धर्म में ऊंच-नीच, रंग-भेद, नस्ल या लिंग-भेद के लिए कोई स्थान नहीं है
अतिऊष्ण प्रदेशों के निवासियों का श्याम रंग स्वाभाविक है। शीतप्रधान देशों के निवासियों का रंग गोरा होता है। धर्म का इससे कुछ भी लेना-देना नहीं है।
धर्म में ऊंच-नीच, रंग-भेद, नस्ल या लिंग-भेद के लिए कोई स्थान नहीं है। अतिऊष्ण प्रदेशों के निवासियों का श्याम रंग स्वाभाविक है। शीतप्रधान देशों के निवासियों का रंग गोरा होता है। समशीतोष्ण जलवायु वाले लोगों
का रंग गेहुंआ रहता है। धर्म का इससे कुछ भी लेना-देना नहीं है।
गीता के अनुसार, शरीर एक वस्त्र है। जैसे मनुष्य पुराना वस्त्र त्यागकर नवीन वस्त्र धारण कर लेता है, उसी प्रकार आत्मा शरीर रूपी वस्त्र को त्यागकर नवीन शरीर धारण कर लेती है। आत्मा शुद्ध है, तत्व है, परमसत्य है। यही आपका निज स्वरू प है। साधना के सही दौर में पड़कर वह आत्मस्थित हो जाती है। बाह्य भेद तो प्रकृति की देन है।
परमहंस स्वामी अड़गड़ानंदजी कृत
श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य यथार्थ गीता से साभार