अनंत यात्रा: शरीर के जन्म के साथ ही प्रारंभ होती है यात्रा और मृत्यु के उपरांत समाप्त हो जाती है
यह कहा जा सकता है कि भौतिक शरीर की यात्रा का आदि और अंत स्पष्टत ज्ञात होता है परंतु ऊर्जापुंज जिसे आत्मा कहकर संबोधित किया जाता है अपनी यात्रा के आदि और अंत से सर्वथा अपरिचित होता है।
शिशिर शुक्ला। शरीर में समाहित ऊर्जापुंज को आत्मा कहा गया है। यह आत्मा अनंत ऊर्जा अर्थात परमात्मा का एक अति सूक्ष्म अंशमात्र है। भौतिक जगत में रहते हुए यह भौतिक शरीर एक यात्री के सदृश होता है। शरीर के जन्म के साथ ही यात्रा प्रारंभ होती है एवं मृत्यु के उपरांत समाप्त हो जाती है। अर्थात भौतिक शरीर के लिए जीवन एक यात्रा के समतुल्य है। जन्म के साथ ही ऊर्जापुंज अर्थात आत्मा भौतिक शरीर से संयुक्त होकर उसकी यात्रा में सहयात्री की भूमिका का निर्वहन करने लगता है एवं मरणोपरांत स्वयं को यात्रा से अलग कर लेता है।
यह कहा जा सकता है कि भौतिक शरीर की यात्रा का आदि और अंत स्पष्टत: ज्ञात होता है, परंतु ऊर्जापुंज जिसे आत्मा कहकर संबोधित किया जाता है, अपनी यात्रा के आदि और अंत से सर्वथा अपरिचित होता है। आत्मा की यात्रा कब और क्यों प्रारंभ हुई तथा कब और क्यों पूर्ण होगी? इन प्रश्नों का हल आज भी एक चुनौती के रूप में खड़ा है। ऊर्जापुंज अगणित भौतिक शरीरों की भौतिक यात्रा में सहयात्री की भूमिका को निभाता हुआ अपनी अनंत दिव्ययात्र को जारी रखता है। अर्थात आत्मा की इस अलौकिक यात्रा में अनंत लौकिक यात्राएं शामिल होती हैं। इस अलौकिक यात्रा के संबंध में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि यह यात्रा अनंत से प्रारंभ होकर अनंत पर ही पूर्ण होगी, किंतु अनंत को परिभाषित करना भी असंभव है। अनंत को अज्ञात का पर्याय माना जा सकता है।
प्रश्न यह उठता है कि इस अनंत गति को अनवरत जारी रखने के लिए आवश्यक बल किस स्नेत से प्राप्त होता है? संभवत: यह भी अभी तक एक रहस्य है। वस्तुत: यही बल ऊर्जा का अनंत स्नेत है। अर्थात अनंत ऊर्जा जिसे परमात्मा कहकर संबोधित किया गया है। परमात्मा का आत्मा से अटूट संबंध है। आत्मा की अनंत यात्रा परमात्मारूपी बल के द्वारा ही नियंत्रित होती है, परंतु इस अनंत ऊर्जापुंज की उत्पत्ति का रहस्य सर्वथा अज्ञात है।