सियासत की बड़ी करवट, भाजपा पसीना-पसीना
- एससी-एसटी एक्ट प्रकरण पर उमड़े सैलाब ने उड़ाए रणनीतिकारों के होश - दलित, मुस्लिम, यादव फार्मूला कामयाब होने का डर, काट की तलाश को मंथन दिलीप शर्मा, आगरा: पूरे शहर को दहशत में झोंकने वाले उपद्रव ने सियासत की बिसात पर भी भूकंप ला दिया है। जिस मोदी लहर को पूरे देश में बनाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लग रहा है, वह दलितों के आंदोलन में बेअसर नजर आई। इसके विपरीत नारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही निशाने साधे गए। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकार पसीना-पसीना हो गए हैं और नई रणनीति को मंथन में जुटे हैं। इसमें महादलित का बिंदु सबसे ऊपर है।
दिलीप शर्मा, आगरा:
पूरे शहर को दहशत में झोंकने वाले उपद्रव ने सियासत की बिसात पर भी भूकंप ला दिया है। जिस मोदी लहर को पूरे देश में बनाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लग रहा है, वह दलितों के आंदोलन में बेअसर नजर आई। इसके विपरीत नारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही निशाने साधे गए। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकार पसीना-पसीना हो गए हैं और नई रणनीति को मंथन में जुटे हैं। इसमें महादलित का बिंदु सबसे ऊपर है।
एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में भले ही भारत बंद का आह्वान हुआ हो, लेकिन हकीकत में यह पूरा खेल सियासत का ही है। प्रदर्शन में किसी दल का झंडा नहीं दिखा, लेकिन युवाओं ने जिस तरह से आरक्षण बचाओ के नारे उछाले, उससे साफ था कि उन्हें शायद कुछ और ही समझाकर प्रदर्शन के लिए तैयार किया गया है। वजह जो हो, लेकिन इस जबर्दस्त एकजुटता और भीड़ के गुस्से ने सबसे ज्यादा खलबली भगवा खेमे में मचाई है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जो जबर्दस्त जीत मिली, उसमें दलित वोटों की अहम भूमिका के दावे किए गए। बीते विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने पूरे जोर-शोर से दलित मतों में बड़ी सेंध की बात प्रचारित की थी। इसके बाद भाजपा किसी न किसी बहाने दलितों की सियासत में भी जुटी रही। लक्ष्य आगामी लोकसभा चुनाव ही था। सोमवार को भारत बंद की शुरुआत होने से पहले तक खुद भाजपाइयों को भी ऐसी तस्वीर सामने आने की उम्मीद नहीं थी।
भाजपा की बेचैनी की सबसे बड़ी वजह ये है कि भीड़ जब चली तो उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पोस्टरों को भी निशाना बनाया। नारेबाजी में भी भाजपा का विरोध छाया रहा। जिसके बाद पार्टी यह मान चुकी हैं कि अब दलित वोट बैंक के उस वर्ग में सेंध लगाना लगभग नामुमकिन होगा, जो विशुद्ध तौर पर बसपाई माना जाता है। ऐसे में पार्टी दलितों के अन्य वर्गो को साधने की रणनीति अपनाएगी। हालांकि फिलहाल पार्टी नेताओं को सधे अंदाज में प्रतिक्रिया करने को कहा गया है। चुनावों के मद्देनजर रणनीति को अंतिम रूप आगामी कार्यसमिति की बैठक में दिया जाएगा।
दलित-मुस्लिम-यादव फार्मूला चला तो बदलेगी तस्वीर
भाजपा की बेचैनी यूं ही नहीं है। सपा और बसपा का गठबंधन लगभग तय होने के बाद लोकसभा चुनाव में मुकाबला जबर्दस्त होना तय है। आगरा लोकसभा सीट की बात करें तो यहां दलित, मुस्लिम, यादव फार्मूला चल गया तो भाजपा के लिए जीत बहुत मुश्किल होगी। बीते चुनाव को छोड़ दिया जाए तो यहां बसपा हर चुनाव में लगभग नजदीकी मुकाबले में रही है। सपा-बसपा के वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर होने की सूरत में निर्णायक स्थिति में पहुंचा सकता है। वहीं फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर पूर्व में बसपा जीत हासिल कर चुकी है, ऐसे में वहां भी यह फार्मूला मुकाबले को बहुत ज्यादा कठिन बना देगा। ऐसे में वोटों के इसी फार्मूले की काट तलाशने पर सबसे ज्यादा मंथन हो रहा है।
लक्ष्य एक, रणनीति अलग-अलग
पिछले दिनों लोकसभा के उप चुनाव में गठबंधन का सफल प्रयोग आजमा चुकी बसपा और सपा एक ही लक्ष्य के लिए काम कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक दोनों दलों के हाईकमान ने फिलहाल अपने-अपने परंपरागत वोटरों में आत्मविश्वास जगाने की रणनीति बनाई है। इसके तहत बसपा को सीधे तौर पर दलितों को भगवा नीतियों के नुकसान गिनाकर जोड़ने की जिम्मेदारी है। सपा को यादव वोट बैंक को सहेजने के साथ मुस्लिमों को एकजुटता से बदलाव का संदेश देने की जिम्मेदारी दी गई है। जरूरत पड़ने पर दोनों संगठन एक-दूसरे को सहयोग देंगे। सूत्रों के मुताबिक सोमवार को हुए प्रदर्शन के बाद वोटरों में आत्मविश्वास जगाने के लिए अब एकजुटता का यह उदाहरण दिया जा रहा है।
तमाशा देखने तक ही सिमटी है कांग्रेस
सपा-बसपा तो पूरी तेजी से रणनीति को अंजाम देने में जुटी हैं, लेकिन कांग्रेस अब भी सक्रिय नहीं हो पा रही। पार्टी नेतृत्व ने भी स्थानीय नेताओं को कोई रणनीति नहीं बताई है। ऐसे में फिलहाल स्थानीय नेता केवल बयान देने और दूर से तमाशा देखने तक ही सिमटे हुए हैं।