भय से रहित है आत्मा: जो मरता है वह हमारा भौतिक शरीर है, किंतु आत्मा सदा-सदा के लिए जीवित रहती है
आत्मा के नष्ट होने का प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता। अपने इस भौतिक जीवन को जीते हुए हमें अपने आत्मा को उसके असली स्रोत परमात्मा में मिलाना होगा। ध्यान-अभ्यास के जरिये जब हम ऐसा करना सीख जाएंगे तो हम जीवन में सभी तरह के डर से मुक्त हो जाएंगे।
हम अपने जीवन में बहुत चीजों से डरते हैं। विद्यार्थी जीवन में हम परीक्षाओं से डरते हैं। माता-पिता के रूप में हमें यह डर होता है कि हमारा बच्चा स्वस्थ रहेगा या नहीं और एक अच्छा इंसान बनेगा या नहीं। एक कारोबारी होने के नाते हमें अपने काम-धंधे की चिंता रहती है। सामान्यत: ये डर हमारे शारीरिक, मानसिक और इस दुनिया के बाहरी पहलुओं से जुड़े हैं। इसके विपरीत हमारे असल स्वरूप को कोई डर नहीं होता, जो शारीरिक नहीं, अपितु आत्मिक है।
याद रखें हमारा आत्मा परमात्मा का अंश होने के नाते सत्य है और पूर्ण रूप रूप से जागृत है। पूर्णतया सत्य होने के कारण आत्मा को कोई भय नहीं होता है, वह निर्भय है। इंसान में डर के चार प्रमुख कारण हैं। पहला शक, दूसरा कोई गलत काम करने, तीसरा कमजोर होने और चौथा सत्य को पहचानने की असमर्थता के कारण उत्पन्न होता है। इन सबके अलावा हम सबको मृत्यु का भी डर होता है। हम समझते हैं कि हमारी मृत्यु हमारे अस्तित्व का अंत है। यह डर हमेशा कई तरीकों से हमें परेशान करता रहता है। संत-महापुरुष हमें बताते हैं कि जो मरता है वह हमारा भौतिक शरीर है, जो कि जड़ पदार्थ से बना है। किंतु हमारा सच्चा स्वरूप, जो कि हमारा आत्मा है, वह सदा-सदा के लिए जीवित रहता है। इस संसार में जिसे हम मृत्यु कहते हैं, वह केवल हमारे इस भौतिक शरीर की मृत्यु है। आत्मा के लिए यह मृत्यु सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करना है।
इसलिए पहली चीज जो हमें समझनी है वह यह कि हमारा आत्मा अमर है। यह सृष्टि की शुरुआत में भी था, अब भी है और हमेशा रहेगा। इसलिए आत्मा के नष्ट होने का प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता। अपने इस भौतिक जीवन को जीते हुए हमें अपने आत्मा को उसके असली स्रोत परमात्मा में मिलाना होगा। ध्यान-अभ्यास के जरिये जब हम ऐसा करना सीख जाएंगे तो हम जीवन में सभी तरह के डर से मुक्त हो जाएंगे।
-संत राजिंदर सिंह जी महाराज