Chhath puja 2018: यमुना घाटों पर उमड़़ा़ आस्था का सैलाब, अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य
छठ पूजा में चल रहा है 36 घंटे का निर्जला व्रत। शाम को डूबते सूर्य को अघ्र्य देेने की चल रही है तैयारी।
आगरा [जागरण संवाददाता]: यमुना मैया के एक छोर से जल में उतरते सूर्य देव और दूसरे छोर से उन्हें अर्घ्य देकर पुण्यलाभ कमाते श्रद्धालु। छठी मैया के गीतों की धुन और यमुना मैया की जय जयकार। गन्ने, फल, फूल और दीपों की माला से जगमग यमुना के घाट। आस्था का यही नजारा दिख रहा था मंगलवार की शाम। छठ पर्व के अंतर्गत मंगलवार को अस्ताचलगामी सूर्य की उपासना के लिए यमुना घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। श्रद्धालुओं ने 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हुए भगवान भास्कर की आराधना की। इससे पूर्व घरों में तैयारियां हाेेती रहीं। निर्जला व्रत रहते हुए महिलाओं ने स्वच्छता का ध्यान रख प्रसाद के ठेकुआ बनाए। परिवार के अन्य सदस्य फल, सब्जी व अन्य सामान से टोकरी को सजाए।
बुधवार को तड़के सूर्योदय से पूर्व भक्ति का यही प्रवाह फिर यमुना के घाटों पर दिखेगा। सूर्य उपासना के महापर्व छठ पूजा में सोमवार शाम से 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ हो चुका है। भगवान भाष्कर को बुधवार सुबह अघ्र्य देने के साथ व्रत का पारायण होगा। वहीं, पूर्वांचल समाज के घरों में रौनक छाई हुई है और छठ मैया के गीत गूंज रहे हैं।
स्वच्छता और नियमों का रखा जाता है विशेष ध्यान
पूर्वांचल समाज द्वारा छठ पूजा का महापर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसकी शुरुआत रविवार को नहाय खाय से हुई थी। घर की शुद्धि करने के बाद व्रतियों ने दिनभर व्रत रखा था। शाम को चावल, लौकी की सब्जी और चने की दाल से व्रत का पारायण किया गया था। महापर्व में दूसरे दिन खरना हुआ। दिनभर व्रत धारण किया। शाम को गुड़ और चावल की खीर और पूड़ी से व्रत का पारायण किया गया। इस दौरान इस बात का ध्यान रखा गया कि व्रत का पारायण करते समय कोई आवाज नहींं हो। अगर आवाज हो जाती है तो फिर व्रती भोजन नहीं करता। इसके बाद 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शुरू हो गया। इसमें बुधवार सुबह सूर्य को अघ्र्य देने तक व्रती कुछ भी खाएंगे-पिएंगे नहीं। उधर, महापर्व की रौनक पूर्वांचल समाज के घरों में देखने को मिल रही है। व्रती चूल्हे पर अपना भोजन स्वयं पका रहे हैं।
छठ गीतों में संस्कृति की झलक
घरों में महिलाएं छठ मैया के गीत गा रही हैं, जिनमें पूर्वांचल संस्कृति की झलक दिख रही है। केलवा के पात पर उगेलन सुरुज देव..., कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाये... और केरवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुग्गा मेडऱाय... जैसे मधुर गीत गाए जा रहे हैं।
संतान प्राप्ति व दीर्घायु के लिए व्रत
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को किया जाने वाला यह व्रत संतान प्राप्ति व दीर्घायु के लिए किया जाता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर व्रती महिलाओं के अन्न ग्रहण करने के बाद सप्तमी को यह व्रत पूरा होता है।