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शबरी जयंती 2020 : जानें मर्यादा पुरषोत्तम के अनन्य भक्त शबरी ने क्यों नहीं किया विवाह

शबरी जयंती 2020 फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को सबरीमाला मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और मेला का आयोजन किया जाता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Sat, 15 Feb 2020 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 15 Feb 2020 07:00 AM (IST)
शबरी जयंती 2020 : जानें मर्यादा पुरषोत्तम के अनन्य भक्त शबरी ने क्यों नहीं किया विवाह
शबरी जयंती 2020 : जानें मर्यादा पुरषोत्तम के अनन्य भक्त शबरी ने क्यों नहीं किया विवाह

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। शबरी जयंती 2020 : हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 15 फरवरी को शबरी जयंती है। इस दिन केरल के पेरियार टाइगर अभयारण्य में स्थित सबरीमाला मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपने अनन्य भक्त शबरी के जूठे बेर खाए थे, जिससे न केवल भक्त शबरी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, बल्कि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साक्षात् दर्शन भी हुए थे।

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शबरी माता कौन थी

भील समुदाय से संबंध रखने वाली शबरी का नाम श्रमणा था। ऐसी किदवंती है कि जब शबरी विवाह योग्य हुईं, तो उनके पिता और भीलों के राजा ने शबरी का विवाह भील कुमार से तय किया। उस समय विवाह के समय जानवरों की बलि देने की प्रथा दी, जिसका शबरी ने पुरजोर विरोध किया और जानवरों की बलि प्रथा को समाप्त करने के लिए उन्होंने विवाह नहीं की।

शबरी माला देवी की होती है पूजा

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को सबरीमाला मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और मेला का आयोजन किया जाता है। इस दिन शबरी माता का मूर्ति रूप में पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि शबरी जयंती के दिन उनकी पूजा-अर्चना करने से मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी प्रसन्न होते हैं और व्रती को मनोवांछित फल देते हैं। इसके साथ ही मंदिरों एवं मठों में कीर्तन-भजन और सतसंग का आयोजन किया जाता है। लोग एक दूसरे को शबरी जयंती की शुभकामनाएं देते हैं।

कैसे करें पूजा

इस दिन आप प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठें और नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान-ध्यान करें। इसके पश्चात व्रत संकल्प लेकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके अनन्य भक्त शबरी की पूजा-अर्चना करें। उन्हें पूजा में फल-फूल, धूप, दीप, दूर्वा सहित बेर अर्पित करें। दिन भर उपवास रखें और संध्याकाल में आरती करने के पश्चात फलाहार करें। अगले दिन आप नित्य दिन की भांति पूजा-पाठ के पश्चात व्रत खोलें।  


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