Move to Jagran APP

मौनी अमावस्या विशेष: श्रद्धा के उत्सव में आस्था की डुबकी, जानिये दिन विशेष की खास बातें

मौनी अमावस्या पर गंगा- यमुना में श्रद्धालुओं ने किया स्नान। आधी रात से सोरों पहुंचे लोग।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 04 Feb 2019 12:39 PM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 12:39 PM (IST)
मौनी अमावस्या विशेष: श्रद्धा के उत्सव में आस्था की डुबकी, जानिये दिन विशेष की खास बातें
मौनी अमावस्या विशेष: श्रद्धा के उत्सव में आस्था की डुबकी, जानिये दिन विशेष की खास बातें

आगरा, जेएनएन। श्रद्धा का उत्साह...जी हां यह कहना गलत न होगा। मन में कर्मों से मुक्ति पाने की इच्छा और ईश्वर के प्रति श्रद्धा ने सर्द हवाओं, गलन और कोहरे के पहरे को पीछे छोड़ दिया। माघ मास की मौनी अमावस्या पर लोगों ने भक्तिभाव का ऊर्जावान कवच धारण कर पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाई और हर हर गंगे का जाप किया। 

loksabha election banner

सोमवार को मौनी अमावस्या के विशेष अवसर पर पवित्र नदियों के तट पर श्रद्धा का नजारा दिखा। एक ओर जहां प्रयागराज में करोड़ों लोग अमावस्या के पर्व पर संगम में डुबकी लगा रहे हैं, दूसरी ओर वहां तक न जाने वालों ने अपनी श्रद्धा को गंगा और यमुना के घाटों पर ही तृप्त किया है। 

 देर रात से ही कासगंज में हरिपदी गंगा में स्नान शुरू हो गए थे। लहरा घाट सहित अन्य घाटों पर जबरदस्त भीड़ जुटी। रविवार शाम से ही श्रद्धालुओं को सोरों पहुंचना शुरू हो गया था। यहां पर आधी रात के बाद से ही पुजारियों ने पूजा अर्चना शुरू कर दी। लोगों ने अपने अपने पितरों की शांति के लिए पूजा कराई। सुबह घना कोहरा होने के बावजूद भी लोगों का क्रम जारी रहा। घाट पर कहीं लोग पूजा में लीन थे तो कुछ लोग मुंडन करा रहे थे। राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि सहित कई राज्यों से श्रद्धालु यहां पहुंचे। 

मौनी अमावस्या का महत्व

धर्म वैज्ञानिक वैभव जोशी के अनुसार धर्मग्रंथों में माघ मास को बेहद पवित्र और धार्मिक पुण्य प्राप्ति का समय चक्र माना जाता है और इस मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस वर्ष प्रयाग अर्धकुम्भ का भी शुभ संयोग बनने से इस पर्व का महत्व भी और अधिक बढ़ गया है। वर्ष 1992 में तीन फरवरी के दिन मौनी अमावस्या सोमवार को पडऩे के कारण सोमवती हो गई थी। संयोग से उस दिन हरिद्वार अर्धकुंभ का प्रमुख स्नान भी था। इसी प्रकार इस बार मौनी अमावस्या चार फरवरी सोमवार को पड़कर सोमवती हुई है और प्रयाग अर्धकुंभ का मुख्य स्नान इसी दिन है। संयोग यह भी है कि 27 वर्ष पूर्व जो सिद्धी योग था वह योग इस बार सिद्धी के साथ- साथ महोदय योग के रूप में आया है। पंडित वैभव बताते हैं कि सोमवती अमावस्या के दिन चंद्रमा का श्रवण नक्षत्र विद्यमान है। खास बात यह है कि भगवान सूर्य का प्रवेश इसी नक्षत्र में हो रहा है। सूर्य इस समय मकर राशि में मौजूद हैं। सूर्य के मकर राशि में रहते हुए मौनी अमावस्या का पडऩा अपने आप में एक महायोग है।

मौन धारण करने से सार्थक होती है आराधना

इस दिन के पवित्र स्नान को कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के समान ही माना जाता है। पवित्र नदियों और सरोवरों में देवी देवताओ का वास होता है। धर्म ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है कि इसी दिन से द्वापर युग का शुभारंभ हुआ था। लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने मनु महाराज तथा महारानी शतरुपा को प्रकट करके सृष्टि की शुरुआत की थी।

उन्ही के नाम के आधार पर इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। चन्द्रमा को मन का स्वामी माना गया है और अमावस्या को चन्द्रदर्शन नहीं होते, जिससे मन की स्थिति कमजोर होती है। इसलिए इस दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बनाया गया है।

