Art of Braj: आगरा के एक शिक्षक का प्रयास दे रहा ब्रज की प्राचीन कला को संजीवनी
Art of Braj एमडी जैन इंटर कॉलेज के कला शिक्षक सौरभ गोस्वामी सांझी को सहेज दे रहे संरक्षण की संजीवनी।
आगरा, संदीप शर्मा। चलती चाल मराल बाल सी राधा सखियन मांझ। बीनती फूलन जमुना कूलनि खेलवि सांझी सांझ।। ऐसे ही मनोहारी लोकगीतों के साथ बृज की युवतियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए आंगन में बारिश की फुहारों के बीच दीवार पर सांझी का स्वरुप उकेरती हैं, तो गोबर, फूल, पत्तियां और कौड़ी आदि से बनी आकृति ललित बिहारी श्रीकृष्ण और राधिका जी की लीलाएं को जीवंत कर उठती हैं। हालांकि वक्त की करवट से प्रभावित यह प्राचीन कला अब अपने ही घर में अपना वजूद खो रही है, ऐसे में इसे सहेजने में जुटें हैं एमडी जैन इंटर कॉलेज के कला शिक्षक सौरभ गोस्वामी।
इसके लिए उन्होंने पहले-पहल ऑयल पेंट का उपयोग किया। शुरूआत वृंदावन स्थित घर और राधा रमण मंदिर से की, क्योंकि वह सेवायत परिवार से हैं। साथ ही उन्होंने इसी मंदिर में इस लोककला को सजते, संवरते देखा और सीखा। लॉकडाउन में स्कूल-कॉलेज बंद हुए, तो इसे अवसर मानते हुए उन्होंने इस विधा को लोकप्रिय बनाने के लिए बच्चों को इसका प्रशिक्षण दिया। सफलता भी मिली और बच्चों को सूखे रंगों से भी कलाकृति बनाना सिखाईं, जो अब भी जारी है।
यह भी किए प्रयास
सौरभ बताते हैं कि करीब 400 साल पुरानी यह कला तीन दशक से अपना अस्तित्व खो रही है। उन्होंने वर्ष 2000 से इसके संरक्षण की शुरूआत की। शुरू में कलाकृतियां बनाने में गोबर, पत्तियों और सूखे रंगों की जगह वॉटर कलर और ऑयल पेंट का प्रयोग किया, ताकि उन्हें लंबे समय तक सहेजा जा सके। साथ ही ज्यादा लोग इससे जुड़ें। इस कला के संरक्षण कार्य के लिए नार्थ जोन कल्चर सेंटर ने उन्हें 'कला विद्या' अवार्ड प्रदान कर चुकी है।
ऐसे बनती है सांझी
सांझी का स्वरूप गलता, मारवाड़ी, बेल, खुतर और हौदा के मिलन से बनता है। गलता जमीन से 10 से 12 इंच ऊपर दीवार पर अष्टकमल स्वरूप में बनाया जाता है। मारवाड़ी उसकी अंतिम दीवार होती है, इसके अंदर बेल और फूल बनाए जाते हैं। इसके बाद बेल और हौदा के बीच की जगह रंगों के छीटों से भरे जाते हैं। हौदा, सांझी का मध्य भाग है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी की लीलाओं का युगल चित्रण होता है।
क्या है सांझी
सांझी एक प्राचीन चित्रकला है, जो लोक-परंपरा से जुड़ी है। सांझी का अर्थ संध्या अथवा सांझ से है। बृज में संध्या-काल पूजा-प्रार्थना का काल माना जाता है, लोक रीति के अनुसार बृज की किशोरियां सांझी देवी की पूजा करने को गाय के गोबर व फूलों से सांझी देवी का चित्र रचती थीं और संध्या में उनकी पूजा करती थीं। वहीं मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और राधा-कृष्ण के युगल स्वरूप को गोबर और फूलों की जगह सूखे रंगों से रचा जाता है। सांझी का महत्व पितृ पक्ष में अधिक होता है।