सूर्य छठ 2018: प्रकृति के हर कण को सूर्य देते हैं जीवन ऊर्जा, जानिये क्या है महत्व सूर्य की विशेष साधना का
चार दिवसीय पर्व का रविवार से हुआ आरंभ। द्रोपदी ने की थी आराधना तो राम राज्य की हुई थी इस दिन से स्थापना।
आगरा [जेएनएन]: कठिन तप, स्वच्छता और समर्पण का पर्व रविवार को नहाय खाय के साथ आरंभ हो गया। प्रकाश के अंत से लेकर प्रकाश के आरंभ तक की आराधना। न कोई मंदिर और न कोई अन्य कर्मकांड। बस भक्त और ईश्वर के मध्य का विश्वास। सूर्य षष्ठी इसी भाव का पर्व है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व सूर्य उपासना का महापर्व है। यह तप-तपस्या एवं समर्पण का पर्व है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। सूर्य- षष्ठी व्रत को कई नाम से जाना जाता है। जैसे- छठ, छठी, छठ पर्व, डाला पूजा, सूर्य-षष्ठी इत्यादि।
सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के समान तेज देने वाला और यश, प्रतिष्ठा, संतान वृद्धि एवं अनेक शुभ फलों की वृद्धि देने वाला है। छठ पर्व के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूर्वाञ्चल के लोग किसी और मौके पर घर भले न जाएं, इस पर्व में शामिल होने की कोशिश करते हैं। हालांकि यह पर्व यहां के लोगों की गहन आस्था व निष्ठा के कारण विशिष्ट नहीं है, इसका स्वरूप भी इसे अन्य त्योहारों एवं धार्मिक आयोजनों से भिन्न बनाता है। पंडित वैभव कहते हैं कि चार दिन की इस पूजा में धार्मिक कर्मकांडों, पुरोहितों या मंदिरों की कोई भूमिका नहीं होती, फिर भी किसी अन्य पर्व की तुलना में इसमें पवित्रता और सादगी पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाता है।
सदियों पुरानी है छठ पर्व की परंपरा
पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि छठ व्रत की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा कैसे शुरू हुई इस संदर्भ में कई कथाओं का उल्लेख पुराणों और धर्मग्रंथों में मिलता है। इन कथाओं में छठी मैया की पूजा के साथ-साथ व्रत करने वालों की मनोकामना पूरी होने का विवरण है। एक कथा है कि कृष्ण के वंशज शाम्ब को दुर्वासा ऋषि के श्राप से कुष्ठ रोग हो गया था। शाप मुक्ति के लिए उन्होने सूर्योपासना की और निरोगी हुए। यही पूजा आज लोकधर्म में छठपर्व के रूप में विख्यात है।
द्रौपदी ने किया था छठ व्रत
एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राज-पाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उसकी मनोकामनकं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
एक और कथा है कि लंका विजय के बाद राम की अयोध्या वापसी के दिन दीवाली हुई और इसके छह दिन बाद यानि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन राम राज्य की स्थापना हुई। राम और सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को विधि पूर्वक पारण कर भगवान सूर्य का आशीर्वाद लिया, तब से रामराज्य की स्थापना का यह दिवस छठ पूजा के रूप में प्रचलित है।
श्रेष्ठ परिवारिकता का पर्व है छठ
पंडित वैभव जोशी रामराज्य के बारे में कहते हैं कि दैहिक, दैविक और भौतिक दुखों का जहां वास नहीं, वही रामराज्य है। तुलसीदास की उक्ति है न- दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज काहू न व्यापा! छठपूजा की चाहे कितनी कथा बना लें, हर कथा के केंद्र में होगी कामनाएं- संतान, निरोगी-निर्मल काया और अन्न-धन-जन से भरपूर जीवन। लेकिन, बात इतना भर कहने से नहीं बनती। दैहिक, दैविक, भौतिक त्रिविध ताप (दुखों) की अनुपस्थिति की प्रार्थना के स्वरवाला छठ परिवारिकता का भी पर्व है। साथ ही साथ यह पर्व सामाजिक समरसता को विकसित करता है और मजबूती प्रदान करता है। समाज के सभी वर्गों की सहभागिता इस पर्व में होती है।
छठ महापर्व का आध्यात्मिक रहस्य
छठ महापर्व का आध्यात्मिक रहस्य भी है। पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि जैसे दीवाली परमात्मा शिव, जो कि दीप राज भी हैं, द्वारा दिये जा रहे दिव्य ज्ञान द्वारा आत्म ज्योति जगा कर श्री लक्ष्मी-श्री नारायण का राज्याभिषेक यादगार है। छठ पर्व को दीपावली के छठे दिन मनाया जाता है। इसे सूर्य की उपासना का महापर्व भी कहते है। वास्तव में सूर्य की महाउपासना, ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव के वर्तमान संगमयुग में सिखलाए जा रहे राजयोग के द्वारा पुरानी दुनिया को बदल नयी दुनिया करना और हम पतित आत्माओं को पावन देवी देवताओं में परिवर्तन करने के महान दिव्य कर्तव्य का यह दिन है। परमात्मा शिव द्वारा स्थापित किए गए शिवालय अर्थात स्वर्ग के सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य के एवज में हम मनुष्यात्माओं द्वारा परमात्मा के प्रति अपना आभार प्रकट करने का यह दिन है। सूर्य को शक्ति और पवित्रता का प्रतीक कहा जाता है, जो मनुष्यों को स्वास्थ्य व बल प्रदान करता है।