माघ पूर्णिमा 2019: आज बन रहा है विशेष संयोग, करेंगे दान तो बनेगा पुण्य और मोक्ष का योग
पुष्य नक्षत्र के कारण माघ पूर्णिमा का बढ़ा महत्व। संगम तट पर कल्पवास का भी अंतिम पड़ाव।
आगरा, तनु गुप्ता। माघ माह यानि हिंदू पंचांग के सभी माह में से महान माह। जिस माह में किये गए सत्कार्य मोक्ष प्रदान कराते हैं। इस वर्ष माघ पूर्णिमा का महत्व पुष्य नक्षत्र के संयोग के कारण और बढ़ गया है। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार माघ मास का नाम मघा नक्षत्र के नाम पर पड़ा है, जिसका अर्थ होता है महान। इस बार माघ पूर्णिमा पर कई बड़े संयोग बन रहे हैं। यह अवसर विशेष फलदायी, मोक्ष प्रदान करना वाला और समस्य मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
मान्यता है कि माघ पूर्णिमा पर पुष्य नक्षत्र हो तो इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। संयोग से इस बार माघ पूर्णिमा पुष्य नक्षत्र में ही मनाई जाएगी। इस नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा कहा जाता है। इस नक्षत्र में किया गया दान चिरस्थायर हो जाता है। इस तिथि पर दान-पुण्य से नरक लोक से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा इस बार माघ पूर्णिमा पर तीन विशेष योगों का संयोग भी बन रहा है। यह रूचक, बुधादित्य और कर्मजीव योग हैं। जब चंद्रमा से केंद्र में मंगल उच्च या अपनी राशि में हों तो रूचक योग बनता है। इसी तरह चंद्रमा से दशम भाव में मंगल के रहने से कर्मजीव योग बनता है। सूर्य व चंद्रमा के साथ रहने पर बुधादित्य योग बनेगा।
माघ पूर्णिमा की तिथि 18 और 19 फरवरी की मध्य रात्रि को 1.11 बजे से लग चुकी है । यह 19 फरवरी की रात 9.23 बजे तक रहेगी। माघ के महत्व की बात करें तो इस मास में कल्पवास की बड़ी महिमा है। इस माह तीर्थराज प्रयाग में संगम के तट पर निवास को कल्पवास कहते हैं।
कल्पवास का अर्थ
डॉ शोनू बताती हैं कि कल्पवास का अर्थ है संगम के तट पर निवास कर वेदों का अध्ययन और ध्यान करना। कल्पवास धैर्य, अहिंसा और भक्ति का संकल्प होता है। इस दौरान प्रयागराज में हर साल माघ मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होते हैं। प्रयाग में कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कल्पवास का समापन माघ पूर्णिमा के दिन स्नान के साथ होता है। मान्यता है कि इस दिन प्रयाग में त्रिवेणी स्नान करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूरे माह चलता है माघ मेला माघ मेला की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से होती है। यह हिन्दुओं का सर्वाधिक प्रिय धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला है। यह भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों का माघ मेला प्रसिद्ध है। प्राचीन मान्यता है कि माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वहीं भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी। पद्म पुराण के अनुसार-माघ स्नान से मनुष्य के शरीर के कष्ट दूर हो जाते हैं।
पुष्य नक्षत्र से बढ़ा स्नान का महत्व
शास्त्रों के अनुसार यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस तिथि का महत्व और बढ़ जाता है। खास बात यह है कि इस बार माघ पूर्णिमा पुष्य नक्षत्र पड़ रहा है। पुष्य नक्षत्र नक्षत्रों का राजा माना जाता है। इस नक्षत्र में किया गया दान चिरस्थायी होता है। इसलिए इस बार माघ पूर्णिमा का खास महत्व हो गया है।माघ पूर्णिमा पर गंगाजल में श्रीहरिविष्णु विराजते हैं माघी पूर्णिमा पर शीतल जल गंगा में डुबकी लगाने से व्यक्ति पापमुक्त होकर स्वnर्ग लोक को प्राप्त करता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार माघी पूर्णिमा पर स्वयं भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति करा सकता है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक ग्यारहवें महीने यानी माघ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व है। इस दिन को पुण्य योग भी कहा जाता है।
दान से ब्रह्मलोक की प्राप्ति
ब्रह्म वैवर्त्य पुराण के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद दान करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
कल्पवास संपन्न होगा
माघ पूर्णिमा पर मासभर का माघ स्नान संपन्न होगा। पूरे माघ में श्रद्धालु व तपी नदी के समीप एक महीने तक कल्पवास व तप करते हैं।
दान करें
वस्त्र, गुड़, कपास, घी, लड्डू, फल, अन्न आदि।
माघ पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक नर्मदा नदी के तट पर शुभव्रत नामक विद्वान ब्राह्मण रहते थे, लेकिन वे काफी लालची थे। इनका लक्ष्य किसी भी तरह धन कमाना था और ऐसा करते-करते ये समय से पूर्व ही वृद्ध दिखने लगे और कई बीमारियों की चपेट में आ गए। इस बीच उन्हें अंर्तज्ञान हुआ कि उन्होंने पूरा जीवन तो धन कमाने में बीता दिया, अब जीवन का उद्धार कैसे होगा। इसी क्रम में उन्हें माघ माह में स्नान का महत्व बताने वाला एक श्लोक याद अाया। इसके बाद स्नान का संकल्प लेकर ब्राह्मण नर्मदा नदी में स्थान करने लगे। करीब 9 दिनों तक स्नान के बाद उऩकी तबियत ज्यादा खराब हो गई और मृत्यु का समय आ गया। वे सोच रहे थे कि जीवन में कोई सत्कार्य न करने के कारण उन्हें नरक का दुख भोगना होगा, लेकिन माघ मास में स्नान के कारण उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।