Behavioral Biometrics: अब आपकी आदतों के हिसाब से स्मार्टफोन होगा अनलॉक
अब व्यवहारिक बायोमैट्रिक जैसी तकनीक आने वाली है जो आपकी आदतों के हिसाब से आपकी पहचान कर सकेगा
नई दिल्ली (टेक डेस्क)। Behavioral Biometrics यानी की व्यवहारिक बायोमैट्रिक के नाम से एक नई तकनीक जल्द ही आने वाला है। पहले फिंगरप्रिंट स्कैनर, इसके बाद फेस आईडी जैसे बायोमैट्रिक लॉक की मदद से स्मार्टफोन एवं अन्य डिवाइस को सिक्योर किया गया। अब व्यवहारिक बायोमैट्रिक जैसी तकनीक आने वाली है जो आपकी आदतों के हिसाब से आपकी पहचान कर सकेगा। यह फीचर स्मार्टफोन से लेकर टेबलेट या नोटबुक जैसे डिवाइस में काम करेगा। इस नई तकनीक की मदद से आपके स्वाइप, स्क्रॉल और जेस्चर की पहचान करके आपके डिवाइस को अनलॉक करेगा। इस नई तकनीक में सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम यूजर्स के व्यवहार के हिसाब से काम करेगा। अगर, आपका व्यवहार मैच नहीं करेगा तो आप आपने डिवाइस को अनलॉक नहीं कर सकेंगे।
क्या है Behavioral Biometrics?
Behavioral Biometrics यूजर्स के पहचान की एक नई तकनीक है जो यूजर्स के एक्टिविटी यानी कि आदतों के हिसाब से पहचान करता है। व्यवहारिक बायोमैट्रिक फिजिकल बायोमैट्रिक (फिंगरप्रिंट, रेटिना) आदि की तरह ही काम करता है। इसमें भी इंसानी गतिविधियों के हिसाब से यूजर्स की पहचान की जाती है। Behavioral Biometrics आपके स्मार्टफोन के की-स्ट्रोक डायनामिक्स, सिग्नेचर एनलिसिस आदि को एल्गोरिदम के जरिए रिकार्ड करके सही यूजर की पहचान करता है। इन दिनों जिस तरह से बायोमैट्रिक का इस्तेमाल सरकारी स्कीम से लेकर ई-कॉमर्स, बैंकिंग आदि में बढ़ा है, यूजर्स की पहचान चोरी की घटनाएं बढ़ सकती हैं। लेकिन इस व्यवहारिक पहचान के तरीके से आदतों के हिसाब से सही यूजर्स की पहचान की जा सकेगी और डाटा चोरी या फ्रॉड पर लगाम लगाया जा सकेगा।
Behavioral Biometrics के फायदे
अब, आप सोच रहेंगे कि इतने सारे पहले से ही मौजूद बायोमैट्रिक विकल्पों के अलावा इस नई तकनीक की जरूरत क्यों पड़ी? तो आपको बता दें कि स्मार्टफोन्स और स्मार्ट डिवाइस के इस्तेमाल बढ़ने के साथ ही कई तरह के बैंकिंग फ्रॉड या डाटा चोरी जैसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। कई यूजर्स की बैंकिंग जानकारी, सिम क्लोनिंग आदि करके हैकर्स फ्रॉड की घटनाओं को अंजाम देने लगे हैं। इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस बायोमैट्रिक तकनीक के आ जाने से हैकर्स के लिए किसी भी डिवाइस को एक्सेस करना मुश्किल होगा। जब तक यूजर्स के व्यवहार को मशीन अपने एल्गोरिदम में नहीं मैच करेगा, डिवाइस का एक्सेस नामुमकिन होगा। यूजर्स के व्यावहारिक प्रोफाइलिंग के जरिए डिवाइस और अकाउंट को सुरक्षित बनाया जा सकेगा। यानी की आपका स्मार्टफोन या डिवाइस आपकी आदतों के हिसाब से काम करेगा।
यह भी पढ़ें:
IRCTC अकाउंट बनाने के लिए अपनाएं ये आसान स्टेप्स
Redmi Note 7 Pro, Galaxy S10, Nokia 9 समेत ये स्मार्टफोन्स फरवरी में हो सकते हैं लॉन्च
Oppo K1 vs Nokia 7.1 vs Vivo V9 Pro: कीमत, फीचर और स्पेसिफिकेशन