Atal Tunnel: 'अटल टनल' के हीरो आगरा के ब्रिगेडियर मनोज कुमार, ये है योगदान
Atal Tunnelकार्यदायी संस्था के इन्कार करने के बाद सैरी नाले पर सूझ-बूझ से कराया था काम। योजना पर अतिरिक्त खर्च होने वाले एक हजार करोड़ रुपये और दो वर्ष का समय बचाया। आगरा के शमसाबाद रोड निवासी ब्रिगेडियर मनोज कुमार (सेवानिवृत्त) पौने तीन वर्ष तक उसके निर्माण से जुड़े रहे।
आगरा, निर्लोष कुमार। दुनिया में ऊंचाई पर बनी सबसे लंबी 'अटल टनल' का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को करेंगे। इस उपलब्धि पर पूरा देश गौरवान्वित है तो अपने लाल की उपलब्धि पर आगरा भी फूला नहीं समा रहा है। आगरा के शमसाबाद रोड निवासी ब्रिगेडियर मनोज कुमार (सेवानिवृत्त) पौने तीन वर्ष तक उसके निर्माण से जुड़े रहे। जब कार्यदायी संस्था ने काम को असंभव बताकर हाथ खड़े कर दिए थे, तब ब्रिगेडियर मनोज कुमार की सूझ-बूझ से ही सैरी नाले पर टनल बन सकी। इससे उन्होंने करीब एक हजार करोड़ रुपये और प्रोजेक्ट में लगने वाला अतिरिक्त समय भी बचाया।
ब्रिगेडियर मनोज कुमार वर्ष 2014 से वर्ष 2016 के अंत तक करीब पौने तीन वर्ष रोहतांग से लेह तक बनाई गई 9.02 किमी लंबी अटल टनल से जुड़े रहे। सीमा सड़क संगठन में चीफ इंजीनियर रहे ब्रिगेडियर मनोज कुमार के कार्यकाल में करीब 6.75 किमी टनल बनाई गई। उन्होंने बताया कि टनल का निर्माण आसान नहीं था। करीब 600 मीटर टनल सैरी नाले के नीचे बनाई गई है। इसमें दिक्कत यह थी कि हमारे खोदाई करते ही पानी और मलबा नीचे आने लगता था, जिससे काम करना बड़ा मुश्किल था। कार्यदायी संस्था ने काम से हाथ खड़े कर दिए थे। उसने ऐसे अन्य मार्ग से टनल बनाने का प्रस्ताव दिया था, जहां नाले की चौड़ाई कम हो। इसका प्रस्ताव उसने सीमा सड़क संगठन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल आरएम मित्तल को भेज दिया था। कार्यदायी संस्था के प्रस्ताव का मैंने विरोध किया और रक्षा सचिव से मुलाकात की। प्रेजेंटेशन देकर कहा कि चार वर्ष से हम यहां फंसे हुए हैं, मुझे एक माह का समय दीजिए। रक्षा सचिव की अनुमति मिलने के बाद मैं अपनी टीम के साथ काम में जुट गया। जिद पकड़ ली थी कि इसे पार करके रहूंगा। अपने बच्चे की तरह मैंने टनल पर ध्यान दिया। इसी जुड़ाव से यह काम पूरा हो सका। 31 दिसंबर, 2015 को हमने सैरी नाले पर टनल का काम पूरा कर लिया। इसकी जानकारी जब तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को मिली तो उन्होंने मुझे शाबासी दी। इससे नए रास्ते से टनल बनाने पर व्यय होने वाले करीब एक हजार करोड़ रुपये आैर दो वर्षों का अतिरिक्त समय बच गया।
न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मैथड का किया इस्तेमाल
ब्रिगेडियर मनोज कुमार ने बताया कि उन्होंने टनल के निर्माण में न्यू आॅस्ट्रियन टनलिंग मैथड और ड्रिल एंड ब्लास्ट का इस्तेमाल किया। हिमालय में 10 मीटर की दूरी पर ही भौगोलिक परिस्थिति बदल जाती है, जिससे वहां टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) से काम करना संभव नहीं था। टनल के निर्माण में उन्होंने सुरक्षा उपायों का पूरा ध्यान रखा। इस तरह के इंस्ट्रूमेंट लगा रखे थे, कि जरा भी झुकाव आता तो हमें पता चल जाता था। इसकी नियमित रूप से निगरानी की गई। यही वजह रही कि टनल के अंदर कोई कैजुअलिटी नहीं हुई।
सेना को मिलेगा लाभ
ब्रिगेडियर मनोज कुमार ने बताया कि टनल बनने से थल सेना को लाभ मिलेगा। बर्फवारी होने पर गलवान वैली या पंगासुलेह पहुंचने में दिक्कत आती थी, केवल वायु मार्ग ही बचता था। टनल से लेह की कनेक्टिवटी बेहतर हो गई है।
कोविड ने रोके कदम
अटल टनल के लोकार्पण समारोह में ब्रिगेडियर मनोज कुमार को भी आमंत्रित किया गया है, लेकिन कोरोना ने उनके कदम रोक दिए हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें 24 घंटे पहले की कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट के साथ आने को कहा गया है। 15 से 16 घंटे का रास्ता होने से यह संभव नहीं है। इसके चलते वो लोकार्पण समारोह में नहीं जा पा रहे हैं। कोरोना काल नहीं होता तो पूरे परिवार के साथ जाता। ब्रिगेडियर मनोज कुमार वर्तमान में सेनाभ्यास इंस्टीट्यूट का संचालन कर रहे हैं, जिसमें इच्छुक युवाओं को सेना ज्वॉइन करने को तैयारी कराते हैं।