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रामायण का एक अनछुआ पात्र, आगरा की सरोज गौरिहार ने हजारों वर्ष बाद शब्दों में उकेरा

विस्मृत मांडवी की अद्भुत स्मृति है गौरिहार का खंडकाव्य। प्रभु श्रीराम के भाई भरत की पत्नी के अद्भुत जीवन का है विस्तृत वर्णन। वर्ष 1967 में लिखा गया वर्ष 1976 में हुआ प्रकाशित। रानी सरोज गौरिहार बताती हैं खंड काव्य का अधिकांश हिस्सा ट्रेन में लिखा गया।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 14 Dec 2020 09:52 AM (IST)Updated: Mon, 14 Dec 2020 09:52 AM (IST)
रामायण का एक अनछुआ पात्र, आगरा की सरोज गौरिहार ने हजारों वर्ष बाद शब्दों में उकेरा
रानी सरोज गौरिहार बताती हैं खंड काव्य का अधिकांश हिस्सा ट्रेन में लिखा गया।

आगरा, अली अब्बास। कवियित्री, साहित्यकार एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी सरोज गौरिहार ने हजारों साल बाद प्रभु श्रीराम के छोटे भाई भरत की पत्नी मांडवी के चरित्रों को शब्दों में उकेरा है। करीब 53 साल पहले उन्होंने खंड काव्य, मांडवी एक विस्मृता की रचना की थी। गौरिहार के अनुसार यह रचना मांडवी के बचपन, भरत से विवाह, भगिनी से वियोग, चित्रकूट यात्रा और अयोध्या में एकाकी जीवन को छूती हुई राम के वनवास से लौटने पर भरत-मांडवी के पुनर्मिलन पर समाप्त होती है।

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ऐसे हुई खंड काव्य लिखने की शुरूआत

गौरिहार ने बताया कि मांडवी का चरित्र उन्होंने रामायण में कई बार पढ़ा। भरत-मांडवी, राम और सीता से इतने जुड़े हुए हैं कि इनके बिना मांडवी की बात कह पाना संभव ही नहीं है। विधायक पिता से लखनऊ मिलने जाने पर वहां के केंद्रीय पुस्तकालय भी जाती थीं। वहां उन्होंने बालकृष्ण शर्मा नवीन द्वारा लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के बारे में लिखा हुआ पढ़ा। इसके बाद उन्होंने मांडवी के चरित्र के बारे में लिखने का मन बनाया। उन्होंने वर्ष 1967 में खंड काव्य लिखना शुरू किया। उन्होंने बताया कि मांडवी के चरित्र ने मुझे इतना प्रभावित किया कि लेखन के समय मांडवी मेरे मन मस्तिष्क में छाई रहीं। पूरा खंड काव्य छह महीने में लिखा गया।

ट्रेन में लिखा गया अधिकांश खंड काव्य

रानी सरोज गौरिहार बताती हैं खंड काव्य का अधिकांश हिस्सा ट्रेन में लिखा गया। उन दिनों पिता से मिलने एवं खुद विधायक होने के नाते उन्हें अक्सर ट्रेन से आना-जाना पड़ता था। खंड काव्य की भूमिका प्रख्यात साहित्यकार श्री नारायण चतुर्वेदी और अमृतलाल नागर ने लिखी है।

पहले लिखा गया अंतिम भाग

गौरिहार ने बताया खंड काव्य का आखिरी भाग पहले लिखा गया था, जबकि पहला भाग सबसे बाद में। उन्होंने लेखन के समय क्रम को महत्व नहीं दिया था।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किया था पहले संस्करण का विमोचन

खंड काव्य वर्ष 1967 में लिख गया था, मगर इसका पहला संस्करण वर्ष 1976 में प्रकाशित हुआ। इसका विमोचन प्रख्यात साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किया था। खंड काव्य का दूसरा संस्करण वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ।

मांडवी एक विस्मृता पर हुई चर्चा

नागरी प्रचारिणी महासभा में आयोजित पुस्तक चर्चा कार्यक्रम में 'मांडवी एक विस्मृताÓ पर चर्चा हुई। साहित्यकार इस खंड काव्य को भगीरथ प्रयास से कम नहीं मानते। चर्चा में साहित्यकार डाक्टर मधु भारद्वाज, डाक्टर खुशीराम शर्मा, डाक्टर कमलेशन नागर, डाक्टर राजेंद्र मिलन, डाक्टर शैलबाला अग्रवाल, डाक्टर शशि गोयल, महेश शर्मा और अनिल शर्मा ने खंड काव्य पर चर्चा की।

साहित्यकारों की नजर में...

सदियों से राम-सीता और लक्ष्मण के 14 वर्ष के वनवास की बात होती है। ङ्क्षकतु लेखक मांडवी को शायद भूल ही गए थे। वह अकेलेपन को कैसे जीती हैं, यह रानी सरोज गौरिहार ने अपनी काव्य-कृति में बहुत ही सलीके से दिखाया है।

डाक्टर मधु भारद्वाज

खंड काव्य ने रामकथा के एक महत्वपूर्ण पात्र का अंकन करके एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की है।

डाक्टर खुशीराम शर्मा

जिस तरह मैथिली शरण गुप्त ने साकेत द्वारा उर्मिला के चरित्र को गरिमा प्रदान की । उसी तरह से इस खंड काव्य ने मांडवी के चरित्र की महिमा को कुशलता से प्रस्तुत किया।

डाक्टर शैलबाला अग्रवाल

साहित्यकार के साथ राजनीतिज्ञ भी

रानी सरोज गौरिहार मध्य प्रदेश के छतरपुर से वर्ष 1967 से 1972 के दौरान विधायक भी रही हैं। उनके पिता जगन प्रसाद रावत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे थे। 


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