साधु, संत, ऋषि, महात्मा सभी प्राचीन समय से प्रवचन सुनाते रहे हैं कि मन पर नियंत्रण रखना चाहिये। मन बहुत तेज गति से दौड़ता है, यदि मन के अनुसार चलते रहे तो यह हानिकारक भी हो सकता है। इसलिये अपने मन रूपी घोड़े की लगाम को हमेशा कस कर रखना चाहिये। मौनी अमावस्या का भी यही संदेश है कि इस दिन मौन व्रत धारण कर मन को संयमित किया जाये। मन ही मन ईश्वर के नाम का स्मरण किया जाये उनका जाप किया जाये। यह एक प्रकार से मन को साधने की यौगिक क्रिया भी है। मौनी अमावस्या योग पर आधारित महाव्रत है। मान्यता है कि यदि किसी के लिये मौन रहना संभव न हो तो वह अपने विचारों में किसी भी प्रकार की मलिनता न आने देने, किसी के प्रति कोई कटुवचन न निकले तो भी मौनी अमावस्या का व्रत उसके लिये सफल होता है। सच्चे मन से भगवान विष्णु व भगवान शिव की पूजा भी इस दिन करनी चाहिए। शास्त्रों में भी वर्णित है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन में हरि का नाम लेने से मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा का विधान है। वास्तव में शिव और विष्णु दोनों एक ही हैं, जो भक्तों के कल्याण हेतु दो स्वरूप धारण किए हुए हैं।

क्या करें आज के दिन

इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इस कारण भक्त एक मास तक कुटी बनाकर गंगा सेवन करते हैं। इस दिन श्रद्धालुओं को अपनी क्षमता के अनुसार दान, पुण्य तथा माला जप नियम पूर्वक करना चाहिए।

- प्रात: काल पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान किया जाता है। 

- स्नान के बाद तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्रादि किसी गरीब ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान दिया जाता है। 

- मान्यता है कि इस दिन पितरों का तर्पण करने से भी उन्हें शांति मिलती है।

- विशेष कर स्नान, पूजा पाठ और माला जाप करने के समय मौन व्रत का पालन करें। इस दिन झूठ, छल- कपट, पाखंड से दूर रहें। यह दिन अच्छे कर्मो और पुण्य कमाने में बिताएं। 

- मानसिक जाप, हवन एवं दान करना चाहिए। दान में स्वर्ण, गाय, छाता, वस्त्र, बिस्तर एवं उपयोगी वस्तुओं का दान करना चाहिए। ऐसा करने से सभी पापों का नाश होता है। 

- शास्त्रो के अनुसार पीपल की परिक्रमा करने से, सेवा पूजा करने से, पीपल की छाया से, स्पर्श करने से समस्त पापों का नाश, अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है व आयु में वृद्धि होती है।

- पीपल के पूजन में दूध, दही, तिल मिश्रित मिठाई, फल, फूल, जनेऊ का जोड़ा चढाने से और घी का दीप दिखाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

- मान्यता है कि पीपल के मूल में भगवान् विष्णु, तने में शिव तथा अगर भाग में ब्रह्मा जी का निवास है। इसलिए सोमवार को यदि अमावस्या हो तो पीपल के पूजन से अक्षय पुण्य लाभ तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

- विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के पेड़ को दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन आदि से पूजा और पीपल के चारों और 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है और हर परिक्रमा में कोई भी तिल मिश्रित मिठाई या फल चढाने से विशेष लाभ होता है। ये सभी 108 फल या मिठाई परिक्रमा के बाद ब्राह्मण या निर्धन  को दान करे। इस प्रक्रिया को कम से कम तीन सोमवती तक करने से सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। 

- इस दिन जो भी स्त्री तुलसी या मां पार्वती पर सिंदूर चढ़ा कर अपनी मांग में लगाती है वह अखंड सौभाग्यवती बनी रहती है।

- जिन जातकों की जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष है। वे लोग यदि सोमवती अमावस्या पर चांदी के बने नाग- नागिन की विधिवत पूजा कर उन्हें नदी में प्रवाहित करें, शिव जी पर कच्चा दूध चढाये, पीपल पर मीठा जल चढ़ा कर उसकी परिक्रमा करें। धूप दीप दिखाएं, ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करें तो निश्चित ही काल सर्प दोष की शांति होती है।

- इस दिन जो लोग व्यवसाय में परेशानी उठा रहे हैं, वे पीपल के नीचे तिल के तेल का दिया जलाकर नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र का कम से कम 5 माला जप करें तो व्यवसाय में आ रही दिक्कते समाप्त होती हैं। इस दिन अपने पितरों के नाम से पीपल का वृक्ष लगाने से जातक को सुख, सौभग्य, पुत्र की प्राप्ति होती है एवं पारिवारिक कलेश दूर होते है।

- मौनी अमावस्या को तुलसी के पौधे की नमो नारायणाय जपते हुए  108 बार परिक्रमा करने से दरिद्रता दूर होती है।

- जिन लोगों का चन्द्रमा कमजोर है वो गाय को दही और चावल खिलाएं अवश्य ही मानसिक शांति मिलेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.