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Bakrid 2020: अब बस सात दिन बाकि, तीन दिन की बंदी, लोगों ने निकाला ये तरीका

Bakrid 2020 बकरीद के सात बाकी कुर्बानी के पशुओं के लिए परेशान लोग । दस करोड़ से ज्यादा होगा पशु बिक्री का कारोबार।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 07:41 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 07:41 AM (IST)
Bakrid 2020: अब बस सात दिन बाकि, तीन दिन की बंदी, लोगों ने निकाला ये तरीका
Bakrid 2020: अब बस सात दिन बाकि, तीन दिन की बंदी, लोगों ने निकाला ये तरीका

आगरा, जागरण संवाददाता। बकरीद (ईद-उल-अजहा) के सात दिन बाकी हैं। इसमें भी चार दिन बाजार खुलेंगे। तीन दिन की बंदी है। इसके चलते मुस्लिम समुदाय बाजारों में खरीदारी करने पहुंच रहे हैं। इस ईद पर कुर्बानी के पशुओं का कारोबार दस करोड़ रुपये से ज्यादा का होता है, लेकिन इस बार हाट नहीं लगने से प्रभावित है। बकार व्यापारियों ने अॉनलाइन बिक्री शुरू कर दी है। इसके अलावा घरों से भी बकरा खरीदे जा रहे हैं।

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पिछली ईद पर नहीं हुई थी खरीदारी

लॉकडाउन के चलते ईद-उल-फितर पर लोग खरीदारी नहीं कर पाए थे। इसलिए अब नए कपड़े व जूतों खरीद हो रही है। हालांकि रोजगार की कमी से खरीदारी प्रभावित है।

नस्ल पर तय होती है बकरे की कीमत

कुर्बानी देने के लिए विभिन्न नस्लों के बकरों की खरीद होती है। नस्ल के हिसाब से ही बकरों की कीमत तय होती है। अजमेरी-तोतापुरी सबसे महंगे बिक रहे हैं। अन्य बकरे पांच से 20 हजार रुपए तक के हैं। जबिक तोतापरी कीमत 20 हजार से 50 हजार रुपए तक है। बकरा व्यापारी सौकत अली ने बताया तोतापुरी बकरे के कान डेढ फुट लंबे होते हैं और बकरे की नाक तोते के जैसी होती है।

घर में होती है कुर्बानी

बकरीद के दिन ईद की नमाज अदा करने के बाद घरों में ही कुर्बानी दी जाती है। इंतकाल हो चुके अपने अजीजों के नाम पर भी कुर्बानी देते हैं। बकरे के चमड़े को मदरसों में दान किया जाता है।

कैसे शुरू हुई कुर्बानी

इस्लाम धर्म के पैगंबरों में हजरत इस्माइल एक पैगंबर थे। इन्हीं की वजह से ही कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई। मौलाना रियासत अली ने बताया कि एक बार हजरत इस्माइल के पिता हजरत इब्राहिम के ख्वाव में अल्लाह ने कुछ कुर्बान करने के लिए हुक्म किया। उन्होंने पहले दिन सौ ऊंट कुर्बान किए। दूसरे दिन दौ से ऊंटों की कुर्बानी दी। अल्लाह ने सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी करने का फिर से हुक्म दिया। हजरत इब्राहिम को उनका बेटा सबसे अजीज था। अल्लाह के हुक्म पर उन्होंने प्यारे बेटा की कुर्बान करने की ठान ली। कुर्बानी के लिए ले जाते समय रास्ते में शैतान मिला, लेकिन उसके बहकावे में नहीं आए। उसको पत्थर मारकर भगा दिया। हज यात्रा भी अब उस रास्ते पर शैतान को पत्थर मारते हैं। इब्राहिम ने अपनी और बेटा की आंखों पर पट्टी बांधी। मौलाना बताते हैं कि इब्राहिम ने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई। वह छुरी दुंबा (भेड़) की गर्दन पर चली। इब्राहिम ने आंखों से पट्टी हटाकर देखा, तो बेटा सामने सही सलामत खड़ा था। तब से कुर्बानी की परंपरा आम हो गई। मौलाना के अनुसार इस परंपरा से पहले केवल हज पर जाने वाले हज पू्री होने की खुशी में कुर्बानी करते थे।

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