Move to Jagran APP

कोई मनुष्य सदैव बुरा या भला नहीं होता

मनुष्य सदैव सद्गुण ग्रहण करता रहे और अवगुणों का त्याग करता रहे। गुणों की कोई सीमा नहीं है, जबकि जीवन बहुत छोटा है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 27 Apr 2017 10:50 AM (IST)Updated: Thu, 27 Apr 2017 10:50 AM (IST)
कोई मनुष्य सदैव बुरा या भला नहीं होता
कोई मनुष्य सदैव बुरा या भला नहीं होता

 गुणों और कर्मों में गहरा संबंध है। गुणों के अनुरूप कर्म सुखदायी होते हैं। अवगुण निरंतर पापों की ओर आकर्षित करते हैं। सद्गुणों से परोपकार और परहित की प्रेरणा मिलती रहती है। ऐसा देखा गया है कि कोई मनुष्य सदैव बुरा या भला नहीं होता। अवगुणी भी किसी पल परहित की सोचता है और कभी सद्गुणों से संपन्न व्यक्ति भी कुकर्र्मों से बच नहीं पाता।

loksabha election banner

परमात्मा ने माया का ऐसा मोहिनी रूप रच दिया है कि कोई भी कभी भी इसका शिकार हो जाता है। माया जीवन का आधार भी बनती है और विनाश की ओर भी ले जाती है। गुणों में अवगुण और अवगुणों में भी गुण माया के कारण ही रचे बसे हुए हैं। जिसने इस तत्व को समझ लिया वही जीवन को दिशा देने योग्य बन पाता है। पुरातन काल में अनेक संत,महात्मा, ऋषि, मुनि हुए जिन्होंने सिद्धियां, शक्तियां प्राप्त कीं, फिर भी साधना के मार्ग से कभी विमुख नहीं हुए। उन्होंने जीवन भर आत्मविकास और उन्नयन के लिए प्रयास किए।

जैसे कोई नव साधक करता है। उन्होंने धर्म की निरंतरता को बनाए रखा। इस कारण सदियों बाद भी वे आदरणीय और स्मरणीय हैं। उपलब्धियां हासिल कर लेने के बाद सद्भावनाओं के प्रति उदासीन हो जाने वाले इतिहास के पन्नों में समा गए। सूर्य की प्रतिष्ठा का कारण उसका नित्य प्रति उदित होना और संसार को प्रकाशमान करना है। नदियों के किनारे लोग सभ्यता के आदिकाल से बसते रहे हैं, क्योंकि उनका जल सदा प्रवाहमान होने के कारण स्वच्छ और संतुष्ट करने वाला है। मनुष्य हर पल जीवनदायी वायु ले रहा है और विषाक्त वायु बाहर निकाल रहा है।

एक पल के लिए भी ऐसा न होने का अर्थ है जीवन को संकट में डाल देना। मनुष्य सदैव सद्गुण ग्रहण करता रहे और अवगुणों का त्याग करता रहे। गुणों की कोई सीमा नहीं है, जबकि जीवन बहुत छोटा है। गुण और ज्ञान से तन और मन को सदा निर्मल रखना ही जीवन है। भारतीय जीवन-दर्शन और संस्कृति में साधु व संत संगत की उच्च महिमा बताई गई है। अच्छी संगत निरंतर प्रेरणा का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। सदैव उत्तम विचार मन और मस्तिष्क में समाते रहें। आत्मा श्रेष्ठ कर्मों की ओर उन्मुख रहे। मन एक सैनिक की तरह सतर्क रहे। माया और विकारों के हाथों पराजय से बचने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य के चारों ओर सद्विचारों और सत साहित्य का सुरक्षा चक्र सदैव बना रहे। यही जीवन की निरंतरता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.