आगरा के बम ने हिलाई थी ब्रिटिश हुकूमत की जमीन
जागरण संवाददाता, आगरा: आजादी के नारे लगाते हुए फांसी के फंदे को भी हंसते हुए चूमने वाले क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह की बुधवार को जयंती है।
जागरण संवाददाता, आगरा: आजादी के नारे लगाते हुए फांसी के फंदे को भी हंसते हुए चूमने वाले क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह की बुधवार को जयंती है। देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने छोटी सी उम्र में इंकलाब का नारा बुलंद करते हुए ब्रिटिश हुकूमत की नाक में दम कर दिया था। भगत सिंह ने दिल्ली की ब्रिटिश असेंबली में जो बम फोड़ा था, वो आगरा में बना था।
आगरा उस समय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र था। यहां पर क्रांतिकारी जुटकर योजनाएं बनाते थे। आजादी के प्रयासों में सफलता नहीं मिलने पर बम बनाने से लेकर दूसरे ठिकानों तक पहुंचाने के लिए यहां नेटवर्क तैयार किया गया था। जिससेदेश को अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों से मुक्ति दिलाई जा सके।
भगत सिंह ने यहां जलाई देशभक्ति की लौ
आगरा में ¨हदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ने अपना केंद्र बनाया था। चंद्रशेखर आजाद के निर्देश पर ही सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने यहां आकर लोगों में आजादी पाने की नई चेतना जगाई थी। आठ अप्रैल, 1929 को भगत सिंह ने जो बम दिल्ली लेजिस्लेटिव असेंबली में फोड़ा था, उसे यतींद्र नाथ दास ने आगरा में ही तैयार किया था। इसका जिक्र सरदार भगत सिंह शहीद स्मारक समिति द्वारा मुद्रित किताब 'आगरा मंडल के देशभक्त शहीदों पर स्मारिका' में है। लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव को फांसी देने के बाद आगरा के युवा सिर पर कफन बांधकर आजादी की जंग में कूद पड़े। इसके लिए शीतला गली में एक मकान किराये पर लिया था। यहां विस्फोटक पदार्थ एकत्र करने और बमों के खोल बनवाने का काम शुरू कर दिया गया। एसके बोस ने विस्फोटक पदार्थो, मातादीन आजाद ने बमों के खोल बनवाने और सुरेंद्र सिंह वर्मा ने बमों को अन्य नगरों में पहुंचाने का जिम्मा संभाला था।
कई जगह किया गया बम का परीक्षण
ब्रिटिश नौकरशाही के दमन का जवाब देने को वर्ष 1932 में क्रांतिकारियों ने तोता का ताल पर विस्फोट किया था। दूसरा बम मोती कटरा में रखा गया, लेकिन वह फटा नहीं। एक धमाका यमुना किनारे छत्ता थाने में किया गया। एक सप्ताह में हुए सीरियल विस्फोटों से ब्रिटिश हुकूमत हिल गई। पुलिस ने खाली पड़े कई मकानों को खंगाला। 23 अप्रैल, 1932 को बम बनाने के कारखाने पर छापा मारा। यहां बने-अधबने बम, विस्फोटक पदार्थ, पिस्तौल, कारतूस मिले थे। जो क्रांतिकारी पकड़े गए, उन पर शीतला गली बम केस चलाया गया। छह दिसंबर, 1932 को सेशन जज पीसी पाउडन ने सुरेंद्र सिंह वर्मा को काला पानी की सजा सुनाई। साक्ष्यों के अभाव में गौरीशंकर गर्ग, मातादीन आजाद व एसके बोस को रिहा कर दिया गया। बाद में हाईकोर्ट ने वर्मा को सात साल के कारावास का दंड दिया था।