Buddha Purnima 2022: गौतम बुद्ध ने बताया, व्यक्ति को कैसे मिल सकती है दुखों से मुक्ति
Buddha Purnima 2022 भगवान गौतम बुद्ध ने बताया कि जन्म से लेकर मृत्यु तक संपूर्ण जीवन दुखमय है। मृत्यु भी दुख का अंत नहीं है बल्कि नए दुख का आरंभ है क्योंकि मृत्यु के बाद भी पुनर्जन्म होता है।

नई दिल्ली, डा. बिपिन पाण्डेय: छठी शताब्दी ईसा पूर्व में संपूर्ण विश्व दर्शन के नए क्षितिज स्पर्श कर रहा था। चीन में कन्फ्यूशियस और लाओत्से, ईरान में जरथुस्त्र, यूनान में पाइथागोरस नए तर्क गढ़ रहे थे तो भारत में महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध वैदिक दर्शन को नया आयाम देने में लगे थे। गौतम बुद्ध ने बताया कि जन्म से लेकर मृत्यु तक संपूर्ण जीवन दुखमय है। मृत्यु भी दुख का अंत नहीं है, बल्कि नए दुख का आरंभ है, क्योंकि मृत्यु के बाद भी पुनर्जन्म होता है। उनका मानना था कि प्राणी की इच्छा अपूर्ण रहती है तो पुनर्जन्म लेना पड़ता है।
बुद्ध अनात्मवादी और अनीश्वरवादी तो थे, किंतु भौतिकवादी नहीं थे। उनका मत है कि सृष्टि में जो कुछ है वह क्षणिक है, परिवर्तनशील है। द्वितीय आर्य सत्य है कि प्रत्येक कार्य का कारण अवश्य होता है, जिसे बुद्ध ने प्रतीत्यसमुत्पाद कहा। इस दुख के कारणता सिद्धांत को द्वादश निदान चक्र भी कहा जाता है। इस दुख का मूलभूत कारण अविद्या है। अविद्या से संस्कार या पूर्व में किए गए कर्मो की प्रवृत्तियां उत्पन्न होती हैं। संस्कार से विज्ञान, विज्ञान से नामरूप, नामरूप से षडायतन, षडायतन से स्पर्श, स्पर्श से वेदना, वेदना से तृष्णा, तृष्णा से उपादान, उपादान से भव, भव से जाति, जाति या जन्म से जरा-मरण का दुख भोगना पड़ता है।
बौद्ध दर्शन का तृतीय आर्यसत्य दुख-निरोध है। दुखों के मूल कारण अविद्या को दूर करके इसी जीवन में दुखों का अंत किया जा सकता है। दुखों का निरोध ही निर्वाण है। चतुर्थ आर्यसत्य दुख निरोध के अष्टांग मार्ग हैं-सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्मात, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। निर्वाण प्राप्ति के लिए त्रिशिक्षा-शील, समाधि और प्रज्ञा अपेक्षित हैं। गौतम बुद्ध कर्म और पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। उनका मध्यम मार्ग आज भी मानव जीवन के लिए दुख से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
Pic Credit- Instagram/maai_ke_boli
Edited By Shivani Singh