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घर में क्या होता है ब्रह्म स्थान का महत्व, जानें ज्योतिषी की नजर से

Brahmasthan भारतीय वास्तुशास्त्र की महत्ता प्राचीनकाल से ही रही है। वर्तमान में वास्तुशास्त्रु को कई लोग अपनाने लगे हैं। हम सभी शायद अपने घर या भवन को वास्तु के अनुकूल न बना पाएं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2020 09:00 AM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2020 09:50 AM (IST)
घर में क्या होता है ब्रह्म स्थान का महत्व, जानें ज्योतिषी की नजर से
घर में क्या होता है ब्रह्म स्थान का महत्व, जानें ज्योतिषी की नजर से

Brahmasthan: भारतीय वास्तुशास्त्र की महत्ता प्राचीनकाल से ही रही है। वर्तमान में वास्तुशास्त्रु को कई लोग अपनाने लगे हैं। हम सभी शायद अपने घर या भवन को वास्तु के अनुकूल न बना पाएं। लेकिन कोशिश जरूर की जा सकती है। इसके लिए ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि भाग्य का परिवर्तन भले ही न हो सके लेकिन कर्मकांड के द्वारा रक्षा अवश्य की जा सकती है। अस्तु ब्रह्मस्थल अर्थात भवन के आंगन के देवता स्वयं ब्रह्माजी हैं। इनका तत्व आकाश है। घर में आंगन का होना बेहद आवश्यक है। साथ ही इसके ऊपर खुला जाल भी होना भी चाहिए जिससे आंगन में धूप -हवा का आना उत्तम रहता है। आइए ज्योतिषाचार्य पं. दयानंद शास्त्री से जानते हैं घर में ब्रह्म स्थान के महत्व के बारे में।

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भवन का साफ-सुथरा निर्माण एवं भार रहित होना निवासियों को विशाल हृदय के साथ -साथ विशाल बुद्धि भी प्रदान करता है। ब्रह्मस्थान यानी घर का आंगन किसी भी भवन का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह स्थान घर के मध्य में होता है। प्राचीनकाल की बात करें तो ब्रह्मस्थान को खाली छोड़ा जाता था। इस जगह पर कोई भी निर्माण नहीं किया जाता था। लेकिन आज के परिवेश में इस जगह पर निर्माण करना मजबूरी बन चुका है। ऐसे में हम सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि घर के मध्यभाग में कोई पिलर नहीं होना चाहिए। अगर इस भाग में पिलर होता है तो इससे संपूर्ण भवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बाधित हो जाता है। फिर अन्य किसी भी शुभ स्थान का कोई प्रभाव नहीं होगा। इससे घर के लोगों को कई न कोई रोग लगा ही रहता है।

किसी भी घर में पंच तत्वों यानी आकाश, पृथ्वी, वायु, अग्नि और जल का विशेष महत्व होता है। यहां हम घर के मध्य स्थान या ब्रम्ह स्थान या आकाश तत्व की चर्चा कर रहे हैं। जो स्थान हमारे शरीर में पेट और नाभि का होता है, वही स्थान हमारे घर के मध्य स्थान का होता है। हमारे शरीर में नाभि ही शरीर का मध्य बिंदु होता है। वास्तु शास्त्र में इसे सूर्य स्थान भी कहा जाता है। जिस प्रकार सूर्य, ऊर्जा का प्रमुख स्रोत होता है, ठीक उसी प्रकार घर के ब्रम्ह स्थान से ही ऊर्जा घर की विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होती है। इसीलिए इस स्थान को खाली और साफ-सुथरा रखा जाता है। पहले घरों में यहां पर खुला चौक या आंगन रखने की परंपरा थी। लेकिन जहां तक सम्भव हो घरों में सुख-शांति के लिए इस तरह की व्यवस्था करनी बेहद आवश्यक है। लेकिन अगर यह संभव न हो तो घर के ईशान, पूर्व या उत्तर को अवश्य खुला रखें।

किसी भी घर/भवन के बीच का स्थान जानने के लिए घर के नक्शे पर लम्बाई को तीन भागों में और चौड़ाई को चार भागों में बाटें। हर भाग की लाइनों से मिलाकर पूरे क्षेत्र को 9 आयताकार भागों में बांटा जाता है। इसमें बीच वाला आयत ही ब्रह्म स्थान कहलाता है। ग्रह निर्माण में 81 वास्तु पदों में बीच वाले 9 स्थान ब्रह्म स्थान के लिए ही नियत किए जाते हैं। प्रकृति की विभिन्न दिशाओं से आने वाली ऊर्जा उस भूखंड के केंद्र स्थल पर ही संचित होती रहती है और फिर वहीं से सभी दिशाओं में प्रवाहित होती रहती है। इस स्थान का खास ध्यान रखा जाता है।

आधुनिक फ्लैट वाले मकानों में यह सब चीजें संभव नहीं होती हैं, उनमें पिरामिड-वास्तु का इस्तेमाल किया जाता है। पिरामिड इंस्टॉल करने से पंच तत्वों में से किसी भी तत्व को पूरी तरह से ऊर्जावान बनाकर उसे घर में एक्टिव किया जा सकता है।  


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