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जिनका कोई नहीं, उनका है ये ‘अपना घर’, अनूठी है यहांं प्रभुु जी की सेवा Agra News

भटके-बिछड़ों से रिश्ते निभाए जाते हैं इसके आंगन में। सड़कों पर घूमते अनाथ दिव्यांगों का होता है यहां इलाज।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 01:57 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 01:57 PM (IST)
जिनका कोई नहीं, उनका है ये ‘अपना घर’, अनूठी है यहांं प्रभुु जी की सेवा Agra News
जिनका कोई नहीं, उनका है ये ‘अपना घर’, अनूठी है यहांं प्रभुु जी की सेवा Agra News

आगरा, रसिक शर्मा। ‘साथ-साथ’ फिल्म का एक गीत था- ‘ये तेरा घर-ये मेरा घर, किसी को देखना हो गर, तो हमसे आ के मांग ले, तेरी नजर-मेरी नजर।’ ये गीत एक परिवार की खुशियों पर था। गोवर्धन में भी ऐसा ही एक घर है- ‘अपना घर’। इस घर में रहने वालों में भले ही खून का रिश्ता नहीं होता मगर, इंसानियत के रिश्तों की नई-नई इबारत यहां अक्सर लिखी जाती हैं। जिनका कोई नहीं होता, जो भटकते हैं, इस ‘अपना घर’ में उनको ‘प्रभुजी’ की तरह से रखा जाता है।

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‘अपना घर’ की स्थापना अलीगढ़ के मूल निवासी डॉ. वीएम भारद्वाज और उनकी पत्‍नी डॉ. माधुरी भारद्वाज के समाजसेवा के प्रति समर्पण की मिसाल है। बीएचएमएस डिग्रीधारक डॉ. वीएम भारद्वाज भरतपुर में प्रैक्टिस कर रहे थे, वर्ष 1993 में शादी के बाद बीईएमएस डिग्री धारक पत्‍नी माधुरी भी वहीं आ गईं। यहां पर अनाथों की सेवा के लिए नि:संतान रहने का संकल्प लिया। भरतपुर के बङोरा गांव में मकान खरीद इसे नाम दिया-‘अपना घर’। सेवा का सिलसिला बढ़ा तो 3 सितंबर 2017 को गोवर्धन में भी बड़ी परिक्रमा मार्ग स्थित संत जुगल किशोर के वंशीवट आश्रम में ‘अपना घर’ बना दिया।

हमारे लिए तो प्रभुजी

‘अपना घर’ गोवर्धन के अध्यक्ष भूदेव शर्मा बताते हैं कि कहीं भी अनाथ मानसिक दिव्यांग नजर आते हैं तो उन्हें यहां लाया जाता है। सोशल मीडिया और पुलिस के माध्यम से उनके स्वजनों की तलाश कर उन्हें सौंपा जाता है। यहां रहने वाले दिव्यांगों को ‘प्रभु जी’ पुकारा जाता है। राधाकुंड मार्ग पर दान में मिली 7 एकड़ जमीन पर 750 पलंगों का ‘अपना घर’ निर्माणाधीन है।

हर आयोजन प्रभु जी के साथ

गोवर्धन और उसके आसपास के ज्यादातर लोग अपने पारिवारिक आयोजन की खुशियां ‘अपना घर’ में ‘प्रभु जी’ के साथ साझा करते हैं। हां, यहां भोजन बाहर से नहीं आता, जो भी अपनी खुशियां साझा करते हैं वह यहीं पर ही भोजन बनवाते हैं। उसके पीछे डॉक्टरों का तर्क ये है कि इन्हें चिकित्सकीय दृष्टिकोण से भी भोजन दिया जाता है।

सामान के लिए भगवान को लिखी जाती चिट्ठी

जरूरत के सामान की एक चिट्ठी भगवान के नाम से लिखकर आश्रम में टांग दी जाती है। इसमें चिकित्सा, वस्त्र, आवास और जीवन यापन की अन्य वस्तुएं होती हैं। यहां चंदा मांगने की परंपरा नहीं है। लोग स्वेच्छा से जरूरत का सामान पहुंचा जाते हैं।

ये भी जानिए

- अब तक 44 को स्वजनों से मिलाया

- वर्तमान में 85 प्रभुजी रह रहे हैं।

- करीब डेढ़ सौ प्रभु जी भरतपुर स्थित ‘अपना घर’ पहुंचाए गए।

केरल से आए थे स्वजन

करीब छह माह पहले केरल निवासी सुब्रमण्यम (55) ‘अपना घर’ के लोगों को सौंख अड्डे पर घायल अवस्था में मिले थे। ‘अपना घर’ में उपचार और देखभाल के बाद वे स्वस्थ्य हो गए, स्वजनों की जानकारी दी। ‘अपना घर’ के सदस्यों ने केरल में संबंधित थाने में फोन पर संपर्क किया। खबर मिलने पर स्वजन गोवर्धन आकर सुब्रमण्यम को ले गए थे।


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