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चिंतन धरोहर: समझकर होगा समस्या का उन्मूलन

चिंतन धरोहर एक शरारती लड़का कैसे सुधरेगा- सजा से या प्रेम से? माना कि सजा देकर वह बदल जाता है लेकिन क्या यह बदलाव है? माता-पिता शिक्षक या बड़े होने के नाते आपके पास अधिकार है यह चुनने का कि आप लड़के को सुधारने के लिए क्या कदम अपनाएं।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Tue, 23 Nov 2021 11:42 AM (IST)Updated: Tue, 23 Nov 2021 11:42 AM (IST)
चिंतन धरोहर: समझकर होगा समस्या का उन्मूलन
चिंतन धरोहर: समझकर होगा समस्या का उन्मूलन

चिंतन धरोहर: एक शरारती लड़का कैसे सुधरेगा- सजा से या प्रेम से? माना कि सजा देकर वह बदल जाता है, लेकिन क्या यह बदलाव है? माता-पिता, शिक्षक या बड़े होने के नाते आपके पास अधिकार है यह चुनने का कि आप लड़के को सुधारने के लिए क्या कदम अपनाएं। लेकिन यदि आप उसे धमकी देते हैं, उसे डराते हैं, तो वह आपके अनुसार काम कर देगा, लेकिन क्या यह सही बदलाव होगा? क्या जबर्दस्ती करके कोई परिवर्तन हो सकता है? क्या आज तक किसी कानून के डर से कोई परिवर्तन हुआ है?

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तब क्या प्रेम से शरारती लड़के में परिवर्तन हो जाएगा? यह निर्भर करता है कि प्रेम का अर्थ आप क्या समझते हैं। यदि प्रेम का अर्थ उसे बदलने के बजाय शरारत पैदा करने वाले कारणों को समझना है, तभी आप सही हैं। तब आप प्रेम से उसमें बदलाव ला सकेगे। यदि मैं किसी को बदलना चाहूं तो मेरी यह बदलने की इच्छा ही एक प्रकार की जबर्दस्ती होगी। लेकिन यदि मैं यह समझना प्रारंभ करूं कि वह क्यों ऐसा है और उसे समझकर उन कारणों का निर्मूूलन कर दूं, तब वह बदल जाएगा। लेकिन यदि मेरी इच्छा केवल बदलने की है, तब मैं उसे नहीं समझ सकता। मान लीजिए, आपके प्रेम के कारण किसी लड़के ने शरारत बंद कर दी, तो क्या यह वास्तविक परिवर्तन है? आपका यह प्रेम भी तो उसके लिए कुछ करने या बनने के लिए एक प्रकार का दबाव ही तो है। जब आप कहते हैं- लड़के को बिल्कुल बदल जाना चाहिए, तो इससे आपका क्या अर्थ है? कौन से रूप में बदलकर आना होगा? 'जो है” से उसे 'जो होना चाहिए” में बदल जाना चाहिए। यदि वह 'जो होना चाहिए” में बदल भी गया, तब भी यह उसके वास्तविक रूप का ही सुधरा हुआ रूप होगा। इसलिए यह भी परिवर्तन नहीं है। मान लीजिए, यदि मैं लोभी हूं, किंतु उदार बनने का प्रयत्न करता हूं, तो इससे क्या मैं बदल जाऊंगा? यदि मैं अपने लोभ की संपूर्ण समस्या की छानबीन करने में, उसे समझने में समर्थ बनूं, तभी मैं उससे मुक्त हो पाऊंगा।

- जे. कृष्णमूर्ति


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