गुरु की सत्ता ही शाश्वत है: श्री श्री रविशंकर
हर समय गुरु की आंखों से दुनिया को देखो। तो दुनिया और अधिक सुंदर लगती है, वह प्रेम, आनंद, परस्पर सहयोग, दया और सभी सद्गुणों से भरी हुई जगह है। गुरु एक सत्ता है।
गुरु एक द्वार है
गुरु को अपनी दुनिया का एक हिस्सा मत बनाओ। गुरु की सत्ता को महसूस करो। आध्यात्मिक पथ पर तीन कारक होते हैं। बुद्ध-सतगुरु या ब्रह्मज्ञानी, संघ-संप्रदाय या समुदाय और, धर्म-आपकी प्रकृति, आपका सच्चा स्वभाव। तुम बुद्ध के जितना निकट जाओगे तुम्हें उतना ही अधिक आकर्षण मिलेगा, तुम ब्रह्मज्ञानी से कभी ऊबते नहीं। तुम जितना समीप जाओगे, तुम्हें उतनी ही अधिक नवीनता और प्रेम का अनुभव मिलता है। एक अथाह गहराई की तरह है। गुरु एक द्वार है और द्वार का दुनिया से अधिक आकर्षक होने की आवश्यकता है ताकि लोग द्वार तक आएं। बाहर बारिश और बिजली कड़क रही है या चिलचिलाती धूप है और कोई सड़क पर है... उन्हें आश्रय की जरूरत है। वे अपने चारों ओर ढूंढते हैं, उन्हें एक द्वार दिखता है। द्वार अपनी ओर आमंत्रित कर रहा है, वह दुनिया की किसी भी चीज से अधिक आकर्षक, व आनंद और हर्षोल्लास से परिपूर्ण दिखता है।
गुरु की आंखों से देखो
इतनी शांति, इतना आनंद और सुख दुनिया में कुछ भी और नहीं दे सकता। द्वार तक आने पर, आप दरवाजे के अंदर प्रवेश कर जाते हो और गुरु की आंखों से दुनिया को देखते हो। यह एक संकेत है कि आप गुरु के पास पहुंच गए हो। अन्यथा, आप सड़क पर खड़े हुए अभी तक द्वार को देखते रह सकते हो। एक बार आपने द्वार से अंदर प्रवेश कर लिया, तो आप गुरु की आंखों से सारी दुनिया देखोगे। इसका क्या अर्थ है? हर स्थिति का सामना करते हुए तुम सोचोगे कि 'यह स्थिति यदि गुरुजी के सामने आती तो वह उसको कैसे संभालते? यह जटिल परिस्थिति यदि गुरुजी के सामने आती तो वह उसे किस प्रकार से लेते? अगर कोई गुरुजी को यह दोष लगाता, तो वह उसको कैसे संभालते?'
गुरु की शरण में आनंद है
हर समय गुरु की आंखों से दुनिया को देखो। तो दुनिया और अधिक सुंदर लगती है, वह प्रेम, आनंद, परस्पर सहयोग, दया और सभी सद्गुणों से भरी हुई जगह है। दुनिया में और अधिक आनंद है। द्वार के माध्यम से देखने से कोई डर नहीं लगता, क्योंकि वहां शरण है। अपने घर के अंदर से तुम कड़कती बिजली, तूफान और बारिश को देख सकते हो। तुम आराम से तपते सूरज को देख सकते हो क्योंकि अंदर वातानुकूलन है। वह ठंडा और बहुत ही सुखद है। बाहर बहुत गर्मी है। तुम्हें बुरा नहीं लगता है क्योंकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं है जो कि वास्तव में तुम्हें विचलित कर पाए, परेशान करे या अतृप्त करे।
गुरु की सत्ता में है सुरक्षा
ऐसी सुरक्षा की भावना, ऐसी परिपूर्णता और आनंद की भावना का आविर्भाव होता है। यही गुरु के होने का उद्देश्य है। दुनिया के सभी संबंधों में उतार-चढ़ाव आता है। तुम रिश्तों को बनाते हो और बिगाड़ते हो। फिर राग और द्वेश होता है। यही दुनिया है, यही संसार है। परंतु, गुरु कोई संबंध नहीं है, गुरु एक सत्ता है। गुरु को अपनी दुनिया का एक हिस्सा मत बनाओ। गुरु की सत्ता को महसूस करो जो कि शाश्वत है। वह तुम्हारे साथ पहले भी रह चुकी है, वह अभी तुम्हारे साथ है और भविष्य में भी रहेगी। गुरु तुम्हें कृपा, प्रेम और ज्ञान के द्वारा ऊपर उठाते हैं। इस क्षण को और प्रत्येक क्षण को पूर्णत: स्वीकार करने की गहरी अनुभूति ही धर्म है।
परमात्मा के साथ सहज बना देता है गुरु
मनुष्य के मन की कठिनाई यह है कि यह पूरी तरह संसार का अंश नहीं हो सकता और पूरी तरह ईश्वर का अंश भी नहीं हो सकता। यह ईश्वर से दूरी का अनुभव करता है और संसार के साथ भी सहज नहीं है। धर्म वह है, जो तुम्हें इसके बीच में रखता है और संसार के साथ सहज कर देता है। यह दुनिया में योगदान करने देता है, परमात्मा के साथ सहज होने देता है और यह अनुभव कराता है कि तुम परमात्मा का अंश हो। सच्चा धर्म परमात्मा के साथ सहज कर देता है