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ग्रीष्म ऋतु में बदला बांकेबिहारी का भोग राग, जानिए भोजन में क्या लेंगे आराध्य

भोजन में अब गरिष्ठ की जगह शीतल पेय अर्पित होंगे। सूखे मेवों का इस्तेमाल कम दूध-दही का होगा ज्यादा प्रयोग।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 09:07 PM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 09:07 PM (IST)
ग्रीष्म ऋतु में बदला बांकेबिहारी का भोग राग, जानिए भोजन में क्या लेंगे आराध्य
ग्रीष्म ऋतु में बदला बांकेबिहारी का भोग राग, जानिए भोजन में क्या लेंगे आराध्य

आगरा, जेएनएन। ऋतु परिवर्तन के साथ ठा. बांकेबिहारी मंदिर में दर्शन के समय में हुए बदलाव के साथ भोग राग सेवा में भी बदलाव आ चुका है। आराध्य को परोसे जाने वाले भोजन में अब गरिष्ठ पदार्थ की बजाय शीतल पदार्थ अर्पित किए जा रहे हैं। सूखे मेवा में कमी करने के साथ दूध, दही से बने पदार्थ आराध्य को राजभोग और शयनभोग में अर्पित किए जा रहे हैं। बांकेबिहारी की पोशाक में भी अब मौसम के अनुरूप परिवर्तन हो चुका है।

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ठा. बांकेबिहारीजी महाराज की सेवा बालक के रूप में होती है। मंदिर में भोग राग सेवा का विशेष महत्व है। ऋतुओं के अनुसार आराध्य को पोशाक धारण कराई जाती है और उन्हें भोग भी ऋतु के अनुसार ही परोसा जाता है। सर्दियों में आराध्य के भोग में गरिष्ठ पदार्थ और सूखे मेवा की मात्रा प्रचुर होती है। मौसम के बदलाव के साथ उनके पहनावे और भोग में भी बदलाव कर दिया गया है। मंदिर सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी बताते हैं कि मौसम में गर्माहट शुरू होने के साथ ही मेवा और केसर की मात्रा भोग में कम कर दी गई है। जबकि दही और दूध से बने व्यंजनों की मात्रा बढ़ा दी गई है। ताकि ठाकुरजी को भोजन में राहत महसूस हो सके। ठाकुरजी की पोशाक में भी बदलाव कर दिया गया है। अब हल्की पोशाक धारण कराई जा रही है। ताकि गर्मी के चलते ठाकुरजी को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो। उन्होंने बताया कि ठाकुरजी को दिन में चार बार भोग अर्पित किया जाता है। सुबह श्रृंगार आरती के बाद बाल भोग में कचौरी, लड्डू, दोपहर को राजभोग में कच्चा व पक्का प्रसाद अर्पित होता है। शाम को मंदिर के पट खुलने के बाद उत्थापन भोग में दही बड़ा, आलू टिक्की, पकौड़े आदि और रात को शयनभोग में ठाकुरजी को पक्का प्रसाद और मिठाई अर्पित की जाती है। रात को ठाकुरजी को शयन से पहले पान का बीड़ा रखा जाता है साथ ही एक बाक्स में चार लड्डू रखे जाते हैं। ताकि जब बांकेबिहारीजी जी निधिवन से रासलीला करके मंदिर लौटें और उन्हें भूख लगे तो लड्डू का भोग लगा सकें।


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