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हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती है अंत:करण की आवाज

आज के इस कोलाहल भरे समय में हम प्राय अपने अंतकरण की आवाज को सुन नहीं पाते या उसे सुनकर उस पर अपेक्षित मनन नहीं करते। यही कारण है कि हम अपने जीवन में भटकाव महसूस करते हैं।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Wed, 01 Jun 2022 05:35 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jun 2022 05:35 PM (IST)
हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती है अंत:करण की आवाज
हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती है अंत:करण की आवाज

नई दिल्ली, कैलाश मांजू बिश्नोई। हमारे अंत:करण की आवाज हमारी मुख्य मार्गदर्शक होती है। यही हमें सही और गलत में अंतर का आभास कराती है। मनोविज्ञान के अनुसार, जब किसी मनुष्य का कोई कार्य, विचार और अभिव्यक्ति नैतिक मूल्यों के विपरीत परिणाम देती है तो अंतर्मन की आवाज उस व्यक्ति में ग्लानि और पश्चाताप की भावना को जन्म देती है, लेकिन जब हमारे कार्य नैतिक मूल्यों के अनुरूप परिणाम देते हैं तो इससे मन भीतर से प्रसन्न होता है।

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आज के इस कोलाहल भरे समय में हम प्राय: अपने अंत:करण की आवाज को सुन नहीं पाते या उसे सुनकर उस पर अपेक्षित मनन नहीं करते। यही कारण है कि हम अपने जीवन में भटकाव महसूस करते हैं।

महात्मा गांधी तो अंत:करण की आवाज को ही सर्वोच्च मानते थे। उनके कई निर्णयों का आधार ही अंत:करण की आवाज थी। इसी कारण गांधीजी सत्य के साथ खड़े रहे। इसीलिए उनके द्वारा किए गए अधिकांश प्रयोग सफल रहे। जीवन में सदैव संतुष्ट एवं प्रसन्न रहने का सरल सा तरीका यही है कि हम अपने अंत:करण की आवाज सुनें, क्योंकि हमारे अंदर से आने वाली आवाज प्रत्येक परिस्थिति में सही होती है। हम जब कभी भी कुछ गलती या बुरा आचरण कर रहे होते हैं, तब हम अपनी भूल को जानते हैं। हमें कुछ अटपटा सा लगता है। भीतर से आवाज आती है कि यह कार्य उचित नहीं है। यही हमारे अंत:करण की आवाज होती है।

यही आवाज हमें कुछ गलत करने से रोकती है। जब हम अपने अंत:करण की आवाज को अनसुना करते हैं तो अंतरात्मा से हमारा संपर्क कमजोर हो जाता है। यही आवाज हमें किसी भी दुविधा से बचाती है। जैसे किसी सड़क हादसे में दुर्घटना के शिकार व्यक्ति की सहायता के लिए रुकने की बात हो तो अंतरात्मा से ही उसे स्वत: प्रेरणा मिलती है, जो अंत:करण की आवाज से उत्प्रेरित होती है। वस्तुत: अंत:करण की आवाज हमें सत्य के रास्ते एवं नैतिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।


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