उपकार
जन्म से लेकर आज तक हमारे ऊपर ईश्वर के ऐसे उपकारों का सिलसिला अनंत है। प्रभु के उपकार रूपी ऋण से उऋण होना हम मनुष्यों के लिए जीवनर्पयत असंभव है। प्रभु ने कुछ तो समझ-बूझकर हम मनुष्यों को जीवन की ये तमाम अनुकूलताएं दी होंगी।
नई दिल्ली, प्रो. दिनेश चमोला 'शैलेश': किसी संकट एवं कष्ट के समय हर क्षण हमारी जिह्वा पर प्रभु का नाम होता है। मन, कर्म एवं वचन से भी हमें उनके अनुनय-विनय की मुद्रा में ही रहते हैं। फिर एक दिन जब हम प्रभु की अनुकंपा से उन बुरे दिनों की चपेट से उबर जाते हैं तो उन्हें भूल जाते हैं। इस प्रकार जन्म से लेकर आज तक हमारे ऊपर ईश्वर के ऐसे उपकारों का सिलसिला अनंत है। प्रभु के उपकार रूपी ऋण से उऋण होना हम मनुष्यों के लिए जीवनर्पयत असंभव है। धन्य हैं वे करुणानिधान, जिन्होंने विशेष कृपा कर हमें बनाया। हाथ, कान, नाक, पांव, बुद्धि एवं घ्राण क्षमता-सब कुछ कार्योपयोगी। यदि वह एकाध अंग-उपांग से अथवा अनेक जीवनोपयोगी शारीरिक क्षमताओं से वंचित कर विपरीत परिस्थितियों में जन्म दे देते तब भी हमें जीवन जीना ही पड़ता। तो क्या फिर हम अपनी शक्ति एवं सामथ्र्य पर इतना इतरा पाते? बिल्कुल नहीं। तब पल-पल संघर्ष एवं परिश्रम कर सब कुछ ङोलना ही होता।
प्रभु ने कुछ तो समझ-बूझकर हम मनुष्यों को जीवन की ये तमाम अनुकूलताएं दी होंगी। भगवान ने इतनी सुविधाएं दीं तो बदले में हमने क्या विलक्षण किया? वास्तव में ईश्वर ने हमें ये सारी अनुकूलताएं एवं सुविधाएं कुछ विशेष कार्य करने के लिए दी हैं, न कि केवल व्यर्थ में कुछ विशेष होने-समझने के लिए। समस्या यह है कि औरों के कल्याण एवं हित के लिए प्रभु-दरबार से अनुकंपा पर मिली वस्तुओं को हमने भूलवश नितांत अपना ही समझ लिया। इसलिए आनंद देने वाली उन सब वस्तुओं से भय, क्रोध, लालच, पीड़ा,ईर्ष्या, द्वेष एवं पीड़ा टपकने लगी। ईश्वर न्याय एवं पवित्रता के पक्षधर हैं, कुटिलता एवं अन्याय के नहीं। उसके उपकारों से हम उऋण तभी हो सकते हैं, जब पवित्रता से जीवन का क्षण-क्षण उसी उद्देश्य के लिए व्यय हो, जिसके लिए ऊपर वाले ने इसकी रचना की है। संसार एवं जीव-जगत के कल्याण मात्र से ही उसके उपकारों का ऋण चुकता हो सकता है।
Pic Credit- Freepik