिनस और इसे कुकुलिडे परिवार में वर्गीकृत किया गया है। यह जैकोबिन कूको अफ्रीका और दक्षिण एशियाई देश भारत, श्रीलंका व म्यांमार का प्रजनक निवासी है। पूर्वी अफ्रीका से भारत में प्रवास पर आते समय सउदी अरब इनके माइग्रेशन पाथ मे शामिल है। अफ्रीकी प्रजाति सर्दियों में अफ्रीका के अन्य देशों में प्रवास पर जाती है। यह उत्तरी व मध्य भारत में गर्मियों में मानसून पूर्व प्रवास पर देखा जाता है। काले रंग के अपर पार्ट व सफेद रंग के अंडरपार्ट्स के साथ सर पर क्रिस्ट से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। जैकोबिन कूको के भोजन में कैटरपिलर, कीड़े व फल शामिल हैं। जैकोबिन कोयल का हेविटाट खुले जंगल की कांटेदार झाड़ियां होती हैं।
जैकोबिन कूको के माइग्रेशन रूट का हो रहा है अध्ययन
बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ केपी सिंह ने बताया कि इंडियन इन्स्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग व भारत सरकार के बायोटेक्नोलाॅजी विभाग के सहयोग से भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने जैकोबिन कूको के माइग्रेशन का अध्ययन जून 2020 से प्रारंभ किया है। सेटेलाइट ट्रांसमीटर की टैगिंग द्वारा माइग्रेशन और पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है। उत्तर भारत में जैकोबिन कूको को केवल मानसून पूर्व ही देखा जाता है और इसकी ब्रीडिंग भी रिकार्ड की जाती है। जबकि दक्षिण भारत में यह पूरे साल दिखाई देता है। दक्षिण भारत और उत्तर भारत में पाये जाने वाले जैकोबिन कूको में कुछ शारीरिक भिन्नताएं हैं। जैकोबिन कूको पर भारत में पहली बार किये जा रहे अध्ययन के पश्चात इस बात की पुष्टी हो सकती है कि उत्तर भारत में जैकोबिन दक्षिण भारत से अथवा अफ्रीका से प्रवास पर आता है। हालांकि 2017-18 में ई-बर्ड से प्राप्त डाटा के अध्ययन में यह तो ज्ञात हो चुका है कि उच्च जलवाष्प की मात्रा में वृद्धि (जो कि मानसून का सूचक है ) के साथ उत्तर भारत में जैकोबिन कूको की संख्या में वृद्धि रिकार्ड की जाती है।
अन्य प्रजाती के घोंसलो में देते हैं अंडे
पक्षी विशेषज्ञ डॉ केपी सिंह ने बताया कि जैकोबिन कूको में ब्रूडिंग परजीविता पाई जाती है। जब पक्षियों की एक प्रजाति दूसरी अन्य प्रजाति के घोंसलों का उपयोग अपने अंडे देने के लिए करती है तो यह व्यवहार ब्रूडिंग परजीविता कहलाता है। जैकोबिन कूको अपना स्वयं के घोंसले का निर्माण नहीं करते हैं बल्कि अन्य पक्षियों की प्रजातियों जंगल बैबलर, काॅमन बैबलर अथवा रेड-वेंटेड बुलबुल के घोंसलो में मादा जैकोबिन कूको अपने अंडे देती हैं। यह व्यवहार कोयल परिवार की अधिकांश प्रजातियों में पाया जाता है। जोधपुर झाल पर बैबलर की कई प्रजातियां निवासी प्रजनक हैं और रेड-वेंटेड बुलबुल की जनसंख्या भी बहुत है। इस कारण जैकोबिन कूको यहां प्रजनन कर सकता है। जैकोबिन कूको की पसंद का खुले जंगल में कांटेदार झाड़ियो वाला हेविटाट जोधपुर झाल पर मौजूद है। यहां अभी तक 12 नर व मादा जैकोबिन कूको रिकार्ड किए गए हैं। जोधपुर झाल के अतिरिक्त आगरा में ताज नेचर वाक और सूर सरोवर कीठम में भी प्रतिवर्ष रिकार्ड किया जाता है।