आत्मा की सुंदरता हमेशा बनी रहती
धन आज है, कल नहीं रहेगा। ज्ञान भी पुराना होता जाएगा। सौंदर्य भी एक समय के बाद फीका पड़ जाएगा लेकिन आत्मा की सुंदरता हमेशा बनी रहती है।
धन आज है, कल नहीं रहेगा। ज्ञान भी पुराना होता जाएगा। सौंदर्य भी एक समय के बाद फीका पड़ जाएगा लेकिन आत्मा की सुंदरता हमेशा बनी रहती है।
सूफी परंपरा की एक बहुत ही सुंदर कथा है। एक व्यक्ति ईश्वर के घर गया और दरवाजा खटखटाने लगा। ईश्वर ने पूछा, 'कौन है?' व्यक्ति ने उत्तर दिया-'मैं आया हूं।' उस व्यक्ति के लिए दरवाजा नहीं खुला। वह व्यक्ति ईश्वर के दर्शन पाए बिना ही लौट आया।
उसने इस बात पर विचार किया कि आखिर ईश्वर ने क्यों उसे दर्शन नहीं दिए और उत्तर जानने के लिए प्रार्थना की। आखिरकार एक क्षण उसे ज्ञान की प्राप्ति हुई और उसे समझ आया कि उससे चूक कहां हुई। वह फिर ईश्वर के द्वार आया और दरवाजा खटखटाया। इस बार जब ईश्वर ने पूछा, 'कौन है?' व्यक्ति ने उत्तर दिया- 'दरवाजे पर आपका ही स्वरूप है।'
दरवाजा खुल गया और उस व्यक्ति को ईश्वर से साक्षात का अवसर मिला। यह कथा यही बताती है कि जब हम ईगो को छोड़ देते हैं तो हमारी ग्राह्यता बढ़ जाती है। हमें अधिक खुले मन से लोग स्वीकार करने लगते हैं।
जिंदगी के रास्तों में जीत तलाशते हुए अक्सर हमारे सामने ईगो आ जाता है और हमारा मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। ईगो हमारी आध्यात्मिकता पर छा जाता है और हमारा स्वभाव बदले रूप में लोगों के सामने आता है। ईगो कई तरह से हमारे सामने आता है- धन के घमंड के रूप में, ज्ञान के घमंड के रूप में और शक्ति तथा सुंदरता के घमंड के रूप में।
कई लोग धन के अहं में भी रहते हैं और उन्हें लगता है कि उनके पास कितना ज्यादा धन और महंगी वस्तुएं हैं। ज्ञान का अहं भी होता है। कई बार व्यक्ति विनम्रता छोड़ देता है और इस तरह पेश आता है जैसे उसे ही सारी चीजें आती हैं और दूसरे उससे कम जानते हैं। सौंदर्य का भी गुमान होता है।
किसी भी व्यक्ति की सुंदरता उम्र के साथ खत्म होती जाती है। अगर व्यक्ति के पास आत्मा की सुंदरता नहीं है तो उम्र के साथ जब झुर्रियां चेहरे पर आ जाती हैं तो बहुत ही कम लोग उस व्यक्ति की तरफ आकर्षित होते हैं। ज्ञान भी बहुत अस्थायी संपत्ति है जो समय के साथ बदलता है। इकोनॉमी में बदलाव के साथ धन भी आता-जाता रहता है। स्टॉक्स और बॉण्ड्स भी अपनी साख खोते हैं और व्यक्ति निर्धन हो जाता है।
आशय यही है कि ईगो की वजह से हम अपने आपको भूल जाते हैं। ईगो से मुक्त होने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम अपने मस्तिष्क पर पकड़ बनाकर रखें। जब हमारा पूरा ध्यान बाहरी दुनिया पर होता है तो हम मन की सुंदरता की ओर ध्यान नहीं दे पाते हैं।
हमारी कोशिशें अपने मन को सुंदर बनाने की होना चाहिए क्योंकि वही सबसे ज्यादा जरूरी है। हम आत्मा की सुंदरता की ओर ध्यान न देते हुए खुद को बेकार की चीजों में उलझाए रखते हैं। हमें बाहर शांति और प्रसन्नता की तलाश करने के बजाय भीतरी शांति की तलाश में रहना चाहिए क्योंकि उसके होने का मूल्य बहुत ही ज्यादा है।
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भिक्षुओं और साधुओं का सबसे अंतिम शत्रु उनका अहं ही होता है। वे भौतिक वस्तुओं की कामना का त्याग कर सकते हैं, वे वासना छोड़ सकते हैं, किसी भी तरह के लालच और आसक्ति से मुक्ति पा सकते हैं। लेकिन अगर वे इन चीजों को छोड़ने का गुमान करते हैं तो वे अहं के चक्कर में फंस जाते हैं। रहस्यवादी कवियों ने तो कहा भी है, 'जहां मैं है वहां ईश्वर नहीं है।'