इस तरह राजा दशरथ ने कैकेयी को पत्नी रूप में स्वीकार किया
वहां कैकेयी ने दशरथ को चुन लिया। इस पर वहां मौजूद अन्य राजाओं से दशरथ का युद्ध हुआ, जिसमें कैकेयी ने दशरथ के सारथी की भूमिका निभाई।
रावण का भाई विभीषण पहले अपने बड़े भाई से बहुत स्नेह करता था। जब उसे एक भविष्यवक्ता से पता चला कि दशरथ के पुत्र और जनक की पुत्री रावण के अंत का कारण बनेंगे। तो वह विचलित हो गया। इस पौराणिक कथा का विस्तार से उल्लेख विमल सूरि कृत पउमचरियं (जैन रामकथा) के पर्व- 24 में मिलता है।
उसने एक दैत्य जिसका नाम शुक-सारण था। दशरथ और जनक के वध का कार्य सौंपा। उस समय नारद जी ने यह बात अपनी दिव्य दृष्टि के द्वारा देख ली और फिर उन्होंने रावण के भाई विभीषण के इस षडयंत्र के बारे में दशरथ और जनक को बताया।
अयोध्या के राजा दशरथ का एक सामंत था। वह चतुर था। उसने राजा दशरथ को सलाह दी कि राजा दशरथ की सजीव प्रतिमा बनाकर महल में रखवा दी जाए। राजा को गुप्तवेश में अयोध्या बाहर कुछ दिनों के लिए भ्रमण पर चले जाएं। राजा ने अपने सामंत के अनुसार यही किया।
उधर, राजा जनक के चतुर सामन्त ने भी यही उपाय उन्हें बताया। और उन्हें नगर से बाहर भ्रमण करने की सलाह दी। उन्होंने भी उसकी सलाह को मान लिया।
इस बीच, शक-सारण ने दशरथ और जनक के महलों में जाकर उन दोनों की प्रतिमाओं के सिर काट दिए और लंका लौट गया।
उधर राजा दशरथ और जनक दोनों कई देशों के भ्रमण करते हुए एक स्वयंवर में पहुंचे। यह स्वयंवर कैकेयी का था। जिनके पिता मंगल नाम के नगर के राजा शुभमति और कैकेयी की मां पृथ्वी थीं।
वहां कैकेयी ने दशरथ को चुन लिया। इस पर वहां मौजूद अन्य राजाओं से दशरथ का युद्ध हुआ, जिसमें कैकेयी ने दशरथ के सारथी की भूमिका निभाई।
वह युद्ध में दशरथ के साथ मौजूद थीं। इस तरह राजा दशरथ ने सभी राजाओं को परास्त कर कैकेयी को पत्नी रूप में स्वीकार किया और अयोध्या लौट आए। और राजा जनक ने मिथिला की ओर प्रस्थान किया।