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क्या आप जानते हैं गणपति के अदभुत स्वरूप का रहस्य

बुधवार को प्रथम पूज्य श्री गणेश की पूजा की जाती है। आज पंडित दीपक पांडे से जाने कि क्या है लंबोदर एकदंत चारबाहु और सूंड़धारी गणपति के इस स्वरूप का रहस्य।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 05:10 PM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 10:02 AM (IST)
क्या आप जानते हैं गणपति के अदभुत स्वरूप का रहस्य
क्या आप जानते हैं गणपति के अदभुत स्वरूप का रहस्य

कैसा है श्री गणेश का स्वरूप 

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गणपति एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। उनके चारों हाथ अलग मुद्रा में नजर आते हैं, इनमें से एक वरमुद्रा में है और शेष तीन में वे क्रमश: पाश, अंकुश, और मोदक पात्र धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। गणपति को रक्त चंदन का तिलक लगा होता है। श्री गणेश हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय देव हैं, उन्हें श्री विष्णु, शिव, सूर्य तथा मां दुर्गा के साथ नित्य वंदनीय पंच देवताओं में सम्मिलित किया गया है। कोई भी पूजा या धार्मिक और सामाजिक संस्कार गणपति पूजन के बिना सफल नहीं होता है। जब वे खुश होते हैं तो समस्त दुखों का नाश कर देते हैं और रुष्ट होते हैं तो हर कार्य में बाधा उत्पन्न हो जाती है। परंतु क्या आपने सोचा है कि समस्त देवी देवताओं के पूजन के पूर्व श्री गणेश वंदना क्यों होती है और उनका स्वरूप बड़े कान, छोटे नेत्र, विशाल पेट और गजमुख जो सूंड़ से युक्त है, ऐसा क्यों है।  आज हम आपको समस्त अंगों का विश्लेषण करके बताते हैं कि उनका ये अदभुत रूप ही उनके गुण हैं, और इन्ही अदृश्य गुणों के कारण प्रथम पूजनीय गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। 

ॐ का प्रतीक हैं गणपति 

वास्तव में शारीरिक विचित्रता में ही श्री गणेश के सारे गुण विद्यमान हैं तथा इनके कारण ही शारीरिक आकार के बावजूद गणेश प्रधान, सर्वप्रथम वंदनीय और पूजनीय हैं। उनकी शारीरिक संरचना में विशिष्ट व गहरा अर्थ छिपा है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव अर्थात ॐ कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूंड है। उनकी चार भुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं, और मनुष्य को क्रियाशील रहने का संदेश देते हुए बताती हैं कि दो हाथों को चार भुजाओं की तरह प्रयोग कर कार्य को समय पर सम्पन्न करना चाहिए। समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है इसीलिए वे लंबोदर हैं। साथ ही ये विशाल पेट बताता है कि हर अच्छी और बुरी बात को पेट में ही रख कर हजम कर लें वैमनस्य ना फैलायें। गणेश जी के बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति और छोटी पैनी आंखें तीक्ष्ण अन्वेषी दृष्टि की प्रतीक हैं। उनकी लंबी नाक यानि सूंड उनके अति बुद्घिशाली होने का प्रमाण है इसीलिए उन्हें ज्ञान और विद्या का देवता भी कहा जाता है। साथ ही लंबी नाक आशय सम्मानित और प्रतिष्ठित होने से भी है। 

मोदक और मूषक भी हैं विशेष 

गणेश जी का शरीर ही नहीं उनका वाहन और प्रिय भोजन भी अपने में अलग विशेषता रखते हैं। जैसे उनका वाहन अपने आप में विलक्षण है, मूषक कहीं से भी उनकी काया और विशिष्टता के अनुकूल नहीं है लेकिन इसके पीछे एक विशेष रहस्य छुपा है। मूषक को चंचलता का द्योतक माना गया है, इस दृष्टिकोण से गणेश जी चंचलता पर सवारी करके उसे अंकुश में रखते हैं। ऐसा ही रहस्य उनके प्रिय भोजन मोदक यानि लड्डू में भी निहित है। उनके संदेश के अनुसार खाद्य पदार्थ सिर्फ सुस्वाद ही नहीं सहज उपलब्ध और सुपाच्य भी होना चाहिए।


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