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Sheetala Ashtami Katha: पूजा करते समय पढ़ें शीतला अष्टमी की व्रत कथा, बनी रहेगी मां की कृपा

Sheetala Ashtami Katha एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक बार एक बुढ़िया और उनकी दो बहुओं ने शीतला माता व्रत किया। उन सभी को अष्टमी तिथि को बासी खाना खाना था। इसके चलते ही उन्होंने सप्तमी तिथि को ही भोजन बनाकर रख लिया था।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sun, 04 Apr 2021 07:15 AM (IST)Updated: Sun, 04 Apr 2021 08:32 AM (IST)
Sheetala Ashtami Katha: पूजा करते समय पढ़ें शीतला अष्टमी की व्रत कथा, बनी रहेगी मां की कृपा
Sheetala Ashtami Katha: पूजा करते समय पढ़ें शीतला अष्टमी की व्रत कथा, बनी रहेगी मां की कृपा

Sheetala Ashtami Katha: एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार एक बुढ़िया और उनकी दो बहुओं ने शीतला माता व्रत किया। उन सभी को अष्टमी तिथि को बासी खाना खाना था। इसके चलते ही उन्होंने सप्तमी तिथि को ही भोजन बनाकर रख लिया था। लेकिन दोनों बहुओं ने को बासी भोजन नहीं करना था। क्योंकि उन्हें कुछ समय पहले ही संतान हुई थी। उन्हें लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि वो बासी भोजन करें और बीमार हो जाएं। अगर ऐसा हुआ तो उनकी संतान भई बीमार हो जाएगी। दोनों बहुओं ने बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा की। इसके बाद पशुओं के लिये बनाए गए भोजन के साथ ही अपने लिये भी ताजा भोजन बना लिया। फिर उसे ग्रहण भी कर लिया।

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फिर जब उनकी सास ने उन्हें बासी भोजन करने के लिए कहा तो उन्हें टाल दिया। यह कृत्य देख माता कुपित हो गईं और अचानक ही उनके नवजातों की मृत्यु हो गई। जब यह बात सास को पता चली तो उसने अपनी बहुओं को घर से निकाल दिया। दोनों अपने बच्चों के शवों को लिए रास्ते पर जा रही थीं। तभी वे एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुकीं। यहां पर दो बहनें थीं जिनका नाम ओरी व शीतला था। ये सिर में पड़ी जुओं से बेहद परेशान थीं। बहुओं को उनकी स्थिति देख उन पर दया आ गयी। उन्होंने उनकी मदद करनी चाही और उन बहनों के सिर से जुएं निकालीं। इससे उन दोनों बहनों को चैन मिल गया। उन बहनों ने बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए।

यह सुन उन बहुओं ने कहा कि उनकी हरी गोद तो लुट गई है। तब उनमें से एक बहन जिनका नाम शीतला था, दोनों बहुओं को लताड़ लगाई और कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ता है। तब उन दोनों बहुओं ने माता शीतला को पहचान लिया। वे दोनों उनके पैरों में पड़ गईं और क्षमा मांगने लगीं। माता को उनके पश्चाताप करने पर दया आ गई और उन्होंने उनके मृत बालकों को जीवित कर दिया। यह देख वो खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इसके बाद से पूरा गांव माता शीतला को मानने लगा।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।' 


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