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Amazon Shopping पर बिक रहीं गिरिराज शिलाएं, पढ़ें क्या रहस्य छुपा है पर्वतराज की हरेक शिला में

बालकृष्ण रहस्यमयी लीलाओं के गवाह हैं पर्वतराज गोवर्धन। कान्हा की बाल लीलाओं की गवाही देती हैं गिरिराज शिलाएं। शेर के स्वरूप में बैठे बलदाऊ अपनी सरकार चलाते हैं। गिरिराज शिलाओं पर दर्जनों चिन्ह बने हैं जो राधाकृष्ण की लीलाओं की गवाही दे रही हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 23 May 2022 03:17 PM (IST)Updated: Mon, 23 May 2022 03:17 PM (IST)
Amazon Shopping पर बिक रहीं गिरिराज शिलाएं, पढ़ें क्या रहस्य छुपा है पर्वतराज की हरेक शिला में
गोवर्धन में गिरिराजजी पर्वत का विहंगम दृश्य।

आगरा, रसिक शर्मा। आनलाइन शापिंग वेबसाइट अमेजन पर पर्वतराज गोवर्धन की शिलाओं की बिक्री एक बार फिर चर्चा में है। स्थानीय युवाओं द्वारा सीएम योगी आदित्यनाथ से पर्वतराज के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिए पत्र लिखकर मांग की गइ है। पत्र में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती और थोड़ी थोड़ी दूर पर गश्त की मांग की गइ है। क्या आप जानते हैं गोवर्धन पर्वत की हर शिला में एक रहस्य, एक इतिहास छिपा हुआ है।

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जी हां 'गिरिराजजी' यानी कृष्णकालीन वो पर्वत जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं पूजा और ब्रजवासियों की रक्षा को अपने बाएं हाथ की कानिष्ठा उंगली पर धारण किया था। वैज्ञानिक भी इस पर्वत को साढ़े तीन खरब साल पुराना होने की पुष्टि कर चुके हैं। गोवर्धन पर्वत रहस्य और दिव्यता का अद्भुत संग्रह है। मन्नतें मांगने के लिए देश ही नहीं दुनिया भर के लोग इस दर पर मस्तक झुकाने आते हैं। इंद्र का मान मर्दन करने वाले कन्हैया की लीला का वर्णन आज भी गिरिराज की शिलाओं पर अंकित है। विदेशी आस्था को ब्रज वसुंधरा की तरफ मोड़ता गोवर्धन पर्वत श्रद्धालुओं को महंगी और लग्जरी गाड़ियों को छोड़कर नंगे पैर 21 किलोमीटर चलने को मजबूर कर देता है।

द्वापरयुगीन स्वर्णिम लम्हों को सहेजे गिरिराज शिलाएं आज भी तेजोमय हैं। गिरिराज शिलाओं पर दर्जनों चिन्ह बने हैं जो राधाकृष्ण की लीलाओं की गवाही दे रही हैं।

बालपन में भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज महाराज को ब्रज का देवता बताते हुये इंद्र की पूजा छुड़वा दी। जिससे देवों के राजा इंद्र ने कुपित होकर मेघ मालाओं को ब्रज बहाने का आदेश दिया। सात दिन सात रात तक मूसलाधार बरसात हुई। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गिरिराज पर्वत को अपनी उंगली पर धारण करके ब्रज को डूबने से बचा लिया। इंद्र कान्हा के शरणागत हो गए। उस समय इंद्र अपने साथ सुरभि गाय, ऐरावत हाथी और गोकर्ण घोड़ा लाया। सांवरे का माधुर्य रूप और तिरछी चितवन, मनमोहक मुस्कान देखकर गाय का मातृत्व जाग उठा, उसके थनों से दूध की धार निकलने लगी। दूध की धार के चिन्ह आज भी आन्यौर और पूंछरी के मध्य गिरिराज पर्वत ने सहेज कर रखे है। गोकर्ण घोड़ा, ऐरावत हाथी, सुरभि गाय के उतरने पर उनके पैरों के निशान शिलाओं में दिखाई पड़ते हैं। बाल सखाओं के साथ माखन मिश्री खाकर उंगलियों के बने निशान सहेजे कृष्ण रूपी पर्वत पर भक्ति को शक्ति प्रदान करता है।

शेर के स्वरूप में बैठे बलदाऊ अपनी सरकार चलाते हैं। खासकर ब्रजवासी अपनी पीड़ा दाऊ दादा के दरबार में सुनाते हैं और बलभद्र ने किसी को अपने दरबार से खाली हाथ नहीं लौटाया। यही विश्वास और भक्ति गोवर्धन पर्वत के चारों ओर इक्कीस किमी में मानव श्रंखला बनाए रखती है। मन्नतें पूरी होने का विश्वास लोगों को सात समंदर पार से तलहटी खींच लाता है।

राधाकुंड

अमेरिका, लंदन, रूस आदि विदेशी चिकित्सा से मायूस होकर मातृत्व सुख के लिए राधाकुंड में अहोई अष्टमी के दिन आधी रात को स्नान कर सूनी गोद भरते नजर आते हैं। जीवन साथी की लंबी उम्र के लिए गिरिराज शिला से सिंदूर भी निकलता है मान्यता है कि इस सिंदूर को लगाने से जीवन साथी की उम्र बढ़ जाती है।

मानसीगंगा

भगवान श्रीकृष्ण के मन से प्रकट गंगाजी का नाम मानसीगंगा है। श्रद्धालु यहां स्नान कर भूलवश हो जाने वाले अपराध की क्षमा याचना करते हैं।

प्रेमगुफा

राधाकृष्ण के प्यार भरे लम्हों का संग्रह ब्रजभूमि के मन्दिरों की परिभाषा है। राधा के प्रेम का यशोगान करती ब्रजधरा में अजब कुमारी के प्यार की सुगंध भी घुली हुई है। जतीपुरा का श्रीनाथजी मंदिर अजब कुमारी के गजब प्रेम की गाथा सुना रहा है। मंदिर तक पहुंचने के लिए गिरिराज शिलाओं के ऊपर से ही निकलना पड़ेगा। प्रभु के शयन कक्ष में ही प्रेम गुफा का द्वार बना है। श्रीनाथजी मंदिर में बनी 700 किमी लंबी प्रेम गुफा दो प्रदेशों के अमर प्रेम की कहानी बयां करती है। भक्त और भगवान के मिलन के ये पल इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं।

कुसुम सरोवर

भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की फूलों के श्रंगार की लीला का प्रमाण कुसुम सरोवर पर अपनी खूबसूरती से बरबस ही श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। भक्ति और कला का अनूठा संगम है।

दर्शनीय स्थल

दानघाटी मंदिर, संकर्षण कुंड, गोविंदकुंड, दाऊजी मंदिर, पूंछरी का लौठा, नवल कुंड, अप्सरा कुंड, सुरभीकुण्ड, एरावतकुण्ड, इन्द्रपूजा स्थल, हरजीकुण्ड, जतीपुरा गिरिराज, गिरिराज पर्वत पर श्रीनाथजी मंदिर, मानसीगंगा, उद्धवकुण्ड, राधाकुंड कृष्णकुण्ड, कुसुम सरोवर, हरगोकुल मंदिर, मुकुट मुखारविंद मंदिर। 


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