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14 मार्च से प्रारंभ हो रहे हैं होलाष्टक क्या है इनका अर्थ आैर प्रभाव

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है इस दौरान शुभ कार्य वर्जित रहते हैं।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 13 Mar 2019 08:24 AM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 09:29 AM (IST)
14 मार्च से प्रारंभ हो रहे हैं होलाष्टक क्या है इनका अर्थ आैर प्रभाव
14 मार्च से प्रारंभ हो रहे हैं होलाष्टक क्या है इनका अर्थ आैर प्रभाव

होलाष्टक कब से

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पंडित दीपक पांडे का कहना है कि इस प्रकार की भ्रामक खबरें आ रही हैं कि खरमास आैर होलाष्टक एक साथ प्रारंभ हो रहे हैं, जबकि सच्चार्इ ये है कि होलाष्टक गुरुवार 14 मार्च को प्रारंभ हो रहे हैं।  इसके बाद ये होली वाले दिन यानि बृहस्पतिवार 21 मार्च तक चलेंगे। शास्त्रानुसार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होली के दिन तक यानि आठ दिन होलाष्टक माने जाते हैं। पौराणिक कथाआें के अनुसार होलाष्टक की शुरुआत शिव जी के कामदेव को भस्म कर दिए जाने के दिन के प्रतीक स्वरूप होती है। कहा जाता है कि इस काल में हर दिन विभिन्न ग्रह अपने उग्र रूप में होते हैं। यही कारण है कि होलाष्टक में शुभ कार्य करना निषेध होता है, लेकिन इसमें जन्म और मृत्यु के बाद किए जाने वाले कर्म कांड पर कोर्इ रोक नहीं होती।

नहीं होते शुभ कार्य

धार्मिक मान्यताआें के अनुसार होलाष्टक के 8 दिन किसी भी मांगलिक आैर शुभ कार्य को करना शुभ नहीं माना जाता है। हांलाकि विशेष परिस्थितयों में भूमि पूजन, गृह प्रवेश, नये व्यवसाय संबंधी कुछ कार्य करने की सुविधा हो सकती है, लेकिन शादि विवाह आैर मुंडन जैसे कार्य बिलकुल नहीं किए जा सकते। इसीलिए होलाष्टक शुरू होने के साथ ही 16 संस्कार में शामिल नामकरण, जनेऊ, गृह प्रवेश, विवाह आदि कार्य वर्जित हो जाते हैं।

होलाष्टक की शुरूआत में करें ये कार्य

होलाष्टक के प्रथम दिन ही संवत और होलिका के प्रतीक स्वरूप पेड़ की शाखा, लकड़ी या डंडे को भूमि में गाड़ दिया जाता है। इस डंडे पर  रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांधे जाते हैं। जिस जमीन पर यह डंडा या खूंटा लगाते हैं, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इसके आठ दिनों के बाद पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखे जाते हैं। पहला, उस दिन 'भद्रा' न हो। आैर दूसरा ये कि पूर्णिमा प्रदोषकाल व्यापिनी होनी चाहिए। यानि उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।


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