Chaitra Navratra 2020: देवी का दूसरा स्वरूप है माता ब्रह्मचारिणी का, भूल से भी न करें आज ये काम
चैत्र नवरात्र में दूसरे दिन होती है माता ब्रह्मचारिणी की पूजा। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार ब्रह्मचर्य का पालन करने से होती हैं माता प्रसन्न।
आगरा, जागरण संवाददाता। मां आदिशक्ति का द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी का है। माता की महिमा किसी से छुपी नहीं है और उनके आशीर्वाद से जीवन में अथाह ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। भगवान शिव से विवाह हेतु प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण माता का ये स्वरूप ब्रह्मचारिणी कहलाया। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानि आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार ब्रह्म की तात्विक शक्ति अर्थात् ब्रह्मचारिणी। श्रीदुर्गा सप्तशती के कीलक स्त्रोत में महादेव ने कुछ तत्वों को गुप्त कर दिया अर्थात् कीलन कर दिया, ताकि कलियुग में उसका दुरुपयोग न हो सके। आमतौर पर अपने जीवन में भी देखें तो कई तत्व हमारे लिए गुप्त हैं। इन्हीं गुप्त तत्वों को ब्रह्म की शक्ति कहा गया है। ब्रह्म और शक्ति के मिलन का भी अद्भुत प्रसंग है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने से माता िजितनी प्रसन्न होती हैं उतनी ही रुष्ट इसके उल्लंघन से हो जाती हैं।
सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्माजी ने शक्ति का आह्वान नहीं किया। उन्होंने सोचा कि उनके पास तो सर्वसम्पन्न शक्तियां हैं ही। उन्होंने मानस पुत्रों की रचना की। मानस पुत्र बढ़ते गए लेकिन आयु तो निश्चित थी नहीं। न बचपन, न जवानी, न बुढ़ापा, न वंश और न गोत्र ही। सृष्टि कैसे आगे बढ़े? ब्रह्माजी की रचना स्थिर हो गई। न किसी की मृत्यु हो रही थी और न किसी का जन्म हो पा रहा था।
अंत में ब्रह्माजी ने अनुभव किया कि कोई भी सृष्टि धनात्मक और ऋणात्मक शक्ति के बिना पूरी नहीं हो सकती। यहीं से शक्ति और शक्तिमान का तत्व आया। इसी को हम आधुनिक विज्ञान में पॉजिटिव एनर्जी और नेगेटिव एनर्जी कहते हैं। ब्रह्माजी ने शक्ति का आह्वान किया। देवी भगवती ज्ञान, वैराग्य और तप के रूप में प्रकट हुईं। यही तत्व ब्रह्म की शक्ति कहे गए। देवी पुराण में माना गया कि जब कहीं कुछ नहीं था तो ब्रह्म की शक्ति से ही सब कुछ संचालित होता था।
चाहे ज्ञान की शक्ति हो, चाहे अध्यात्म की शक्ति हो, देवी स्वयं कहती हैं कि इस जगत में जो भी ज्ञात और अज्ञात है, उसका कारण मैं ही हूँ। हर प्राणी के अंदर परा-अपरा तत्व होते हैं।
माता ने स्वयं कहा कि मैं ही ब्रह्मचारिणी
दुर्गा सप्तशती के अनुसार, एक बार सभी देवताओं ने देवी भगवती से पूछा हे महादेवी! आप कौन हैं? भगवती ने कहा अहं ब्रह्मस्वरूपिणी मत: प्रकृतिपुरुषात्मक जगत। अर्थात मैं ब्रह्मस्वरूप हूं, मुझसे प्रकृति-पुरुषात्मकसतरूप और असतरूप जगत उत्पन्न हुआ है। मैं ही आनन्द और अनानंदरूपा हूं। मैं विज्ञान और अविज्ञानरूपा हूं। ब्रह्म और अब्रह्म मैं ही हूं। यह सारा दृश्य-अदृश्य जगत भी मैं ही हूं। देवी समझती हैं कि धनात्मक और ऋणात्मक दोनों शक्तियां मुझसे ही उत्पन्न हैं। निस्संदेह भगवती ही सबका केंद्र है। यही जगद्धात्री हैं। वेद, तत्व और तप ही ब्रह्म है।
अन्य कथा
पंडित वैभव बताते हैं कि एक अन्य प्रसंग में देवी भगवती ने हिमालय के यहां जन्म लिया। महादेव को प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तप किया। इतना कठोर कि पत्तों का भी आश्रय छोड़ दिया। इसलिए उनका एक नाम अपर्णा हो गया। अंत में महादेव उन्हें प्राप्त हो गए। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, ज्ञान, संयम, शक्ति का सदुपयोग किया। इन गुणों को धारण करना ही मातृभक्ति है।
कब और कैसे करें पूजा
ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना के लिए दुर्गा सप्तशती के कीलक स्त्रोत का उच्च स्वर से पाठ करना चाहिए। रात्रि 9 बजे से 12 बजे या प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में। ब्रह्मचारिणी की पूजा में मानसिक जप विशेष फल देने वाला है। देवी को श्वेत पुष्प अर्पित करना चाहिए। देवी के प्रथम अध्याय और देवी सूक्त का पाठ करें। चूंकि ब्रह्मचारिणी ब्रह्म की शक्ति हैं, वही सभी का मूलाधार है। अत: साधकों को निम्न मंत्र से उनका ध्यान करना चाहिए-
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो: नम:।।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।