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Vidyarambha Sanskar: विद्या का होता है सर्वोच्च स्थान, जानें क्या है इस संस्कार का महत्व

Vidyarambha Sanskar जब बालक या बालिका शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाते हैं तब यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार को विद्यारंभ संस्कार कहा जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2020 11:00 AM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2020 04:10 PM (IST)
Vidyarambha Sanskar: विद्या का होता है सर्वोच्च स्थान, जानें क्या है इस संस्कार का महत्व
Vidyarambha Sanskar: विद्या का होता है सर्वोच्च स्थान, जानें क्या है इस संस्कार का महत्व

Vidyarambha Sanskar: जब बालक या बालिका शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाते हैं तब यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार को विद्यारंभ संस्कार कहा जाता है। इसमें बच्चे में अध्ययन का उत्साह पैदा किया जाता है। वहीं, अभिभावकों और शिक्षकों को भी उनके दायित्व के प्रति जागरूक किया जाता है जिससे वो बच्चे को अक्षर ज्ञान, विषयों के ज्ञान के साथ श्रेष्ठ जीवन का अभ्यास करा पाए। वैसे तो हमारे जीवन में विद्या और ज्ञान की अहमियत हम सभी जानते हैं लेकिन हिंदू धर्म में इसका स्थान सर्वोच्च है। यही कारण है कि जब बच्चा पांच वर्ष का हो जाता है तब यह संस्कार पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है। आइए जानते हैं विद्यारंभ संस्कार के बारे में।

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विद्यारंभ संस्कार का महत्व:

हमारे जीवन में विद्या और ज्ञान का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है। भारत में शिक्षा को लेकर कितनी जागरूकता थी इसका अंदाजा तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों से लगाया जा सकता है क्योंकि ये दोनों विश्वविद्यालय भारत में ही स्थित थे। दुनियाभर के छात्र यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे। हम सभी अपने बच्चों को विद्या में निपुण बनाना चाहते हैं। अत: विद्यारंभ संस्कार द्वारा बालक/बालिकाओं में ज्ञान के प्रति जिज्ञासा डालने की कोशिश की जाती है। साथ ही उनमें सामाजिक और नैतिक गुण के वास की भी प्रार्थना की जाती है।

विद्यारम्भ संस्कार के लिए सामान्य तैयारियां की जाती हैं। साथ ही गणेश जी और सरस्वती जी का पूजन किया जाता है।

गणेश जी की पूजन विधि:

बच्चे के हाथ में अक्षत, फूल, रोली दें। फिर मंत्रों का जाप करें। साथ ही उपरोक्त सभी चीजों को गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर के सामने अर्पित करें। पूजा करते समय गणेश जी से प्रार्थना करें कि बालक पर गणपति बप्पा अपनी कृपा बनाए रखें। बालक के विवेक में निरंतर वृद्धि हो। निम्न मंत्रों का करें जाप:

ॐ गणानां त्वा गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति हवामहे, वसोमम। आहमजानि गभर्धमात्वमजासि गभर्धम्। ॐ गणपतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥

सरस्वती माता की पूजन विधि:

बच्चे के हाथ में अक्षत, फूल, रोली दें। फिर मंत्रों का जाप करें। साथ ही उपरोक्त सभी चीजों को सरस्वती माता की प्रतिमा या तस्वीर के सामने अर्पित करें। पूजा के दौरान बालक/बालिका को सरस्वती माता का आशीर्वाद मिले यह प्रार्थना करें। साथ ही ज्ञान और कला के प्रति बच्चे का रूझान हमेशा कायम रहे यह भी प्रार्थना करें। निम्न मंत्रों का करें जाप:

ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिवार्जिनीवती। यज्ञं वष्टुधियावसुः।

ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

इन चीजों की होती है आवश्यकता:

गणेशजी एवं मां सरस्वती के चित्र या प्रतिमाएं, पट्टी, दवात और लेखनी, स्लेट, खड़िया रखा जाता है। साथ ही गुरू के पूजन के लिए प्रतीक के रूप में नारियल भी रखा जाता है।  


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