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कहीं आप भी ऑनलाइन शॉपिंग के दीवाने तो नहीं, चेक करें खुद को Agra News

कंपल्सिव बाइंग डिसऑर्डर के मरीज पहुंच रहे मनोचिकित्सकों के पास। बिना जरूरत के भी मंगा लेते हैं सामान।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 19 Jan 2020 09:05 AM (IST)Updated: Sun, 19 Jan 2020 09:05 AM (IST)
कहीं आप भी ऑनलाइन शॉपिंग के दीवाने तो नहीं, चेक करें खुद को Agra News
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केस-1

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फतेहाबाद रोड निवासी रितु गुप्ता दिन भर ऑनलाइन शॉपिंग में व्यस्त रहती हैं। पिछले एक महीने में दस से अधिक ड्रेस और फुटवियर ऑर्डर कर चुकी हैं। घर में इस्तेमाल होने वाली जरूरत की चीजें भी ऑनलाइन ही मंगाती हैं। इस महीने जब क्रेडिट कार्ड का बिल आया तो दिमाग चकरा गया।

केस-2

कॉलेज स्टूडेंट दीपाली पूरा दिन ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स देखती रहती हैैं। किसी भी उत्पाद पर छूट मिल रही हो तो उसे तुरंत बुक करा लेती हैं। स्थिति यह हो गई है कि डिस्काउंट के कारण वे रातभर ऑर्डर करती रहती हैं। उनकी इस आदत से उनके अभिभावक परेशान हो चुके हैं।

आगरा, जागरण संवाददाता। यह सिर्फ रितु और दीपाली की परेशानी नहीं है। ताजनगरी में सैंकड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें ऑनलाइन शॉपिंग की लत लग चुकी है। ऐसे लोगों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है जो पहले जरूरत, फिर शौक, उसके बाद बड़े डिस्काउंट के लालच में वे वस्तुएं भी ऑनलाइन मंगा रहे हैं, जिनकी उन्हें जरूरत तक नहीं। ऑनलाइन शॉपिंग की यह लत अब लोगों को मनोरोगी बना रही है। आदत बीमारी के रूप में मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रही है। शहर के दस में से एक व्यक्ति को दिन-रात ऑनलाइन साइट पर यही तलाश रहती है कुछ सस्ता मिल जाए। इस तरह के मामले अब आम होते जा रहे हैं। सिटी के मनोचिकित्सकों के पास ऐसे कई मामले आ रहे हैं, जो ऑनलाइन खरीदारी से ज्यादा खरीद की बीमारी का शिकार हो चुके हैं।

कंपल्सिव बाइंग डिसऑर्डर

चिकित्सकों के मुताबिक ऑनलाइन शॉपिंग की लत बीमार बना रही है। इस बीमारी का नाम कंपल्सिव बाइंग डिसऑर्डर है। इसमें पेशेंट आवेग में आकर खरीदारी करते हैं। वे स्वयं को तब तक नियंत्रित नहीं कर पाते, जब तक कुछ खरीद नहीं लेते। खरीदारी करने के बाद बेचैनी कम हो जाती है। ऐसे मरीजों का पूरे दिन का बड़ा समय ऑनलाइन साइट्स पर सामान ढूंढने में निकलता है। ऐसा न करने पर बेचैनी होने लगती है। कुछ लोग तो आधी रात में भी उठकर साइट्स पर सामान ढूढंते रहते हैं।

बीमारी जाहिर नहीं होने देते

कंपल्सिव बाइंग डिसऑर्डर के मरीज अपनी बीमारी छिपाने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। लोगों की नजर में न आएं, इसके लिए वे छुप कर शॉपिंग करते हैं। खरीदारी के लिए पैसा कहां से आएगा, उन्हें इसकी चिंता नहीं रहती।

ऑनलाइन शॉपिंग का बढ़ गया है क्रेज

पहले महिलाएं अपने तनाव को विंडो शॉपिंग के जरिए दूर करते थे। अब विंडो शॉपिंग की जगह ऑनलाइन शॉपिंग ने ले ली है। इसका कारोबार इतना ज्यादा बढ़ गया है कि पिछली दीपावली पर शहर के व्यापारियों ने ऑनलाइन शॉपिंग से होने वाले नुकसान का आंकड़ा सबके सामने रखा था। इस आंकड़े के अनुसार केवल दीपावली पर ही 300 करोड़ रुपये का नुकसान आगरा के व्यापारियों को उठाना पड़ा था। हर रोज लाखों रुपये का सामान शहर में ऑनलाइन शॉपिंग का आता है।

कई जगह बने हैं सेंटर

आवास विकास, नेशनल हाइवे और जयपुर हाउस में हर ऑनलाइन शॉपिंग के सात से आठ कलेक्शन सेंटर बने हुए हैं। यहां से पूरे शहर में डिलीवरी होती है।

ये है आपबीती

कमलानगर निवासी रवि शाक्‍य ने बताया मेरी पत्नी पूरा दिन ऑनलाइन शॉपिंग करती रहती हैं। पूछने पर झूठ बोलती है। जरूरत न होने पर भी कपड़े मंगाती रहती है कि यह काम आएंगे। आवास विकास कॉलोनी की रिमझिम वर्मा ने तो अब तौबा कर ली है। उन्‍होंने कहा कि मैंने भी ऑनलाइन शॉपिंग खूब की। एक समय यह भी आया कि मेरी अलमारी में कपड़े रखने की जगह नहीं बची और मेरी सारी सेविंग भी शॉपिंग में खत्म हो गई। तभी मुझे लगा कि अब रुकना होगा।

मनोचिकित्‍सकों का ये है कहना

वरिष्‍ठ मनोचिकित्‍सक डा. केसी गुरनानी का कहना है कि ऑनलाइन शॉपिंग के ट्रेंड ने बीमारी को बढ़ावा दिया है। इसकी चपेट में सबसे ज्यादा यूथ और महिलाएं हैं। ऐसे लोगों में शॉपिंग की लत दूसरों को देखकर भी बढ़ रही है।

मानसिक आरोग्‍यशाला आगरा के प्रमुख अधीक्षक डा. दिनेश राठौर ने कहा कि जरूरत से ज्यादा ऑनलाइन शॉपिंग कंपल्सिव बाइंग डिसऑर्डर को जन्म दे रही है। ओपीडी में हर दिन इस तरह के शिकार एक से दो मरीज आ रहे हैं। महिलाओं के अलावा लड़के भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। 


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