सम्मान का तरीका: प्रणाम, चरण स्पर्श और साष्टांग दंडवत की भारतीय संस्कृति रही है
वैज्ञानिक दृष्टि से अंतरिक्ष से निकलने वाली ऊर्जा तरंगें सिर से होते हुए धरती की ओर जाती हैं। इसलिए जिसका भी चरण स्पर्श करना हो तो यह जान लेना चाहिए कि वह कैसा है? खुशामद और स्वार्थ तथा भय के चलते चरण स्पर्श तन-मन दोनों के लिए घातक होगा।
घर-परिवार और समाज में आदर, अभिवादन एवं श्रद्धा प्रकट करने के लिए कोई दोनों हथेलियों को जोड़कर प्रणाम करता है तो कोई चरण स्पर्श भी करता है। कभी-कभी खुशी में बहुतेरे गले मिलकर आलिंगन भी करते हैं। यह आपस में अभिवादन करने का एक तरीका तो है, लेकिन मन में आदर की जगह नफरत एवं स्वार्थ सिद्ध करने के प्रयास हैं तब आदर देने की ऊपरी कोशिश घातक है।
सिर्फ दिखावे, मजबूरी और भय के चलते प्राय: लोग चरण स्पर्श भी करते हैं, जो दोनों पक्ष के लिए घातक है। शरीर विज्ञान के अनुसार हर व्यक्ति के शरीर में ऊर्जा है। नकारात्मक जीवन जीने वाले के शरीर से नकारात्मक ऊर्जा निकलती रहती है। हाथ मिलाने, गले मिलने तथा चरण स्पर्श से यदि एक दूसरे के ऊर्जा तत्व में विरोधाभास है तो इसका दोनों पर अनुकूल की जगह प्रतिकूल असर पड़ेगा।
प्रणाम, चरण स्पर्श और साष्टांग दंडवत की भारतीय संस्कृति रही है। हम उन्हीं चरणों में झुकते और शीश नवाते थे, जिनका आचरण उत्कृष्ट होता था। भगवान राम के चरण जहां पड़ते थे, वहां का पूरा परिवेश उच्चकोटि का हो जाता था। इसी तरह स्वामी रामकृष्ण परमहंस के आसपास आते ही उनके शरीर के आभामंडल से हिंसक प्रवृत्ति के जानवर हिंसा भूल जाते थे। साधु-संतों के भी चरण स्पर्श की व्यवस्था है, लेकिन केवल साधुभेष बनाकर स्वार्थ सिद्ध करने वालों से सतर्क भी रहना चाहिए।
वैज्ञानिक दृष्टि से अंतरिक्ष से निकलने वाली ऊर्जा तरंगें सिर से होते हुए धरती की ओर जाती हैं। इसलिए जिसका भी चरण स्पर्श करना हो तो यह भलीभांति जान लेना चाहिए कि वह कैसा है? केवल खुशामद और स्वार्थ तथा भय के चलते चरण स्पर्श तन और मन दोनों के लिए घातक होगा।
हाथ मिलाने की परंपरा पाश्चात्य जगत से आई, जो अब अपने समाज में भी प्रचलित हो गई। स्पर्श से भी तन-मन पर असर पड़ता है। इसलिए सिर्फ इसमें सुधार कर लाभ देखा जा सकता है।
सलिल पांडेय