Azadi ka Amrit Mahotsav: नूरी दरवाजा में रणजीत बनकर रहे थे भगत सिंह, यादें बसी हैं आज भी उस मकान की दीवाराें में
आगरा के नूरी दरवाजा में जर्जर हो रहा है क्रांतिकारियों की शरण स्थली रहा मकान। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ने शहर को बनाया था अपना केंद्र। उस क्षेत्र का नाम बदलकर भगत सिंह चौक रखा गया प्रतिमा पर होती है पूजा।
आगरा, जागरण संवाददाता। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देश के स्वातंत्र्य समर में ताजनगरी में जहां स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना खून-पसीना बहाया, वहीं क्रांतिकारियों ने भी शहर को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया था। यहां चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह छद्म नामों से रहे थे। नूरी दरवाजा में वह मकान आज भी मौजूद है, जहां क्रांतिकारियों ने पनाह ली थी। यह आज जर्जर हो चुका है और उसके संरक्षण को कोई कदम नहीं उठाया जा सका है।
सरदार भगत सिंह शहीद स्मारक समिति की किताब "आगरा मंडल के देशभक्त शहीदाें पर स्मारिका' में जिक्र है कि जब हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ने आगरा को अपना केंद्र बनाया तो चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने यहां के नागरिकों में नई चेतना का संचार किया।
वर्ष 1926 से 1929 तक शहर क्रांतिकारियों की गतिविधियों का केंद्र रहा। वह छद्म नामों से नूरी दरवाजा, हींग की मंडी और नाई की मंडी स्थित मकानों में किराये पर रहे। चंद्रशेखर आजाद बलराज, सरदार भगत सिंह रणजीत, राजगुरु रघुनाथ और बटुकेश्वर दत मोहन बनकर यहां रहे थे। नूरी दरवाजा उनकी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था।
यहां आज भी वह मकान स्थित है, जिसे क्रांतिकारियों ने कभी अपनी शरण स्थली बनाया था। किताब में इस बात का जिक्र भी है कि सरदार भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार को नींद से जगाने को दिल्ली की लेजिस्लेटिव असेंबली में जो बम फोड़ा था, वह आगरा में ही बना था।
क्रांतिकारियों ने नूरी दरवाजा स्थित जिस मकान को अपनी पनाहगाह बनाया था, आज वह जर्जर हो चुका है। इसमें नीचे पेठा व अन्य सामान की दुकानें हैं। ऊपरी मंजिल क्षतिग्रस्त हो चुकी है। आजादी के नायकों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनकी यादों को इस तरह विस्मृत कर दिया जाएगा।