झूम उठे भक्त, जब रूठी राधा को मनाने यहां मयूर बन नाचे कान्हा
राधाष्टमी के दूसरे दिन मोरकुटी पर हुई बूढ़ीलीला। मयूर लीला प्रस्तुत की रासधारी कलाकारों ने।
आगरा(जेएनएन): मोरा बन गये मदन मुरारी, ऐसो नृत्य कियो गिरधारी,
या छवि ऊपर मोहित है गयी बृज की सखियां सारी..राधाष्टमी के उल्लास में डूबा बरसाना, उस वक्त और अधिक भक्ति रस से सराबोर हो गया जब मयूर पंखधारी श्री कृष्ण को अपनी प्रिय सखी राधे के लिए मयूर बन नाचते देखा।
बरसाना के गहवर वन स्थित मोर कुटी पर मंगलवार को मयूर लीला का मंचन परंपरागत रूप से किया गया। राधा जन्म के बाद होने वाली द्वापर कालीन लीलाओं को बूढी लीला का नाम दिया गया है। मयूर लीला को लेकर बृज में मान्यता है कि एक बार कृष्ण की प्राण प्रिय श्रीराधा के रूठने पर श्रीकृष्ण ने उन्हें मनाने के अनेकों जतन किए, लेकिन राधा जी प्रसन्न नहीं हुईं। अंत में भगवान कृष्ण ने मयूर का रूप धारण कर राधा जी के सामने नृत्य करने लगे और राधा जी प्रसन्न हो गईं।
इन लीलाओं का शुभारंभ बृज के ग्वाल वालों को साथ लेकर करीब 500 साल पहले रासलीला के अनुकरणकर्ता महाप्रभु नारायण भट्ट ने किया था। अष्ट सखियों गांव में होने वाली इन बूढी लीलाओं का मंचन चिकसोली के स्वामी परिवार द्वारा परंपरागत रूप से किया जा रहा है। लीला की झलक पाने के लिए तपती धूप में श्रद्धालु डटे रहे और लीला शुरू होने से पूर्व भजन और कीर्तन के साथ राधाकृष्ण के स्वरूपों के साथ आने का इंतजार करते रहे। लीला की शुरुआत युगल सरकार की आरती के साथ हुई। एक घंटे तक चली इस लीला में गर्मी और धूप की परवाह किए बिना भक्त डटे रहे। साल दर साल अपने अराध्य के प्रति यह उत्साह लगातार सैलाब बनकर बढ़ता जा रहा है। देश के दूरसस्थ स्थान से आए श्रद्धालु लीला की एक झलक पाकर अपने धन्य मानने लगे।