आंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक मित्तल ने दिया इस्तीफा
Ambedkar University पिछले साल जुलाई में किया गया था कार्यविरत अगस्त में प्रो. मित्तल ने ली थी उच्च न्यायालय की शरण। जांच समिति भी बनाई गई थी प्रो. आलोक राय बने रहेंगे कार्यवाहक कुलपति। प्रो. मित्तल की 2020 फरवरी में बतौर कुलपति नियुक्ति हुई थी।
आगरा, जागरण संवाददाता। डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक मित्तल ने स्वेच्छा से त्याग-पत्र दिया, जिसे राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने किया स्वीकार कर लिया है।छह महीने पहले पिछले साल जुलाई में राज्यपाल ने प्रो. मित्तल को कार्य विरत कर दिया था।लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक राय फिलहाल कार्यवाहक कुलपति बने रहेंगे।
प्रो. मित्तल की 2020 फरवरी में बतौर कुलपति नियुक्ति हुई थी। पांच जुलाई 2021 में राज्यपाल के निर्देशों पर अपर मुख्य सचिव महेश कुमार गुप्ता द्वारा उन्हें कार्य विरत करने का पत्र जारी किया गया। राजभवन को प्रो. मित्तल के खिलाफ भ्रष्टाचार, प्रशासनिक एवं वित्तीय अनियमितताओं सहित अन्य गंभीर शिकायतें प्राप्त हुई थीं।राज्यपाल की अध्यक्षता में पिछले साल मई में हुई समीक्षा बैठक में भी प्रो. मित्तल द्वारा राजभवन से संदर्भित बिंदुओं पर कोई भी तैयारी नही की गई थी।उन पर नियम विरूद्ध नियुक्तियां करना, आडिट आपत्तियों का अनुपालन पूर्ण न करना, उच्च नयायालय व अन्य लंबित प्रकरणों पर विश्वविद्यालय पर आवश्यक पैरवी/कार्यवाही न किया जाना, छात्रों को नियमित रूप से उनकी डिग्री न प्रदान करना, कर्मचारियों को अनावश्यक ओवरटाइम भत्ता दिया जाना, नियुक्तियों के संबंध में आवश्यक रोस्टर न तैयार किया जाना आदि आरोप लगाए थे।विश्वविद्यालय के अधिवक्ता पैनल में रहे डा. अरूण दीक्षित ने भी उनके खिलाफ शिकायत पत्र सौंपा था।
राज्यपाल ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच समिति का गठन किया था, जिसके बाद पिछले साल अगस्त में प्रो. मित्तल उच्च न्यायालय चले गए थे।प्रो. मित्तल द्वारा दायर रिट में कहा गया है कि उन्हें कार्य विरत करने से पहले उनसे उनका पक्ष नहीं सुना गया। राज्य विश्वविद्यालय एक्ट के सेक्शन 12(13) के अनुसार आरोपों के बाद भी कुलपति को कार्य से विरत नहीं किया जा सकता है, आरोप सिद्ध होने तक वे कुलपति पद पर आसीन रह सकते हैं। कुछ आरोपों के आधार पर उनके खिलाफ कार्यवाही कर दी गई है। उन्होंने अधिवक्ता डा. अरूण कुमार दीक्षित द्वारा लगाए आरोपों को भी सिरे से नकार दिया है। उनका कहना है कि उन्होंने कोरोना संक्रमित होने के दौरान कोरोना प्रोटोकाल का पालन किया है। उन्होंने 103 अतिथि प्रवक्ताओं की नियुक्ति में नियमों की अनदेखी के आरोप को भी नकारा है। उनके अनुसार उन्होंने यूजीसी के नियमों का पालन किया है। सेल्फ फाइनेंस स्कीम के तहत ही उनका भुगतान किया गया है। अतिथि प्रवक्ताओं की नियुक्ति स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा की गई है। लीगल एडवाइजर के रूप में हरगोविंद अग्रवाल की नियुक्ति पर अपना पक्ष रखते हुए प्रो. मित्तल ने कहा कि हरगोविंद अग्रवाल को छह महीने के अनुबंध पर रखा गया है।हालांकि उच्च न्यायालय से उन्हें राहत नहीं मिली थी।जांच समिति दो बार विश्वविद्यालय आई थी, बयान लिए थे। राजभवन में रिपोर्ट सौंप दी थी।विगत 10 जनवरी को प्रो. मित्तल को राजभवन बुलाया गया था। जहां उन्होंने स्वेच्छा से त्याग-पत्र दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया।प्रो. आलोक राय आगरा आ रहे हैं।