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वंशी वाले कृष्ण क्‍यों बजाते हैं बांसुरी

शिव वो हैं जो संपूर्ण संसार को अपने प्रेम के वश में रखने में सक्षम है। उनका व्यवहार और वाणी दोनों ही बांसुरी की तरह मधुर है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 24 Apr 2017 05:18 PM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 10:12 AM (IST)
वंशी वाले कृष्ण क्‍यों बजाते हैं बांसुरी
वंशी वाले कृष्ण क्‍यों बजाते हैं बांसुरी

आपने श्रीकृष्ण की बांसुरी बजाते हुए प्रतिमा जरूर देखी होगी श्रीकृष्ण के द्वारा धारण किए गए प्रतीकों में बांसुरी हमेशा से सभी लोगों के लिए ज्ञिज्ञासा का केंद्र रही है अधिकतर लोग श्रीकृष्ण बांसुरी से विष्णु के दस अवतारों की परंपरा में श्रीकृष्ण 16 कलाओं से पूर्ण अवतार माने गए हैं। उनका व्यक्तित्व जीवन के अलग-अलग अायामों को स्पर्श करता है। जिनमें नृत्य रूप में रास और कला के रूप में बांसुरी भी शामिल है।

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माना जाता है कि एक बार सभी गोपियों ने बांसुरी से कहा हे बांसुरी तुमने ऐसी कौन सी तपस्या की है, कि तुम श्याम के होंठो से लगी रहती हो। उनके मधुर अधरामृत का पान करती रहती हो, जब वे तुम्हें बजाते हैं तो तुम उन्हें अपने इशारों पर नचाती हो। एक पैर पर खड़ा रखती हो, वे अपने हाथो के पलंग पर तुम्हें सुलाते हैं, होठों का तकिया लगाते हैं। जब उनकी ऊंगलिया तुम पर चलती हैं, तो लगता है जैसे वे तुम्हारे चरण दबा रहे हों। जब हवा चलती है तो उनके घुंघराले केश हिलते हैं मानो वे तुम्हें पंखा कर रहे हो। कितनी सेवा करते हैं तुम्हारी।

एक बार राधा जी ने भी बांसुरी से पूछा -हे प्रिय बांसुरी यह बताओ कि मैं कृष्ण जी को इतना प्रेम करती हूं , फिर भी कृष्ण जी मुझसे अधिक तुमसे प्रेम करते हैं, तुम्हें अपने होठों से लगाए रखते हैं, इसका क्या कारण है?बांसुरी ने कहा - मैंने अपने तन को कटवाया , फिर से काट-काट कर अलग की गई, फिर मैंने अपना मन कटवाया यानी बीच में से, बिल्कुल आर-पार पूरी खाली कर दी गई। फिर अंग-अंग छिदवाया। मतलब मुझमें अनेकों सुराख कर दिए गए। उसके बाद भी मैं वैसे ही बजी जैसे कृष्ण जी ने मुझे बजाना चाहा। मैं अपनी मर्ज़ी से कभी नहीं बजी। यही अंतर है आप में और मुझमें कृष्ण जी की मर्जी से चलती हूं और तुम कृष्ण जी को अपनी मर्ज़ी से चलाना चाहती हो।

दरअसल बांसुरी को वंशी भी कहा जाता है यदि हम वंशी का उल्टा करें तो शिव होता है। ये बांसुरी शिव का ही एक रूप है। शिव वो हैं जो संपूर्ण संसार को अपने प्रेम के वश में रखने में सक्षम है। उनका व्यवहार और वाणी दोनों ही बांसुरी की तरह मधुर है। कृष्ण के बांसुरी प्रेम के पीछे मुख्य रूप से तीन कारण है।

पहला- बांसुरी में गांठ नहीं है। वह खोखली है। इसका अर्थ है अपने अंदर किसी भी तरह की गांठ मत रखो। चाहे कोई तुम्हारे साथ कुछ भी करे बदले कि भावना मत रखो।

 दूसरा- बिना बजाए बजती नहीं है, यानी जब तक ना कहा जाए तब तक मत बोलो। बोल बड़े कीमती है, बुरा बोलने से अच्छा है शांत रहो।

तीसरा- जब भी बजती है मधुर ही बजती है। मतलब जब भी बोलो तो मीठा ही बोलो जब ऐसे गुण किसी में भगवान देखते है, तो उसे उठाकर अपने होठों से लगा लेते हैं।


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