मकर संक्रांति 2019: जानिये क्या है पर्व विशेष की तिथि परिवर्तन का राज और दान की परंपरा
15 जनवरी को है इस बार मकर संक्रांति। हर राशि पर होगा विशेष प्रभाव।
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
आगरा, तनु गुप्ता। इस वर्ष मकर संक्रांति पर्व मनाने की तिथियों को लेकर लोगों में शंका बनी हुई है। वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार लोग 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति का पर्व मनाना उचित समझते हैं। जबकि इस बार ज्योतिषीय गणना कुछ और ही कह रही है।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार 15 जनवरी को अमृत सिद्धि योग है। भगवान सूर्य देव 14 जनवरी सोमवार को रात्रि 7: 52 बजे उतराषाढ़ा नक्षत्र के दूसरे चरण मकर राशि में प्रवेश करेंगे। उस समय चन्द्र देव अश्विनी नक्षत्र मेष राशि में विचरण करेंगे। इस अवधि में सिद्धि योग रहेगा।
क्या है मकर संक्रांति की तिथि गणना
पंडित वैभव जोशी के अनुसार सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह- छह माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलाद्र्घ में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलाद्र्घ में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहां पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलाद्र्घ की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है।
इनके लिए बन रहा शुभ- अशुभ का योग
पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि संक्रांति का वाहन सिंह (शेर) उप वाहन हाथी है। वार नाम व नक्षत्र नाम ध्वांक्षी है। जो उद्योगपतियों, व्यापारियों, आयात- निर्यात करने वालो, शेयर कारोबारियों के लिये सुख फलदायक है।
संक्रांति का उत्तर दिशा की ओर गमन एवं ईशान कोण पर दृष्टि है। जिसके प्रभाव से देश के उत्तरी प्रांतों एवं उत्तरी क्षेत्रों के लिए कष्टकारक योग बनेंगे। देवजाति की यह संक्रांति शरीर पर कस्तूरी का लेप लगाकर सफेद वस्त्र पहने, फिरोज के आभूषण धारण कर पुनांग का पुष्प एवं माला पहने, हाथों में शस्त्र भाला लेकर, सोने का पात्र लिये हुये अन्न का भोजन कर वैश्य के घर में प्रवेश कर रही है। यह संक्रांति 30 मुहूर्त वाली है। जिससे सभी धान्य पदार्थो के भाव स्थिर रहेंगे। चावल, फल-फूल, सब्जी, सुगन्धित पदार्थ, सूत, कपास, वस्त्र, धातु, सोना- चांदी, सफेद वस्तुओं के भाव तेज होंगे। शेयर बाजार में तेजी आयेगी। वहीं अच्छी बात यह है कि यह संक्रांति रात्रि एक याम व्यापिनी होने से आतंकवादियों, हिसंक प्रवृत्ति वालों, देश द्रोहियों के लिये कष्ट कारक रहेगी।
क्यों करते हैं मकर संक्रांति पर दान
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता (नेगेटिविटी) का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता (पाजिटिविटी) का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।
सर्वोपरी है सूर्य उपासना
पंडित वैभव जोशी के अनुसार वेदों में सूर्य उपासना को सर्वोपरि माना गया है। जो आत्मा, जीव, सृष्टि का कारक एक मात्र देवता हैं। जिनके हम साक्षात रूप से दर्शन करते है। सूर्य देव कर्क से धनु राशि में छह माह भ्रमण कर दक्षिणयान होते हैं, जो देवताओं की एक रात्रि होती है। सूर्य देव मकर से मिथुन राशि में छह माह भ्रमण कर उत्तरायण होते है, जो एक दिन होता है। जिसमें सिद्धि साधना पुण्यकाल के साथ- साथ मांगलिक कार्य विवाह, गृह प्रवेश, जनेउ संस्कार, देव प्राण- प्रतिष्ठा, मुंडन कार्य आदि सम्पन्न होते हैं।
मकर संक्रांति पर दान का महत्व
इस पुण्यकाल अर्थात अमृत सिद्धि योग, रवि योग में दान-पुण्य, स्नान आदि समस्त कार्य करने से हजार गुना फल मिलेगा। पद्मपुराण के अनुसार इस संक्रांति में ऋतुओं के अनुकूल वस्तुओं, पदार्थों, तिल, गुड़, खिचड़ी, मिष्ठान्न, बर्तन, कपास, ऊनी वस्त्र आदि वस्तुओं के दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
भगवान सूर्य देव को लाल वस्त्र, गेंहू, गुड़, मसूर की दाल, तांबा, सोना, सुपारी, लाल फल, लाल पुष्प, नारियल आदि दक्षिणा के साथ दान करने से सामान्य दिन की अपेक्षा हजार गुना फल मिलता है।
किस राशि पर क्या रहेगा प्रभाव
मकर संक्रांति का राशि के अनुसार फल मिलेगा। जैसे मेष, मिथुन, वृश्चिक राशि वालों को सोने के पाये में होने से शुभ फलदायक है। सिंह, धनु, मीन राशि वालों को चांदी के पाये होने से शुभाशुभ मिश्रित फलदायक है। कर्क, तुला, कुंभ राशि वालों को तांबे के पाये होने से मध्यम फलदायक है। वृष, कन्या, मकर राशि वालों को लोहे के पाये होने से न्यूनतम फलदायक है।
क्या है खिचड़ी की परंपरा
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का भोग भी लगाया जाता है। इसके अलावा इस दिन तिल, गुड़, रेवड़ी, गजक का प्रसाद भी बांटा जाता है। मान्यता है कि चावल को चंद्रमा का प्रतीक मानते हैं, काली उड़द की दाल को शनि का और हरी सब्जियां बुध का प्रतीक होती हैं। कहते हैं मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने से कुंडली में ग्रहों की स्थिती मजबूत होती है। इसलिए इस मौके पर चावल, काली दाल, नमक, हल्दी, मटर और सब्जियां डालकर खिचड़ी बनाई जाती है।
कैसे शुरू हुई यह परंपरा
मकर संक्रांति को खिचड़ी बनने की परंपरा को शुरू करने वाले बाबा गोरखनाथ थे। मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इस वजह से योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे।
योगियों की बिगड़ती हालत को देख बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन पौष्टिक होने के साथ- साथ स्वादिष्ट था। इससे शरीर को तुरंत ऊर्जा भी मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा। झटपट तैयार होने वाली खिचड़ी से नाथ योगियों की भोजन की परेशानी का समाधान हो गया और इसके साथ ही वे खिलजी के आतंक को दूर करने में भी सफल हुए। खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला आरंभ होता है। कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।