Move to Jagran APP

Kanwar Yatra 2021: सावन में क्यों होती है कांवड़ यात्रा? जानें सबसे पहले किसने की थी शुरुआत

Kanwar Yatra 2021 हिंदू धर्म में विशेषतौर पर उत्तर भारत में कावंड़ यात्रा सैकड़ों वर्षों से चल रही है। कांवड़ यात्रा की शुरूआत और महात्म के बारे में कई कहनियां और किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा की शुरुआत के बारे में...

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Fri, 16 Jul 2021 04:30 PM (IST)Updated: Fri, 16 Jul 2021 04:30 PM (IST)
Kanwar Yatra 2021: सावन में क्यों होती है कांवड़ यात्रा? जानें सबसे पहले किसने की थी शुरुआत
सावन में क्यों होती है कांवड़ यात्रा? जानें सबसे पहले किसने की थी शुरुआत

Kanwar Yatra 2021 : सावन के महीने में केसरिया वस्त्र पहने अपने कमण्डल या कांवड़ में पवित्र नदियों का जल लेकर भगवान शिव को चढ़ाने के लिए होड़ लगाते शिव भक्त ही कावड़िया कहलाते हैं। इस साल भी 25 जुलाई से शुरू हो रहे सावन के महीने में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए कुछ राज्यों ने कांवड़ यात्रा करने की अनुमति दी है। हिंदू धर्म में विशेषतौर पर उत्तर भारत में कावंड़ यात्रा सैकड़ों वर्षों से चल रही है। कांवड़ यात्रा की शुरूआत और महात्म के बारे में कई कहनियां और किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा की शुरुआत के बारे में...

loksabha election banner

1-पहली कथा

कुछ विद्वान भगवान परशुराम को पहला कांवड़ यात्री मानते हैं। उनके अनुसार परशुराम जी ने पुरामहादेव को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल ले जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। इसे ही हिंदू परंपरा में कांवड़ यात्रा की शुरूआत माना जाता है।

2- दूसरी कथा

इस कथा के अनुसार कावंड़ यात्रा की शुरूआत श्रवण कुमार ने त्रेता युग में की थी। कथा के अनुसार श्रवण कुमार के अंधे माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा व्यक्त की। तो श्रवण कुमार ने अपने माता –पिता को कंधे पर कांवड़ में बिठा कर पैदल यात्रा की और उन्हें गंगा स्नान करवाया। लौटते समय अपने साथ गंगा जल लेकर आए, जिससे उन्होंने भगवान शिव का अभिषेक किया।

3- तीसरी कथा

कांवड़ यात्रा को लेकर प्रचलित तीसरी कथा का संबंध भगवान शिव के परम् भक्त रावण से है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान करने से भगवान शिव नील कंठ कहलाए, लेकिन विष के प्रभाव से शिव जी का गला जलने लगा तब उन्होंने अपने परम् भक्त रावण का स्मरण किया। रावण ने कावंड़ से जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया, जिससे शिव जी को विष के प्रभाव से मुक्ति मिली। कुछ विद्वान इस घटना को ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानते हैं।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.