वार्ता से निकल सकता है हर समस्या का हल, जानिए कैसे करें इसपर अमल
लोग कहते हैं कि पैसों का काम पैसों से ही चलता है बातों से नहीं। यह बात सच है कि बातों से कोई काम नहीं होता काम तो काम करने से हो सकता है लेकिन काम तभी हो सकता है जब उस काम से पहले कोई विचार स्थिर हो।
नई दिल्ली, डा. राघवेंद्र शुक्ल: वार्ता से प्रत्येक व्यक्ति का सरोकार है। जब मन में संदेह उपजे, हृदय अविश्वास से घिर जाए, मस्तिष्क में विचार न ठहरे, तब वार्ता से ही रास्ता निकलेगा। कोई भी विवाद हो, कैसी भी समस्या हो, फिर भी वार्ता से हल निकल सकता है। संबंधों में कितना भी ठहराव क्यों न आ जाए, लेकिन वार्ता के ताप से रिश्तों पर जमा बर्फ भी पिघल जाती है। वार्ता में शिथिलता के लिए केवल अहंकार दोषी होता है। किसी भी विध्वंस का कारण अंहकार ही रहा है।
विश्व शांति की अवधारणा परस्पर संवाद पर ही टिकी है। संवादहीनता से कूटनीति और राजनीति अकेली पड़ सकती है। बातचीत चलती रहे तो विकल्प निकलने की संभावना बढ़ जाती है। चर्चाओं में तर्क, सुझाव और मतों का विभाजन होता रहता है। यह अनवरत प्रक्रिया है। जनता के मध्य निरंतर जनमत पर चर्चा चलती रहती है। लोक चर्चा और लोकमत से संसार की बड़ी समस्याओं पर सकारात्मक निष्कर्ष निकल सकते है। चर्चा या वार्ता को प्रोत्साहित करना उचित है। संवादहीनता को हतोत्साहित करना चाहिए। सभी द्वार भले ही बंद हो जाएं, लेकिन बातचीत का द्वार सदैव खुला रहे।
लोग कहते हैं कि पैसों का काम पैसों से ही चलता है, बातों से नहीं। यह बात सच है कि बातों से कोई काम नहीं होता, काम तो काम करने से हो सकता है, लेकिन काम तभी हो सकता है, जब उस काम से पहले कोई विचार स्थिर हो। विचार स्थिर होगा तो उससे संबंधित बात पूरी हो सकेगी और बात होगी तो काम का आदेश होगा। काम का आदेश स्वयं या अन्य प्रकार का हो सकता है। इसलिए समाज और देश दोनों में वार्ता का महत्व स्वीकार किया जाता है। वार्ता को सबसे बड़ा कार्य माना जा सकता है। सभी कार्यो का श्रीगणोश बात से ही आरंभ होता आया है। युद्धों को भी वार्ता के माध्यम से रोका जा सकता है। वार्ता से ही विचारों की श्रृंखला बनकर विश्व समुदाय को जोड़ती है। सभी तंत्रों से वार्ता तंत्र सबसे सफल प्रयोग है।
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