Smart Phone का एडिक्शन कहीं आपको भी तो नहीं बना रहा सैडिस्ट Agra News
एक्सीडेंट हो या कोई अन्य दर्दनाक घटना मदद के बजाय वीडियो बनाने में व्यस्त रहते हैं लोग सोशल मीडिया पर करते हैं वायरल।
आगरा, यशपाल चौहान। शादी समारोहों की वीडियोग्राफी सबने देखी है, लेकिन कभी किसी को अपने परिजनों की शवयात्र का फिल्मांकन कराते देखा है? नहीं! लेकिन, अब वह दिन दूर नहीं जब लोग शवयात्रा को मोबाइल से शूट करते नजर आएं। यह मानना है, शहर के प्रख्यात मनोचिकित्सक डॉ यूसी गर्ग का।
बुधवार को मथुरा में दिल दहला देने वाली दुखद घटना घटी। पुलिस की लापरवाही से परेशान एक दंपती ने थाने में मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा ली। जब बाकी लोग दंपती को बचाने में लगे थे तो उनका 17 साल का बेटा घटना का वीडियो बना रहा था। बेटे का कहना है कि उसे मां-बाप ने पुलिस लापरवाही को उजागर करने के लिए वीडियो बनाने को कहा था।
घटना हृदय विदारक है। सामान्य इंसान के लिए यह कल्पना भी मुश्किल है कि कोई अपने मां-बाप को मौत के मुंह में जाते देख पहले उन्हें बचाएगा या उनकी पीड़ा के सबूत जुटाने के लिए वीडियो बनाएगा। डॉ यू सी गर्ग का कहना है कि यह सजेस्टबल माइंड के कारण है। लड़के ने वही किया जो उसके माता-पिता ने करने को कहा था। दरअसल, यह सजेस्टिबिलिटी अवचेतन मस्तिष्क (सबकांशस माइंड) की एक प्रकार की स्थिति है। इस मनोदशा में जी रहा व्यक्ति सामने क्या हो रहा, इस पर सोचे बगैर जो उसके अवचेतन में जमा होता है, वही करने लगता है। मथुरा की तरह की घटनाएं इधर काफी बढ़ी हैं। लोग दुर्घटना होने पर बचाने के बजाय उसे मोबाइल कैमरे में कैद करने लगते हैं। ये लोग भी सजेस्टिबिलिटी के शिकार हैं।
माथा ठनकाती घटनाएं
जुलाई को बाह का एक पीड़ित अपनी फरियाद लेकर एसपी पूर्वी के ऑफिस में पहुंचा था। उसके साथ एक 12 वर्ष का बेटा भी था। पीड़ित अपनी बात अधिकारी को बता रहा था। तभी बेटा स्मार्ट फोन निकालकर वीडियो बनाने लगा। अधिकारी ने इसका विरोध किया। वीडियो बनाने वाले किशोर का कहना था वह अपने मामा के लड़के को वीडियो बनाकर भेजता रहता है।
अगस्त को यमुना एक्सप्रेस वे पर रोडवेज बस 35 फुट नीचे झरना नाले में गिर गई। गांव की भीड़ वहां पहुंची थी। चीख पुकार सुनकर पहुंचे बघेल की ठार निवासी निहाल सिंह ने पानी में कूदकर जान बचाई। मगर, बड़ी संख्या में लोग मदद के बजाय मोबाइल लेकर वीडियो बनाने में लगे थे। कुछ देर में ही हादसे की दिल दहला देने वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं।
वास्तविक पर डॉमिनेट कर रही आभासी दुनिया
सामने से ट्रेन आ रही है। एक बच्चा ट्रैक पार कर रहा। इससे पहले कि कोई हादसा हो अचानक पास मौजूद कोई व्यक्ति अपनी जान की परवाह किए बगैर उसे बचाने के लिए जूझ पड़ता है। समाजशास्त्री डॉ मोहम्मद समद कहते हैं कि ये संस्कार हैं, जो हम सबके अवचेतन में रहते हैं, कि कोई बच्चा खतरे मैं है तो उसकी मदद करना। उस समय वह व्यक्ति यह नहीं सोचता कि खुद भी दुर्घटना का शिकार हो सकता है। यह संस्कार अब छीज रहे। दरअसल, स्मार्ट फोन के फीचर सामाजिक मूल्यों पर डॉमिनेट करने लगे हैं। वास्तविक दुनिया पर आभासी दुनिया कब्जा कर रही। सामाजिक मूल्यों पर टेक्नोलॉजी हावी हो रही है। डॉ समद के मुताबिक कुछ समय पहले यह हालत थी कि अभिभावक अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे थे, इसलिए बच्चे डिस्आर्डर का शिकार हो रहे थे। अब बच्चे अपने अभिभावकों के बजाय मोबाइल को समय दे रहे हैं। उसी के मूल्य सीख रहे हैं। यह एक बड़ी विसंगति उभर रही। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि लोग दुघर्टना में मदद करने के बजाय उसका वीडियो बनाना शुरू कर देते हैं। अवचेतन मस्तिष्क पर अभिभावकों के बजाय मोबाइल के संस्कार हावी होना खतरनाक है।