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श्रीविष्णु अवतार परशुराम अक्षय तृतीया को जन्मे, इसलिए उनकी शस्त्र-शक्ति अक्षय थी

तब परशुराम ने क्रोधित होकर कार्तवीर्य का वध करने के बाद भी 21 बार पृथ्वी को योद्धाओं के आतंक से मुक्ति दिलाई।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 27 Apr 2017 11:04 AM (IST)Updated: Thu, 27 Apr 2017 11:04 AM (IST)
श्रीविष्णु अवतार परशुराम अक्षय तृतीया को जन्मे, इसलिए उनकी शस्त्र-शक्ति अक्षय थी
श्रीविष्णु अवतार परशुराम अक्षय तृतीया को जन्मे, इसलिए उनकी शस्त्र-शक्ति अक्षय थी

पौराणिक मान्यता के अनुसार, धरती पर मानवता पर अत्याचार को खत्म करने के लिए तथा सुख-शांति व धर्म की स्थापना के लिए ईश्वर स्वरूप परशुराम अवतरित हुए। उन्हें श्रीहरि विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। उल्लेख मिलता है कि इनका जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को माता रेणुका तथा पिता जमदग्नि ऋषि के आश्रम में हुआ। विशिष्ट गुणों के कारण भगवान परशुराम का

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वर्णन सतयुग के समापन से कलियुग के प्रारंभ तक पौराणिक वृत्तांतों में मिलता है। उनकी तेजस्विता और ओजस्विता के सामने कोई भी नहीं टिकता, न शास्त्रार्थ में और न ही अस्त्रशस्त्र में। भले ही सीता स्वयंवर में धनुषभंग के दौरान लक्ष्मण से उनके संवाद को कतिपय लोग उनकी पराजय से जोड़ते हों, मगर ऐसा सोचना उनकी अज्ञानता ही कही जाएगी। वस्तुत: उस शिव धनुष के भंग के प्रति उनका आक्रोश अपने गुरु महादेव के प्रति अनन्य निष्ठा के कारण ही उपजा था। तभी तो श्रीराम उन्हें विनम्रतापूर्वक नमन करते हैं। वे अक्षय तृतीया को जन्मे, इसलिए उनकी शस्त्र-शक्ति अक्षय थी और शास्त्र-संपदा भी। विश्वकर्मा जी के अभिमंत्रित दिव्य धनुषों की प्रत्यंचा चढ़ाने का सामथ्र्य केवलपरशुराम में था।

उनका परशु (फरसा) अपरिमित शस्त्र-शक्ति का प्रतीक था, जो उनको भगवान शंकर ने शस्त्र विद्या की परीक्षा में सफल होने पर पारितोषिक स्वरूप प्रदान किया था। जहां राम मर्यादा व लोकनिष्ठा के पर्याय माने जाते हैं, वहीं परशुराम अनीति विमोचक शस्त्रधारी। वे शक्ति और ज्ञान के दिव्य पुंज थे। विश्वामित्र मुनि ने बालक परशुराम को बाल्यकाल में शस्त्र चलाना सिखाया था। भगवान परशुराम मूलत: अतीत में एक लंबे समय तक चलने वाले देश के आंतरिक युद्ध के ऐसे महानायक माने जाते हैं, जिन्होंने शास्त्र ज्ञान और पराक्रम दोनों के ही माध्यम से राष्ट्र व जनविरोध अन्यायी शक्तियों का विनाश किया था। गौरतलब है कि दीर्घकालिक आंतरिक युद्धों का

संभवत: यह वही दौर था, जिसमें कभी योद्धा विश्वामित्र, ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के विरुद्ध उठ खड़े हुए थे।

कहते हैं कि एक बार कार्तवीर्य ऋ षि न सिर्फ जमदग्नि के आश्रम से गोमाता कामधेनु को बलपूर्वक ले जाने लगे, बल्कि विरोध करने पर जमदग्नि ऋ षि का वध भी कर दिया। तब परशुराम ने क्रोधित होकर कार्तवीर्य का वध करने के बाद भी 21 बार पृथ्वी को योद्धाओं के आतंक से मुक्ति दिलाई। सामान्य तौर पर क्रो को उचित नहीं माना जाता, लेकिन भगवान परशुराम का क्रोध अन्याय के विरुद्ध था। उन्होंने समयानुकूल आचरण का जो आदर्श स्थापित किया, वह युगों-युगों तक मानव मात्र को प्रेरणा देता रहेगा।

 पूनम नेगी


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