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GIS टेक्नोलॉजी दीवाली और पराली के प्रदूषण को रोकने में साबित हो सकती है मददगार, जानिए कैसे

GIS ऐसे एरिया की पहचान करने में मदद कर सकता है जहां निर्माण संबंधी कार्यों की धूल और डीजल जनरेटर के उपयोग के कारण हवा प्रदूषित हो रही है और इस तरह GIS लोकल अधिकारियों को इसे नियंत्रित करने में मदद करता है।

By Saurabh VermaEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 11:46 PM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2020 11:46 PM (IST)
GIS टेक्नोलॉजी दीवाली और पराली के प्रदूषण को रोकने में साबित हो सकती है मददगार, जानिए कैसे
यह दैनिक जागरण की फाइल फोटो है।
नई दिल्ली, टेक डेस्क. पंजाब और हरियाणा में फसल के अवशेषों यानी पराली को जलाने की शुरुआत के साथ ही दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक गिर गई है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कई हिस्सों में हवा की गुणवत्ता का स्तर 200 से ऊपर दर्ज किया गया। हालांकि विभिन्न राज्य सरकारें स्थिति को नियंत्रित करने के लिए किसानों के बीच जागरूकता फैलाने सहित कई कदम उठाने की कोशिश कर रही हैं, फिर भी इस दिशा में हालात का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने के लिए जीआईएस  यानि  जियोस्पेशियल टेक्नोलॉजी का लाभ उठाना एक प्रभावी जरिया हो सकता है।
 
विभिन्न राज्य सरकारें और कृषि अनुसंधान विभाग रिमोट सेंसिंग, जीआईएस/जीआईएस एनेबल्ड ऐप, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस/मशीन लर्निंग और आईओटी टैक्नोलाॅजी का इस्तेमाल कर सकते हैं, ताकि पराली जलाने से लेकर अन्य विभिन्न कृषि गतिविधियों के प्रभाव का आकलन किया जा सके। इसी सिलसिले में इसरी इंडिया टेक्नोलॉजी के प्रेसीडेंट अगेंद्र कुमार बताते हैं कि वायु प्रदूषण आज हमारे सामने पेश आने वाली सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। निश्चित तौर पर यह हमारे समग्र स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। प्रदूषण के कारणों को बेहतर तरीके से समझने और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है, इस दिशा में GIS तकनीक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उदाहरण के लिए, जीआईएस-एकीकृत पूर्वानुमान मॉडल का उपयोग फसल के अवशेषों का अनुमान लगाने और इसे और अधिक कुशलता से प्रबंधित करने के लिए बेहतर योजना बनाने के लिए किया जा सकता है। इस तरह किसान इसे जलाने का काम नहीं करेंगे और पर्यावरण प्रदूषण का कारण भी नहीं बनेंगे। इसके अलावा, जीआईएस उन क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकता है जहां निर्माण संबंधी कार्यों की धूल और डीजल जनरेटर के उपयोग आदि के कारण हवा प्रदूषित हो रही है, और इस तरह जीआईएस स्थानीय अधिकारियों को इसे नियंत्रित करने में मदद करता है। तापमान और हवा की दिशा जैसे पैरामीटर को जीआईएस आधारित विश्लेषण में उन क्षेत्रों की बेहतर समझ के लिए शामिल किया जा सकता है, जहां अत्यधिक प्रदूषण की आशंका रहती है।
 
GIS तकनीक के इस्तेमाल से सैटेलाइट इमेज प्रोसेसिंग और विश्लेषण तकनीकों का भी उपयोग किया जा सकता है। इनमें प्रमुख हैं- बदलाव का पता लगाना यानी चेंज डिटेक्शन, ड्रोन-आधारित सर्वेक्षण, अर्टिफिशियल इंटिलिजेंस एवं मशीन लर्निंग एल्गोरिदम। इस तरह तकनीक के उपयोग से पराली से भरे खेतों का पता लगाया जा सकता है और इसकी भी पहचान की जा सकती है कि बदलते वक्त के साथ फार्मलैंड/ खेतों में पैटर्न कैसे बदल रहे हैं।
 
सैटेलाइट इमेजरी प्रोसेसिंग एजेंसियों को फसल के अवशेषों को जलाने की घटनाओं की कुशलता से पहचान करने और यहां तक कि हॉटस्पॉट की पहचान करने में मदद कर सकती है। पुराने इमेजरी डेटा का उपयोग उन प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करने के लिए भी किया जा सकता है, जहां पिछले वर्षों में पराली जलाने की अनेक घटनाएं हुई हैं। ऐसे क्षेत्रों का पता लगाने के बाद इन घटनाओं की रोकथाम की कार्रवाई की जा सकती है। किसी भी मोबाइल डिवाइस पर उपलब्ध GIS आधारित मोबाइल ऐप जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों की सहायता करता है और वे पारदर्शी तरीके से ऐसी घटनाओं को पकड़ सकते हैं और जरूरी कार्रवाई कर सकते हैं।
 
 

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GIS में लोकल डेटा जैसे कि हवा का पैटर्न (गति और दिशा), तापमान, आर्द्रता, इलाके आदि के साथ इस डेटा को जोड़ने से एजेंसियों को सही समय पर धुएं की गति का अनुमान लगाने और संभावित क्षेत्रों का आकलन करने में मदद मिल सकती है। इसे सबसे अधिक प्रभावित होने वाली आबादी पर फसलों के अवशेष को जलाने के प्रभाव की पहचान करने और आवश्यक कदम उठाने के लिए अन्य डेटा के साथ जोड़ा जा सकता है। इसके साथ ही यातायात, जनसंख्या, डेमोग्राफिक और सेहत जैसे क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव का सटीक आकलन किया जा सकता है। 
 
विभिन्न शहरों ने पहले से ही रीयल-टाइम सेंसर स्थापित किए हैं, जो नियमित रूप से एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) का पता लगाते हैं। जीआईएस के साथ यह रीयल टाइम डेटा एजेंसियों को विश्लेषण करने और दिन, महीने और वर्ष के दौरान हवा की गुणवत्ता में आने वाले बदलाव का पता लगाने में मदद कर रहा है और इस तरह पैटर्न की पहचान करने, जरूरी कार्रवाई की योजना बनाने और उठाए गए कदमों के प्रभाव को मापना अब बेहद आसान और सरल हो गया है।

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