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सर्वेश्वर के जन्म का साक्षी बनने को भक्त उठाते कष्ट

देश-प्रदेश के कई जिलों से आए भक्तों ने डाला सड़कों पर डेरा।

By JagranEdited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 02:09 PM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 02:09 PM (IST)
सर्वेश्वर के जन्म का साक्षी बनने को भक्त उठाते कष्ट
सर्वेश्वर के जन्म का साक्षी बनने को भक्त उठाते कष्ट

आगरा(योगेश जादौन): यह परंपरा है और दस्तूर भी। अजन्मा के जन्म पर मां देवकी के कष्ट में सहभागी होने की खातिर भक्त कष्ट उठाते हैं। अभावों से बेपरवाह जहां जगह मिले, वहां सो लेते हैं। संपन्न उन्हें मजबूरी मानते हैं लेकिन उनकी नजर में यह कान्हा का वात्सल्य है। जन्माष्टमी पर कन्हैया की झलक पाने तमाम राज्यों से आए श्रद्धालुओं ने रात से ही डेरा डाल लिया है।

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रात के 10 बजे थे। केशव टीला पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान से कन्हैया के जयकारे लग रहे थे। मंदिर की सतरंगी आभा इलाके में फैली थी। जन्मभूमि को जाने वाली सड़क के डिवाइडर पर दूर तक चादर बिछाए लोग सोये पड़े थे। ये वे लोग थे, जो दिन भर वृंदावन और मथुरा के मंदिरों में घूमकर थकान से चूर थे। हॉर्न बजाते गुजरते वाहनों का तेज शोर भी इनकी नींद में खलल नहीं डाल रहा था। कुछ माताएं बच्चों के पैर दबा रही थीं तो कुछ बुजुर्ग महिलाएं खाने की तैयारी में थीं। बांदा, हमीरपुर, झांसी, सागर, हरदोई, सुल्तानपुर और मध्यप्रदेश के तमाम जिलों से बसों और ट्रेनों से आए ये लोग अब दो दिन सड़क पर ही सोएंगे और यहीं भोजन बनाएंगे। भोजन की व्यवस्था नहीं होगी तो भंडारों का सहारा लेंगे। भाव सिर्फ इतना है कि रात 12 बजे जब पालनहार जन्म लें, वह उस घड़ी के गवाह बनें। समस्या नहीं सौभाग्य है ये:

काहे की तकलीफ बाबू सा, माता देवकी ने जो तकलीफ सही उसके आगे तो हमारी समस्याएं कुछ भी नहीं। हमारे गांव से लोग हर साल मथुरा आते हैं।

- बादामी देवी, सुल्तानपुर

खुद ही देख लो साहब, खुले आसमान के नीचे सब्जी-भात बना रहे हैं। यहीं सड़क पर बिछौना बिछाकर सो जाएंगे। ठाकुरजी ने तो इसी भूमि पर नंगे पैर अपनी लीलाएं की।

- रामकली, गांव कारीपुर, सुल्तानपुर

कई साल से दर्शन करने आ रहे हैं। इस बार बच्चों के साथ आए हैं। इनके पैरों की तेल मालिश कर राधा-कृष्ण की सेवा करने जैसा सुख मिल रहा है।

- मांडवी, गांव रूपापुर, हरदोई समस्याएं तो हमारे यहां भी बहुत हैं साहब। मकसद तो ठाकुरजी के दर्शन करना है। इसमें थोड़े कष्ट तो सहने पड़ते हैं। कष्ट नहीं तो काहे की तीर्थयात्रा।

- महेश चंद, सागर, मध्य प्रदेश


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