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सत्य की शक्ति: सत्य के बगैर सृष्टि की सत्ता संभव ही नहीं है

मुंडक उपनिषद में वर्णित भारत का आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ सबसे पवित्र माना गया है। सत्य वह है जो जैसा कहा जाए वैसा बोला और लिखा भी जाए। जो पूरी तरह यथार्थ या संपूर्ण हो। जिसमें एक प्रतिशत भी अपूर्णता न हो जिसमें किसी तरह का दोष न हो।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 18 Oct 2021 09:35 AM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 09:35 AM (IST)
सत्य की शक्ति: सत्य के बगैर सृष्टि की सत्ता संभव ही नहीं है
सत्य की शक्ति: सत्य के बगैर सृष्टि की सत्ता संभव ही नहीं है

सत्य या सच को वेद में ब्रह्मांड का आधार बताया गया है। मुंडक उपनिषद में वर्णित भारत का आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ सबसे पवित्र माना गया है। सत्य वह है, जो जैसा कहा जाए, वैसा बोला और लिखा भी जाए। जो पूरी तरह यथार्थ या संपूर्ण हो। जिसमें एक प्रतिशत भी अपूर्णता न हो, जिसमें किसी तरह का दोष न हो। वैदिक वांग्मय के अनुसार सत्य के बगैर सृष्टि की सत्ता संभव ही नहीं है। सत्य को ईश्वर और ईश्वर को सत्य कहा गया है।

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वेद में सत्य और ऋत् दोनों की महत्ता बताई गई है। ब्रह्मांड का आधार सत्य है तो ऋत ब्रह्मांड का नियम है। सृष्टि आधार और नियम के बगैर आगे नहीं बढ़ सकती है। हम समझ सकते हैं कि सत्य की शक्ति कितनी है। स्वाभाविक है कि जो सारे ब्रह्मांड का आधार हो, वही सर्वोच्च शक्ति होगी।

ब्रह्मांड में जितने ग्रह-उपग्रह हैं, सबका अस्तित्व और स्वभाव सत्य से ही निर्धारित होता है। सत्य का गुण विज्ञान है। इसलिए विज्ञान शतप्रतिशत सत्य होता है। यह बात अलग है कि इसमें कितना शुभ है और कितना अशुभ है। इसलिए सत्य को त्याग कर ब्रह्मांड और विज्ञान का अस्तित्व नहीं बना रह सकता है।

अब प्रश्न उठता है कि अंधकार और प्रकाश में, दिन और रात में, शुभ और अशुभ में, हिंसा और अहिंसा में किसमें सत्य है और किसमें असत्य है? हालांकि दोनों में सत्य है। अंधकार भी सत्य है, लेकिन शुभ नहीं है और प्रकाश भी सत्य है, लेकिन यह शुभ है। शुभ के साथ जो लाभ प्राप्त होता है वही सच्चा सुख देने वाला है। इसलिए एक साथ शुभ-लाभ लिखा जाता है।

हमारा विकास सच्चा होने के साथ, शुभ भी होना चाहिए। अन्यथा ऐसा विकास निर्थक होगा। शुभ से संसार में शुभता बढ़ती है और अशुभ से अशुभता। अशुभ सत्य नहीं है। इसलिए सत्य की विजय के लिए ही प्रयत्न करते रहना चाहिए। जब तक विश्व में सत्य की प्रतिष्ठा हर जगह नहीं होगी, तब तक समाज बे-नियम यानी ऋत से रहित रहेगा।

शकुंतला देवी


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