Chandrayaan 2 ने चांद के ऑर्बिट में किया प्रवेश, अब 2 सितम्बर होगा बड़ा दिन, जानें क्यों?
Chandrayaan 2 ISRO ने मंगलवार सुबह सफलतापूर्वक लूनर ऑर्बिट में प्रवेश कर लिया है। भारत के दूसरे बड़े मिशन की एक बड़ी परेशानी या यूं कहें रुकावट को चंद्रयान 2 ने पार कर लिया है।
नई दिल्ली, टेक डेस्क। Chandrayaan 2: ISRO ने मंगलवार सुबह सफलतापूर्वक लूनर ऑर्बिट में प्रवेश कर लिया है। भारत के दूसरे बड़े मिशन की एक बड़ी परेशानी या यूं कहें रुकावट को चंद्रयान 2 ने पार कर लिया है। ISRO ने चंद्रयान 2 के लिक्विड इंजन को 1738 सेकंड्स के करीब आग देने के बाद कहा की मिशन ने सफलतापूर्वक एक जरूरी पड़ाव पार कर लिया है। ISRO ने एक बयान में कहा की- स्पेसक्राफ्ट की हेल्थ को लगातार मॉनिटर किया जा रहा है। इसे ISRO के मिशन ऑपरेशन काम्प्लेक्स से मॉनिटर किया जा रहा है। Chandrayaan 2 के सभी सिस्टम्स पूरी तरह ठीक हैं। ISRO ने यह भी कहा की अगला लूनर-बाउंड ऑर्बिट बुधवार, 21 अगस्त को 12:30 pm से 1:30 pm के मध्य होगा।
Hello! This is Chandrayaan 2 with a special update. I wanted to let everyone back home know that it has been an amazing journey for me so far and I am on course to land on the lunar south polar region on 7th September. To know where I am and what I'm doing, stay tuned! pic.twitter.com/qjtKoiSeon
— ISRO (@isro) August 17, 2019
ISRO के चेयरमैन K Sivan जल्द की मीडिया को इस सफलता के ऊपर डिटेल देंगे। अगस्त 6 को ISRO ने सफलतापूर्वक पांचवां धरती का चक्कर पूरा कर लिया था। Chandrayaan 2 अब 4 और ऑर्बिट के चककर लगाएगा, जिससे सितम्बर 7 को लूनर सरफेस पर लैंडिंग से पहले स्पेसक्राफ्ट अपने फाइनल ऑर्बिट में पहुंच जाए। इस मिशन का अगला जरूरी पड़ाव सितम्बर 2 को होगा। इस दिन Vikram Lander, ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा। इसके बाद लैंडर, 7 सितम्बर को लूनर सरफेस पर लैंडिंग से पहले ऑर्बिट के दो चक्कर और लगाएगा।
Chandrayaan 2 के सबसे पहले प्रयास में इसमें कुछ तकनीकी दिक्कतें आ गई थी। इसके बाद 22 जुलाई को GSLV MkIII-M1 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। मून मिशन ने अगस्त 14 को लूनर ट्रांसफर में एंटर किया था। जहां Chandrayaan 1 में लूनर सरफेस पर 11 साल पहले पानी की होने की बात को कन्फर्म किया था। वहीं, Chandrayaan 2 भारत की चांद पर पहुंचने की यह दूसरी कोशिश है। इस दूसरे मिशन में चांद के साऊथ पोल पर अधिक स्टडी करेगा। इससे वैज्ञानिकों को चांद के उत्पत्ति और विकास के बारे में अधिक डिटेल में पता चलेगा।